Sandhi and Sandhi Vichchhed (संधि एवं संधि विच्छेद)

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Sandhi aur Sandhi Vichchhed

Sandhi and Sandhi Vichchhed, संधि एवं संधि विच्छेद, परिभाषा, प्रकार, उदाहरण (Sandhi Viched in Hindi)

Important Topics: समास, अलंकार, मुहावरे, विलोम शब्द, पर्यायवाची शब्द, उपसर्ग और प्रत्यय, तद्भव-तत्सम, कारक-विभक्ति, लिंग, वचन, काल

संधि की परिभाषा (Definition of Sandhi in Hindi)

संधि दो शब्दों से मिलकर बना है:  सम् + धि। जिसका अर्थ होता है ‘मिलना’

जब दो शब्द मिलते हैं तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन लाती हैं उसे संधि कहते हैं। अर्थात जब दो शब्द आपस में मिलकर कोई तीसरा शब्द बनाते हैं तब जो परिवर्तन होता है, उसे संधि कहते हैं। दूसरे शब्दों में – “दो वर्णों के आपस में मिल जाने से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे संधि कहते हैं”. 

संधि की उत्पत्ति और उसका प्रयोग 

संधि मूलतः संस्कृत भाषा में प्रयोग की जाती है. हिंदी भाषा में संधि के द्वारा शब्दों को लिखने की परम्परा नहीं है लेकिन संस्कृत भाषा में संधि के बिना कोई काम नहीं चल सकता. संस्कृत भाषा का व्याकरण बहुत पुराना है। संस्कृत भाषा को अच्छी तरह जानने के लिए व्याकरण को पढना जरूरी है। शब्द रचना में भी संधि का प्रयोग होता है.

संधि विच्छेद (Sandhi Vichchhed/ Sandhi Viched)

संधि किये गये शब्दों को अलग-अलग करके पहले की तरह करना ही संधि विच्छेद कहलाता है।

उदाहरण :-  हिमालय = हिम + आलय , सत् + आनंद =सदानंद, विद्या + आलय = विद्यालय

Sandhi and Sandhi Vichchhed

संधि और संयोग में अंतर

यह जरुर है कि दो वर्णों के मिलाप को संयोग भी कहते हैं लेकिन संधि और संयोग में अंतर होता है

संयोग में अक्षर ज्यों के त्यों रहते हैं जबकि संधि में उच्चारण के नियमों के अनुसार दो अक्षरों के मेल के कारण उनकी जगह कोई भिन्न अक्षर हो जाता है

संयोग का उदाहरण  है:- क्या, स्तम्भ, मत्स्य, महात्म्य आदि

संधि के प्रकार (Types of Sandhi in Hindi)
Sandhi Ke Prakar:

संधि तीन प्रकार की होती हैं :-

1. स्वर संधि
2. व्यंजन संधि
3. विसर्ग संधि

स्वर संधि (Definition of Swar Sandhi in Hindi)

एक स्वर के साथ जब दूसरा स्वर मिलता है और उनके मिलाप के कारण जो परिवर्तन होता है उसे स्वर संधि कहते हैं. हिंदी में स्वरों की संख्या ग्यारह होती है। बाकी के अक्षर व्यंजन होते हैं। जब दो स्वर मिलते हैं जब उससे जो तीसरा स्वर बनता है उसे स्वर संधि कहते हैं।

जैसे:-

हिम+आलय= हिमालय
इति+आदि= इत्यादि

Sandhi and Sandhi Vichchhed

स्वर संधि 6 प्रकार की होती है:-

  1. दीर्घ संधि
  2. गुण संधि
  3. वृद्धि संधि
  4. यण संधि
  5. अयादि संधि
  6. पूर्वरूप संधि

दीर्घ संधि (Deergh Sandhi in Hindi)

जब दो समान स्वर के मिलने से उनका रूप दीर्घ हो जाता है और उसे दीर्घ संधि कहते हैं.

समान स्वर मतलब:- अ-आ, इ-ई, उ-ऊ इत्यादि

जब ( अ , आ ) के साथ ( अ , आ ) हो तो ‘ आ ‘ बनता है , जब ( इ , ई ) के साथ ( इ , ई ) हो तो ‘ ई ‘ बनता है , जब ( उ , ऊ ) के साथ ( उ , ऊ ) हो तो ‘ ऊ ‘ बनता है। अथार्त सूत्र – अक: सवर्ण – दीर्घ: मतलब अक प्रत्याहार के बाद अगर सवर्ण हो तो दो मिलकर दीर्घ बनते हैं। दूसरे शब्दों में हम कहें तो जब दो सजातीय स्वर आस – पास आते हैं तब जो स्वर बनता है उसे सजातीय दीर्घ स्वर कहते हैं , इसी को स्वर संधि की दीर्घ संधि कहते हैं। इसे ह्रस्व संधि भी कहते हैं।

उदाहरण:-

  • अ+अ= आ

कल्प+अन्त= कल्पान्त
दिवस+अन्त= दिवसांत
परम+अर्थ= परमार्थ
अस्त+अचल= अस्ताचल
पुस्तक+अर्थी= पुस्तकार्थी
गीत+अंजलि= गीतांजलि

  • अ+आ= आ

गर्भ+आधान= गर्भाधान
रत्न+आकर= रत्नाकर
परम+आत्मा= परमात्मा
कुश+आसन= कुशासन
शुभ+आगमन= शुभागमन
आम+आशय= आमाशय
शिव+आलय= शिवालय
भय+आकुल= भयाकुल
देव+आलय= देवालय

  • आ+अ= आ

विद्या+अर्थी= विद्यार्थी
सेवा+अर्थ= सेवार्थ
विद्या+अभ्यास= विद्याभ्यास
तथा+अपि= तथापि
पूरा+अवशेष= पुरावशेष
कदा+अपि= कदापि

  • आ+आ= आ

महा+आशय= महाशय
प्रेक्षा+ आगार= प्रेक्षागार
विद्या+आलय= विद्यालय
वार्ता+आलाप= वार्तालाप
रचना+आत्मक= रचनात्मक

  • इ+इ= ई

कपि+इन्द्र= कपीन्द्र
अति+इव= अतीव
अति+इत= अतीत
मुनि+इन्द्र= मुनीन्द्र
कवि+इन्द्र= कवीन्द्र
अधि+इक्षण = अधीक्षण
रवि+इन्द्र= रवीन्द्र

  • इ+ई= ई

हरि+ईश= हरीश
कवि+ईश= कवीश
वारि+ईश= वारीश
परि+ईक्षण = परीक्षण

  • ई+इ= ई

मही+इन्द्र= महीन्द्र
सची+इन्द्र= सचीन्द्र
महती+इच्छा= महतीच्छा

  • ई+ई= ई

नदी+ईश= नदीश
जानकी+ईश= जानकीश
नारी+ईश्वर= नारीश्वर

  • उ+उ= ऊ

भानु+उदय= भानूदय
कटु+उक्ति= कटूक्ति
मृत्यु+उपरान्त= मृत्यूपरान्त
साधु+उपदेश= साधूपदेश

  • उ+ऊ= ऊ

लघु+ऊर्मि= लघूर्मि
सिन्धु+ऊर्मि= सिन्धूर्मी

  • ऊ+उ= ऊ

वधू+उत्सव= वधूत्सव
भू+उपरि= भूपरि

  • ऊ+ऊ= ऊ

भू+ऊर्ध्व= भूर्ध्व
सरयू+ऊर्मि= सरयुर्मि

गुण संधि (Gun Sandhi in Hindi)

जब अ या आ के बाद लघु या दीर्घ इ, उ, ऋ आये, तो दोनों स्थान पर क्रमश: ए, ओ, अर् हो जाता है. मतलब जब ( अ , आ ) के साथ ( इ , ई ) हो तो ‘ ए ‘ बनता है , जब ( अ , आ )के साथ ( उ , ऊ ) हो तो ‘ ओ ‘बनता है , जब ( अ , आ ) के साथ ( ऋ ) हो तो ‘ अर ‘ बनता है।

  • जैसे: अ+इ= ए

देव+इंद्र = देवेन्द्र
मृग+इंद्र= मृगेंद्र

  • आ+इ= ए

महा+इंद्र = महेंद्र

  • अ+ई=ए

नर+ईश = नरेश
परम+ईश्वर= परमेश्वर

  • आ+ई= ए

महा+ईश्वर = महेश्वर
रमा+ईश= रमेश

  • अ+उ= ओ

लोक+उपयोग= लोकोपयोग
पर+उपकार= परोपकार

  • आ+उ= ओ

महा+उत्सव= महोत्सव

  • आ+ऊ= ओ

गंगा+ऊर्मि = गंगोर्मि
महा+ऊर्जस्वी= महोर्जस्वी

  • अ+ऋ= अर्

देव+ऋषि= देवर्षि

  • आ+ऋ= अर्

राजा+ऋषि = राजर्षि

वृद्धि संधि (Vriddhi Sandhi in Hindi)

जब लघु या दीर्घ ‘अ’ के बाद ए, ऐ, ओ औ आये तो ए या ऐ के स्थान पर ‘ऐ’ और ओ या औ के स्थान पर ‘औ’ हो जाता है. मतलब जब ( अ , आ ) के साथ ( ए , ऐ ) हो तो ‘ ऐ ‘ बनता है और जब ( अ , आ ) के साथ ( ओ , औ ) हो तो ‘ औ ‘ बनता है।

  • जैसे:अ+ए= ऐ

परम+एषणा= परमैषणा

  • आ+ए= ऐ

तथा+एव= तथैव

  • आ+ऐ= ऐ

महा+ऐश्वर्य= महैश्वर्य

  • अ+ऐ= ऐ

धर्म+ऐक्य=धर्मैक्य

  • अ+ओ= औ

जल+ओक= जलौक

  • अ+औ=औ

परम+औषध= परमौषध

  • आ+ओ= औ

महा+ओज= महौज

  • आ+औ= औ

महा+औदार्य =महौदार्य

यण संधि (Yan Sandhi in Hindi)

जब लघु या दीर्घ इ, उ, ऋ, के उपरान्त कोई असमान स्वर आये, तो इ, उ, ऋ, के स्थान पर क्रमशः य, व, र हो जाता है. मतलब जब ( इ , ई ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ य ‘ बन जाता है , जब ( उ , ऊ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ व् ‘ बन जाता है , जब ( ऋ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ र ‘ बन जाता है।
यण संधि के तीन प्रकार के संधि युक्त्त पद होते हैं।

  1. य से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए।
  2. व् से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए।
  3. शब्द में त्र होना चाहिए।

यण संधि में एक शर्त भी दी गयी है कि य और त्र में स्वर होना चाहिए और उसी से बने हुए शुद्ध व् सार्थक स्वर को + के बाद लिखें।

  • जैसे: मधु+अरि: मध्वरि

इति+आदि= इत्यादि

  • इ+अ= य

यदि+अपि= यद्दपि

  • ई+अ= य

नदी+अर्पण= नद्द्यर्पण

  • इ+आ = या

अति+आचार = अत्याचार

  • ई+आ= या

देवी+आलय= देव्यालय

  • उ+अ= व

अनु+अय = अन्वय

  • ऊ+अ= व

वधू +अर्थ= वध्वर्थ

  • उ+आ= वा

भानु+आगमन= भान्वागमन
मधु+आलय= मध्वालय

  • ऊ+आ= वा

वधू+आगमन = वध्वागमन

  • ऋ+अ= र्

मातृ+अर्थ= मात्रार्थ

  • ऋ+आ= रा 

पितृ+आज्ञा= पित्राज्ञा

  • इ+उ= यु

प्रति+उपकार= प्रत्युपकार

  • इ+ऊ= यू 

प्रति+ऊष = प्रत्यूष

  • ई+ऊ= यू 

वाणी+ऊर्मि = वाणयूर्मि

  • उ+इ= वि  

अनु+इष्ट=अन्विष्ट
धातु+इक= धात्विक

  • उ+ई=  वी 

अनु+ईक्षण= अनुवीक्षण

  • ऊ+इ = वि 

वधू+इष्ट =वध्विष्ट

  • ऊ+ई=वी

वधू+ ईर्ष्या= वध्वीर्ष्या

अयादि संधि(Ayadi Sandhi in Hindi)

जब ए, ऐ, ओ, औ, के बाद कोई स्वर आये तो ए, ऐ, ओ, औ, के स्थान पर क्रमशः अय्, आय्, अव्, आव् हो जाता है. मतलब जब ( ए , ऐ , ओ , औ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ए – अय में , ऐ – आय में, ओ – अव में, औ – आव में बदल जाता है। य, व् से पहले व्यंजन पर अ, आ की मात्रा हो तो अयादि संधि हो सकती है लेकिन अगर और कोई विच्छेद न निकलता हो तो + के बाद वाले भाग को वैसा का वैसा लिखना होगा।

  • जैसे: ए+अ= अय्

शे+अन= शयन
ने+अन= नयन

  • ऐ+अ = आय् 

नै+अक= नायक
गै +अक= गायक

  • ओ+अ= अव्

भो+अन= भवन
पो+अन= पवन
हो+अन= हवन

  • औ+अ= आव् 

पौ+अक= पावक
धौ+अक= धावक

पूर्वरूप संधि (Purvroop Sandhi in Hindi)

जब ए या ओ के बाद ‘अ’ आये तो अ के स्थान पर पूर्व रूप अर्थात S चिन्ह हो जाता है

जैसे:

लोको +अयम् = लोकोSयम्
हरे+अत्र= हरेSत्र

Sandhi and Sandhi Vichchhed

व्यंजन संधि (Vyanjan Sandhi in Hindi)

अगर जिन दो वर्णों में संधि होती है और उनमे से पहला वर्ण यदि व्यंजन और दूसरा वर्ण यदि व्यंजन या स्वर हो तो जो विकार होगा उसे व्यंजन संधि कहते हैं. मतलब जब व्यंजन को व्यंजन या स्वर के साथ मिलाने से जो परिवर्तन होता है, उसे व्यंजन संधि कहते हैं।

मतलब जब किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मिलन किसी वर्ग के तीसरे या चौथे वर्ण से या य्, र्, ल्, व्, ह से या किसी स्वर से हो जाये तो क् को ग् , च् को ज् , ट् को ड् , त् को द् , और प् को ब् में बदल दिया जाता है अगर स्वर मिलता है तो जो स्वर की मात्रा होगी वो हलन्त वर्ण में लग जाएगी लेकिन अगर व्यंजन का मिलन होता है तो वे हलन्त ही रहेंगे।

व्यंजन संधि के नियम

1) यदि सकार या त वर्ग के साथ शकार या च वर्ग आये तो त वर्ग के स्थान पर च वर्ग हो जाता है

जैसे:

सत्+चयन= सच्च्यन

2) यदि त वर्ग के साथ ष या ट वर्ग आये तो त वर्ग की जगह कर्म से षकार और ट वर्ग हो जाते हैं

जैसे:

रामस्+टीकते = रामषटीकते

3) क्, च्, ट, त् और प् के पश्चात यदि किसी वर्ग का तीसरा या चौथा वर्ण आये या य, र, ल, व अथवा कोई स्वर आये तो क्, च्, ट, त् और प् के स्थान पर अपने ही वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है

जैसे:

अच्+अंत= अजन्त
वाक्+जाल= वाग्जाल

4) त् – द् के बाद यदि ल आये तो त् – द् में परिवर्तित हो जाता है और न् के पश्चात ल रहे तो न का अनुनासिक के साथ ल हो जाता है

जैसे:

उत् +लास = उल्लास

5) वर्गों के अंतिम वर्णों को छोड़कर अगर शेष वर्णों के बाद ह आये तो ह पहले वाले वर्ण के वर्ग का चौथा वर्ण हो जाता है और ह के पूर्व वर्ण वाला वर्ण अपने वर्ग का तीसरा वर्ण हो जाता है

जैसे:

उत् +हत= उद्दत
उत्+हार= उद्धार

6) यदि ह्रस्व स्वर के पश्चात छ हो तो छ के पूर्व च् जुड़ जाता है.

जैसे:

परि+छेद= परिच्छेद

7) यदि किसी पद के अंत में म आया हो और उसके बाद कोई व्यंजन वर्ण हो तो उसकी जगह अनुस्वार हो जाता है

जैसे:

गृहम्+गच्छति =गृहंगच्छति
हरिम्+बंदे= हरिंबंदे

व्यंजन संधि के कुछ नियम और उदाहरण

क् के ग् में बदलने के उदाहरण –

  • दिक् + अम्बर = दिगम्बर
  • दिक् + गज = दिग्गज
  • वाक् +ईश = वागीश

च् के ज् में बदलने के उदाहरण :-

  • अच् +अन्त = अजन्त
  • अच् + आदि =अजादी

ट् के ड् में बदलन के उदाहरण :-

  • षट् + आनन = षडानन
  • षट् + यन्त्र = षड्यन्त्र
  • षड्दर्शन = षट् + दर्शन
  • षड्विकार = षट् + विकार
  • षडंग = षट् + अंग

त् के द् में बदलने के उदाहरण :-

  • तत् + उपरान्त = तदुपरान्त
  • सदाशय = सत् + आशय
  • तदनन्तर = तत् + अनन्तर
  • उद्घाटन = उत् + घाटन
  • जगदम्बा = जगत् + अम्बा

प् के ब् में बदलने के उदाहरण :-

  • अप् + द = अब्द
  • अब्ज = अप् + ज

यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मिलन न या म वर्ण ( ङ,ञ ज, ण, न, म) के साथ हो तो क् को ङ्, च् को ज्, ट् को ण्, त् को न्, तथा प् को म् में बदल दिया जाता है।

उदाहरण :- क् के ङ् में बदलने के उदाहरण :-

  • वाक् + मय = वाङ्मय
  • दिङ्मण्डल = दिक् + मण्डल
  • प्राङ्मुख = प्राक् + मुख

ट् के ण् में बदलने के उदाहरण :-

  • षट् + मास = षण्मास
  • षट् + मूर्ति = षण्मूर्ति
  • षण्मुख = षट् + मुख

त् के न् में बदलने के उदाहरण :-

  • उत् + नति = उन्नति
  • जगत् + नाथ = जगन्नाथ
  • उत् + मूलन = उन्मूलन

प् के म् में बदलने के उदाहरण :-

  • अप् + मय = अम्मय

जब त् का मिलन ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व से या किसी स्वर से हो तो द् बन जाता है। म के साथ क से म तक के किसी भी वर्ण के मिलन पर ‘ म ‘ की जगह पर मिलन वाले वर्ण का अंतिम नासिक वर्ण बन जायेगा।

उदाहरण :- म् + क ख ग घ ङ के उदाहरण :-

  • सम् + कल्प = संकल्प/सटड्ढन्ल्प
  • सम् + ख्या = संख्या
  • सम् + गम = संगम
  • शंकर = शम् + कर

म् + च, छ, ज, झ, ञ के उदाहरण :-

  • सम् + चय = संचय
  • किम् + चित् = किंचित
  • सम् + जीवन = संजीवन

म् + ट, ठ, ड, ढ, ण के उदाहरण :-

  • दम् + ड = दण्ड/दंड
  • खम् + ड = खण्ड/खंड

म् + त, थ, द, ध, न के उदाहरण :-

  • सम् + तोष = सन्तोष/संतोष
  • किम् + नर = किन्नर
  • सम् + देह = सन्देह

म् + प, फ, ब, भ, म के उदाहरण :-

  • सम् + पूर्ण = सम्पूर्ण/संपूर्ण
  • सम् + भव = सम्भव/संभव

त् + ग , घ , ध , द , ब , भ ,य , र , व् के उदाहरण :-

  • सत् + भावना = सद्भावना
  • जगत् + ईश =जगदीश
  • भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति
  • तत् + रूप = तद्रूपत
  • सत् + धर्म = सद्धर्म

विसर्ग संधि (Visarg Sandhi in Hindi) 

विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के मिलने से जो विकार उत्पन्न होता है उसे विसर्ग संधि कहते हैं.

विसर्ग संधि के कुछ नियम निम्नलिखित है:

1) यदि विसर्ग से पहले और बाद भी ‘अ’ हो, तो पहले ‘अ’ और विसर्ग के स्थान पर ओ हो जाता है

जैसे:

अ: +अ = ओ
तेज:+असि = तेजोसि
यश:+अभिलाषी= यशोभिलाषी

2) यदि विसर्ग के बाद च, छ, या श हो तो विसर्ग का श हो जाता है

जैसे:

क: +चित: कश्चित्
दु:+ शासन = दुश्शासन
नि:+चल= निश्चल

3) यदि विसर्ग के बाद क, ख , प या फ हो तो ऐसी स्थिति में विसर्ग का रूप नहीं बदलता है

जैसे:

रज: +कण = रज:कण
पय:पान= पय:पान

4) यदि विसर्ग के बाद ट, ठ या ष हो तो विसर्ग का ष हो जाता है

जैसे:

दु:+ट = दुष्ट,
नह:+ट = नष्ट

5 ) यदि विसर्ग से पहले ‘इ’ या ‘उ’ आए और बाद में क, ख प या फ हो तो  विसर्ग का ष हो जाता है

जैसे:

नि:+काम = निष्काम
नि:+फल= निष्फल
नि:+पंक: निष्पंक
नि:+कपट= निष्कपट
नि:+ पाप= निष्पाप

6) यदि विसर्ग के बाद त, थ, या स हो  तो विसर्ग का स हो जाता है

जैसे:

मन:+ताप= मनस्ताप
नि:+संदेह= निस्संदेह

7) यदि विसर्ग से पहले अ या आ के अलावा कोई अन्य स्वर और उसके बाद पांचो वर्गों के तीसरे चौथे  पांचवें वर्ण या य र, ल व ह अथवा कोई स्वर हो तो विसर्ग का र हो जाता है

जैसे:

नि: +गुण= निर्गुण
नि:+भय = निर्भय
नि:+ लेप = निर्लेप
नि:+जल= निर्जल

8) यदि विसर्ग से पहले  कोई स्वर हो और बाद में र हो  तो विसर्ग का लोप हो जाता है और यदि विसर्ग का  पूर्व स्वर ह्रस्व हो,  तो वह दीर्घ  हो जाता है

जैसे:

नि:+रस= नीरस
नि:+रज= नीरज

9) यदि विसर्ग से पहले और बाद में अ हो,  तो  पहले अ का ओ  हो जाता है  और दूसरे अ का  लोप हो जाता है और उसके स्थान पर  चिन्ह ‘s’  बना देते हैं

जैसे:

प्रथम:+ अध्याय= प्रथमोsध्याय
मन:+ अनुसार= मनोs नुसार

10) यदि विसर्ग से पहले अ  आता है और बाद में अ के  अतिरिक्त कोई अन्य स्वर आता है,  तो विसर्ग का लोप हो जाता है

जैसे:

अत: +एव= अतएव

11) यदि विसर्ग से पहले अ या आ हो  और बाद में पांचों वर्गों के तीसरे चौथे पांचवें वर्ण या य, र, ल, व, ह हो तो अ का ओ हो जाता है

जैसे:

मन:+ज= मनोज
वय:+वृद्ध = वयोवृद्ध
यश:+दा= यशोदा

Sandhi and Sandhi Vichchhed

परीक्षा उपयोगी महत्वपूर्ण संधि विच्छेद (Most Important Sandhi Viched) 

(अ, आ)

अल्पायु = अल्प + आयु अनावृष्टि = अन + आवृष्टि
अत्यधिक = अति + अधिक अखिलेश्वर = अखि + ईश्वर
आत्मोत्सर्ग= आत्मा + उत्सर्ग अत्यावश्यक = अति + आवश्यक
अत्युष्म =अति +उष्म अन्वय=अनु +अय
अन्याय =अ+नि +आय अभ्युदय=अभि +उदय
अविष्कार=आविः +कार अन्वेषण=अनु +एषण
आशीर्वाद= आशीः+वाद अत्याचार= अति+आचार
अहंकार =अहम् +कार अन्वित=अनु+अय+इत
अभ्यागत= अभि +आगत अम्मय= अप्+मय
अभीष्ट= अभि+इष्ट अरण्याच्छादित= अरण्य+आच्छादित
अत्यन्त= अति+अन्त अत्राभाव= अत्र+अभाव
आच्छादन= आ+छादन अधीश्र्वर= अधि+ईश्र्वर
अधोगति= अधः+गति अन्तर्निहित= अन्तः+निहित
अब्ज= अप्+ज आकृष्ट= आकृष्+त
आद्यन्त= आदि+अन्त अन्तःपुर= अन्तः+पुर
अन्योन्याश्रय =अन्य+अन्य+आश्रय अन्यान्य =अन्य+अन्य
अहर्निश =अहः+निश अजन्त =अच्+अन्त
आत्मोत्सर्ग =आत्म+उत्सर्ग अत्युत्तम= अति+उत्तम
अंतःकरण= अंतः + करण अन्तनिर्हित= अन्तः + निहित
अन्तर्गत= अन्तः + गत अन्तस्तल = अंतः + तल
अंतर्ध्यान= अंत + ध्यान अन्योक्ति= अन्य + उक्ति
अनायास= अन् + आयास अधपका= आधा + पका
अनुचित= अन् + उचित अनूप= अन् + ऊप
अनुपमेय= अन् + उपमेय अन्तर्राष्ट्रीय= अन्तः + राष्ट्रीय
अनंग= अन् + अंग अनन्त= अन् + अंत
अनन्य= अन् + अन्य अतएव= अतः + एव
अध्याय= अधि + आय अध्ययन= अधि + अयन
अधीश= अधि + ईश अधीश्वर= अधि + ईश्वर
अधिकांश= अधिक + अंश अधरोष्ठ= अधर + ओष्ठ
अवच्छेद= अव + छेद अभ्यस्त= अभि + अस्त
अभ्यागत= अभि + आगत अभिषेक= अभि + सेक
अस्तित्व= अस्ति + त्व अहर्मुख= अहर + मुख
अहोरूप= अहः + रूप अज्ञानांधकार= अज्ञान + अंधकार
आश्चर्य= आ + चर्य आशोन्मुख= आशा + उन्मुख
आत्मावलम्बन= आत्मा + अवलम्बन आध्यात्मिक= आधि + आत्मिक

( इ, ई, उ, ऊ, ए )

इत्यादि = इति + आदि इतस्ततः= इतः + ततः
ईश्र्वरेच्छा =ईश्र्वर+इच्छा उन्मत्त =उत् +मत्त
उपर्युक्त =उपरि +उक्त उन्माद =उत् +माद
उपेक्षा =उप+ईक्षा उच्चारण=उत् +चारण
उल्लास =उत् +लास उज्ज्वल =उत् +ज्वल
उद्धार =उत् +हार उदय =उत् +अय
उदभव=उत् +भव उल्लेख =उत् +लेख
उत्रति =उत्+नति उन्मूलित =उत्+मूलित
उल्लंघन=उत्+लंघन उद्याम =उत्+दाम
उच्छ्वास =उत्+श्र्वास उत्रायक =उत्+नायक
उन्मत्त=उत्+मत्त उत्रयन =उत्+नयन
उद्धत =उत्+हत उपदेशान्तर्गत =उपदेश+अन्तर्गत
उन्मीलित =उत्+मीलित उद्योग=उत्+योग
उड्डयन =उत्+डयन उद्घाटन = उत्+घाटन
उच्छित्र =उत्+छित्र उच्छिष्ट =उत्+शिष्ट
उत्कृष्ट=उत्कृष् + त उद्यान= उत् + यान
उत्तमोत्तम= उत्तम + उत्तम उतेजना= उत् + तेजना
उत्तरोत्तर= उत्तर + उत्तर उदयोन्मुख= उदय + उन्मुख
उद्वेग= उत् + वेग उद्देश्य= उत् + देश्य
उद्धरण= उत् + हरण उदाहरण= उत् + आहरण
उद्गम=उत् +गम उद्भाषित= उत् + भाषित
उन्नायक= उत् + नायक उपास्य= उप + आस्य
उपर्युक्त= उपरि + उक्त उपयोगिता= उप + योगिता
उपनिदेशक= उप + देशक उपाधि= उप + आधि
उपासना= उप + आसना ऊहापोह= ऊह + अपोह
उपदेशान्तर्गत= उपदेश + अन्तः + गत एकाकार= एक + आकार
एकाध= एक +आध एकासन= एक + आसन
एकोनविंश= एक + उनविंश एकान्त= एक + अंत
एकैक=एक+एक कृदन्त=कृत् +अन्त

Sandhi and Sandhi Vichchhed

(क, ग, घ )

कल्पान्त =कल्प+अन्त कुर्मावतार= कूर्म + अवतार
क्रोधाग्नि= क्रोध + अग्नि कालांतर = काल + अंतर
कित्रर =किम्+नर किंचित् = किम्+चित
कंठोष्ठय= कंठ + ओष्ठ्य कपलेश्वर= कपिल + ईश्वर
कपीश= कपि + ईश कवीन्द्र= कवि + इन्द्र
कवीश्वर= कवि + ईश्वर कपीश्वर= कपि + ईश्वर
किंवा= किम् + वा किन्तु= किम् + तु
कूपोदक= कूप + उदक कुशाग्र= कुश + अग्र
कुशासन= कुश + आसन कुसुमायुध= कुसुम + आयुध
कुठाराघात= कुठार + आघात कोणार्क= कोण + अर्क
क्रोधान्ध= क्रोध + अंध कोषाध्यक्ष= कोष + अध्यक्ष
कौमी= कौम + ई कृतान्त= कृत + अंत
कीटाणु= कीट + अणु खगासन= खग + आसन
खटमल= खाट + मल गवीश= गो + ईश
गणेश= गण + ईश गंगौघ= गंगा + ओघ
गंगोदक= गंगा + उदक गंगैश्वर्य= गंगा + ऐश्वर्य
ग्रामोद्धार= ग्राम + उद्धार गायन= गै + अन
गिरीन्द्र= गिरि + इन्द्र गुडाकेश= गुडाका + ईश
गुप्पचति= गुब + पचति गिरीश= गिरि + ईश
गुरुत्वाकर्षण= गुरुत्व + आकर्षण गौरवान्वित= गौरव + अन्वित
घड़घड़ाहट= घड़घड़ + आहट घनानंद= घन + आनंद
घुड़दौड़= घोड़ा + दौड़  

(च, छ, ज )

चतुरानन= चतुर + आनन चतुर्भुज= चतुः + भुज
चन्द्रोदय=चन्द्र+उदय चरणामृत=चरण+अमृत
चतुष्पाद= चतुः+पाद चयन=चे+अन
चिकित्सालय=चिकित्सा+आलय चिन्मय=चित्+मय
चतुर्दिक= चतुः + दिक् चतुरंग= चतुः + अंग
चूड़ान्त= चूड़ा + अंत चिन्ताक्रान्त= चिंता + आक्रान्त
छिद्रान्वेषी= छिद्र + अनु + एषी छुटपन= छोटा + पन
छुटभैया= छोटा + भैया जगदीन्द्र= जगत् + इन्द्र
जगज्जय= जगत् + जय जगन्नियन्ता= जगत् + नियन्ता
जगद्बन्धु= जगत् + बन्धु जनतैक्य= जनता + ऐक्य
जनतौत्सुक्य= जनता + औत्सुक्य ज्योतिर्मठ= ज्योतिः + मठ
जलौघ= जल + ओघ जानकीश= जानकी + ईश
जागृतावस्था= जागृत + अवस्था जात्यभिमानी= जाति + अभिमानी
जीवनानुकूल= जीवन + अनुकूल जीवनोपयोगी= जीवन + उपयोगी
जीवनोपार्जन= जीवन + उपार्जन जीविकार्थ= जीविका + अर्थ
जीर्णोद्धार = जीर्ण + उद्धार जगदीश= जगत्+ईश
जलोर्मि= जल+ऊर्मि झड़बेरी= झाड़ + बेड़
झंडोत्तोलन= झंडा + उत्तोलन झगड़ालू= झगड़ा + आलू

(ट, ठ, ड, ढ़ )

टुकड़तोड़= टुकड़ा + तोड़ टुटपूँजिया= टूटी + पूँजी
ठाढ़ेश्वरी= ठाढ़ा + ईश्वरी ठकुरसुहाती= ठाकुर + सुहाना
डंडपेल= डंड + पेलना डिठौना= डीठ + औना
ढँढोरिया= ढँढोरा + इया ढकोसला= ढंक + कौशल

(त, थ)

तथैव =तथा +एव तृष्णा =तृष +ना
तपोवन =तपः +वन तल्लीन=तत्+लीन
तपोभूमि=तपः +भूमि तेजोराशि=तेजः +राशि
तिरस्कार=तिरः +कार तथापि =तथा +अपि
तेजोमय =तेजः +मय तथास्तु = तथा + अस्तु
तमसावृत = तमसा + आवृत तेजोपुंज =तेजः+पुंज
तद्रूप =तत्+रूप तदाकार =तत्+आकार
तद्धित =तत्+हित तद्रूप=तत्+रूप
तट्टीका=तत्+टीका तेनादिष्ट=तेन+अदिष्ट
तज्जय= तत् + जय तच्छरण= तत् + शरण
तच्छरीर= तत् + शरीर तद्धवि= तत् + हवि
तदिह= तत् + इह तदस्ति= तत् + अस्ति
तदाम्य= तत् + आत्म्य तन्मय= तत् + मय
तत्त्व= तत् + त्व तल्लय= तत् + लय
तच्छिव= तत् + शिव त्वगिन्द्रय= त्वक + इन्द्रिय
तिरस्कृत= तिरः + कृत तेऽपि= ते + अपि
तत्तनोति= तद + तनोति तृष्णा= तृष् + ना
तेऽद्र= ते + अद्र तेजआभास= तेजः + आभास
तस्मिन्नारमे= तस्मिन + आरामे त्रिलोकेश्वर= त्रिलोक + ईश्वर
तदुपरान्त= तत् + उपरान्त थनैला= थन + ऐला
थुक्काफजीहत= थूक + फजीहत  

Sandhi and Sandhi Vichchhed

(द )

देवेन्द्र=देव +इन्द्र दुर्नीति=दुः +नीति
दावानल=दाव+अनल दिग्गज=दिक् +गज
दुर्धर्ष=दुः +धर्ष दिग्भ्रम=दिक+भ्रम
दुर्दिन=दुः+दिन दुर्वह=दुः+वह
देवर्षि=देव+ऋषि दुनीति=दुः +नीति
दुर्ग=दुः +ग दुश्शासन =दुः +शासन
दिगम्बर =दिक् +अम्बर देवेश =देव +ईश
दुःस्थल =दुः +स्थल दुस्तर =दुः +तर
देव्यागम=देवी +आगम दुष्कर =दुः +कर
दुर्जन =दुः +जन दोषारोपण = दोष + आरोपण
देहांत =देह+अंत देवैश्र्वर्य=देव+ऐश्र्वर्य
देवालय=देव+आलय दैव्यंग=देवी+अंग
दुष्परिणाम= दुः + परिणाम दुर्बलता= दुः + बलता
दुर्घटना= दुः + घटना देशान्तर= देश + अंतर
देशाभिमान= देश + अभिमान देशानुराग= देश + अनुराग
देवैश्वर्य= देव + ऐश्वर्य देवीच्छा= देवी + इच्छा
दैन्यावस्था= दैन्य + अवस्था दैन्यादि= दैन्य + आदि
दृष्टि= दृष् + ति दृष्टान्त= दृष्ट + अंत
दन्त्योष्ठ्य= दन्त + ओष्ठ्य दिगन्त= दिक् + अंत
दिनेश= दिन + ईश दिग्भाग= दिक् + भाग
दिग्हस्ती= दिक् + हस्ती दुर्लभ= दुः + लभ
दुःखात्मक= दुख + आत्मक दुर्बल= दुः + बल
दुरन्त= दुः + अंत दुस्साहस= दुः + साहस
दुरुप्रयोग= दुः + उपयोग दुष्कर्म= दुः + कर्म
दुःख= दुः + ख दुःखान्त= दुःख + अंत
दुस्तर= दुः + तर दुर्निवार= दुः + निवार

Sandhi and Sandhi Vichchhed

( ध )

धनान्ध= धन + अन्ध धनुर्धर= धनुः + धर
धनुष्टंकार= धनुः + टंकार धनित्व= धनिन + त्व
धर्मोपदेश= धर्म + उपदेश धर्माधिकारी= धर्म + अधिकारी
ध्यानावस्थित= ध्यान + अवस्थित  

(न)

नमस्कार=नमः +कार नाविक =नौ +इक
निस्सन्देह =निः +सन्देह निराधार =निः +आधार
निस्सहाय=निः +सहाय निर्भर=निः +भर
निष्कपट=निः +कपट नीरोग =निः +रोग
नयन =ने+अन निश्छल=निः +छल
निरन्तर=निः +अन्तर निर्गुण =निः +गुण
नायक=नै +अक निस्सार =निः +सार
निर्मल=निः +मल निस्तार =निः +तार
नीरव =निः +रव नरोत्तम = नर + उत्तम
निम्नाकित= निम्न + अंकित नारीश्र्वर=नारी+ईश्र्वर
नागाधिराज= नाग + अधिराज नद्यूर्मि=नदी+उर्मि
निश्र्चिन्त=निः+चिन्त निश्र्चय=निः+चय
निर्विकार=निः+विकार निरुपाय=निः+उपाय
नद्यम्बु=नदी+अम्बु नदीश=नदी+ईश
निस्सृत=निः+सृत निरीक्षण =निः+ईक्षण
निष्काम=निः+काम निरर्थक=निः+अर्थक
निष्प्राण=निः+प्राण निरुद्देश्य=निः+उद्देश्य
निष्फल=निः+फल निर्जल=निः+जल
नारायण=नार+अयन न्यून=निः+ऊन
निश्र्चल=निः+चल निरीह=निः+ईह
निषिद्ध=निः+सिद्ध निर्विवाद=निः+विवाद
निर्झर=निः+झर निश्शब्द =निः+शब्द
निष्कारण=निः+कारण नीरव=निः+रव
निस्संतान=निः+संतान नमस्ते=नमः+ते
नरेंद्र=नर+इंद्र निराशा=निः+आशा
निराहार=निः+आहार नारींदु=नारी+इंदु
नवोऽकुंर= नव + अंकुर नरेश= नर + ईश
नास्ति= न + अस्ति नवोढा= नव + उढ़ा
नष्ट= नष् + त न्यून= नि + ऊन
नयनाभिराम= नयन + अभिराम नद्यर्पण= नदी + अर्पण
निष्पाप= निः + पाप निष्पक्ष= निः + पक्ष
निस्तांर= निः + तार निर्धन= निः + धन
निर्माण= निः + मान निर्दोष= निः + दोष
निस्तेज= निः +तेज निर्घोषित= निः + घोषित
निर्भीकता= निः + भीकता निरर्थ= निः + अर्थ
निरौषध= निः + औषध निर्हस्त= निः + हस्त
निरिच्छा= निः + इच्छा निराशा= निः + आशा
निश्छिद्र= निः + छिद्र निषिद्ध= निः + सिद्ध
निरन्तर= निः + अंतर निर्वासित= निः + वासित
निरेफ= निः + रेफ निरन्ध्र= निः + रन्ध्र
निराधार= निः + आधार निरक्षर= निः + अक्षर
निगमागम= निगम + आगम निर्जीव= निः + जीव
निर्बल= निः + बल निर्बलात्मा= निर्बल + आत्मा
निर्दोष= निः + दोष निराकार= निः + आकार
निर्णय= निः + नय निर्भर= निः + भर
निर्द्वन्द्व= निः + द्वन्द्व निश्चित= निः + चित
निश्चय= निः + चय निष्क्रिय= निः + क्रिय
निर्विरोध= निः + विरोध न्यूनातिन्यून= न्यून + अति
नियमानुसार= नियम + अनुसार  

(प)

परमार्थ= परम +अर्थ पीताम्बर= पीत +अम्बर
परिणाम= परि+नाम प्रमाण= प्र+मान
पयोधि= पयः+धि पुस्तकालय= पुस्तक + आलय
प्रधानाध्यापक = प्रधान + अध्यापक परोपकार = पर + उपकार
परमेश्र्वर = परम + ईश्र्वर पदोन्नति = पद + उन्नति
प्रत्येक = प्रति + एक परमावश्यक= परम + आवश्यक
प्रत्यक्ष = प्रति + अक्ष प्रत्याघात = प्रति + अघात
पुलकावली = पुलक + अवलि परन्तु =परम् +तु
पावक =पौ +अक पुरुषोत्तम=पुरुष +उत्तम
पवन =पो +अन पुरस्कार=पुरः +कार
परीक्षा=परि+ईक्षा पयोद =पयः +द
परमौजस्वी=परम+ओजस्वी पित्रादेश =पितृ+आदेश
पवित्र=पो+इत्र प्रत्यय=प्रति+अय
पृष्ठ=पृष्+थ प्रातःकाल=प्रातः+काल
पृथ्वीश=पृथ्वी+ईश पावन=पौ+अन
पंचम=पम्+चम प्रत्युत्तर=प्रति+उत्तर
पित्रिच्छा=पितृ+इच्छा पुनर्जन्म=पुनः+जन्म
परिच्छेद=परि+छेद प्रांगण=प्र+अंगण
प्रतिच्छाया=प्रति+छाया प्रथमोऽध्यायः=प्रथमः+अध्यायः
परमौषध=परम+औषध पुरुषोत्तम=पुरुष+उत्तम
पित्रनुमति=पितृ+अनुमति पुनरुक्ति=पुनः+उक्ति
पश्र्वधम=पशु+अधम प्रोत्साहन=प्र+उत्साहन
पुरोहित = पुरः+हित परिष्कार=परिः+कार
पुनर्जन्म= पुनर +जन्म परमैश्वर्य= परम + ऐश्वर्य
पच्छाक= पच + शाक पदाक्रान्त= पद + आक्रान्त
परमाद्रि= परम + आद्रि पराधीन= पर + अधीन
परमाणु= परम + अणु परिच्छेद= परि + छेद
पर्यान्त= परि + आप्त पश्वधम= पशु + अधम
पयोमन= पयः + मान पंचांग= पंच + अंग
पितृऋण= पितृ + ऋण पित्रादि= पितृ + आदि
पितारक्ष= पितः + रक्ष पुरस्कृत= पुरः + कृत
पुनरुक्ति= पुनः + उक्ति पुष्ट= पुष् + त
पुनरुत्थान= पुनः + उत्थान पुनर्रचना= पुनः + रचना
प्रहार= प्र + हार प्रत्याचरण= प्रति + आचरण
प्रतीत= प्रति + इत प्रत्यारुयान= प्रति + आरुयान
प्रजार्थ= प्रजा + अर्थ प्रत्यक्षात्मा= प्रत्यक्ष + आत्मा
प्रत्युपकार= प्रति + उपकार प्रत्युत्पन्न= प्रति + उत्पन्न
प्रतिच्छवि= प्रति + छवि प्रलयंकर= प्रलयम + कर
प्रार्थना= प्र + अर्थना प्राणिमात्र= प्राणिन + मात्र
प्राणेश्वर= प्राण + ईश्वर प्रोत्साह= प्र + उत्साह
प्रोज्ज्वल= प्र + उज्ज्वल प्रौढ़= प्र + उढ़

( फ, ब )

फलाहारी= फल + आहारी फलागम= फल + आगम
बलात्कार= बलात् + कार बहिर्देश= बहिः + देश
बहिर्भाग= बहिः + भाग बिंबोष्ठय= बिंब + ओष्ठ्य
बृहद्रथ= बृहत् + रथ ब्रह्मास्त्र= ब्रह्म + अस्त्र
ब्रह्मानन्द= ब्रह्म + आनन्द ब्रह्मर्षि= ब्रह्म + ऋषि
बहिर्मुख= बहिः + मुख बहिष्कार= बहिः + कार

Sandhi and Sandhi Vichchhed

(भ)

भवन =भो +अन भोजनालय =भोजन +आलय
भानूदय=भानु+उदय भाग्योदय =भाग्य +उदय
भावुक=भौ+उक भूषण=भूष्+अन
भूष्मा=भू+ऊष्मा भूत्तम=भू+उत्तम
भगवद्गीता= भगवत् + गीता भरण= भर + अन
भारतेन्दु= भारत + इन्दु भाविनी= भौ + इनी
भास्कर= भाः + कर भास्पति= भाः + पति
भावोन्मेष= भाव + उन्मेष भिन्न= भिद् + न
भूर्जित= भू + उर्जित भूदार= भू + उदार
भगवद्भक्ति= भगवत् + भक्ति भविष्यद्वाणी= भविष्यत् + वाणी

(म )

मुनीन्द्र=मुनि+इन्द्र महीन्द्र=मही +इन्द्र
मृण्मय=मृत्+मय मातृण=मातृ+ऋण
महोर्मि=महा+ऊर्मि मतैक्य=मत+ऐक्य
महौज=महा+ओज मन्वन्तर=मनु+अन्तर
महार्णव=महा+अर्णव मनोयोग=मनः+योग
महौषध=महा+औषध मध्वासव=मधु+आसव
मृगेन्द्र=मृग+इन्द्र मनोऽनुकूल=मनः+अनुकूल
महेश्र्वर=महा+ईश्र्वर महेन्द्र=महा+इन्द्र
देव्यर्पण=देवी+अर्पण मंगलाकार= मंगल + आकार
मत्स्याकार = मत्स्य + आकार मध्यावकाश = मध्य + अवकाश
महोदय= महा + उदय मतानुसार= मत + अनुसार
महर्षि= महा + ऋषि महोत्सव= महा + उत्सव
मरणोत्तर = मरण+उत्तर मदांध= मद+अंध
महत्वाकांक्षा= महत्व+आकांक्षा मनोगत= मनः+गत
महेश= महा+ईश मनोविकार= मनः+विकार
महाशय= महा+आशय मनोज= मनः+ज
मनोरथ=मनः +रथ मनोहर= मनः+हर
मनोभाव= मनः+भाव महर्षि= महा+ऋषि
महैश्र्वर्य= महा+ऐश्र्वर्य मनोबल= मनः+बल
मकराकृत= मकर + आकृत मतैक्ता= मत + एकता
मनस्पात= मनः + ताप मनोरंजन= मनः + रंजन
मनोवैज्ञानिक= मनः + वैज्ञानिक मनोऽनुसार= मनः + अनुसार
मनोनीत= मनः + नीत मनोऽवधान= मनः + अवधान
महच्छत्र= महत् + छत्र महात्मा= महा + आत्मा
महत्व= महत् + त्व महदोज= महत् + ओज
महीश्वर= मही + ईश्वर महालाभ= महान + लाभ
महोरु= महा + ऊरु महौज= महा + ओज
महौदार्य= महा + औदार्य महौषधि= महा + औषधि
मायाधीन= माया + अधीन मातृऋण= मातृ + ऋण
मात्रानन्द= मातृ + आनन्द मुनीश्वर= मुनि + ईश्वर
मन्त्रोच्चारण= मंत्र + उत् + चारण महामात्य= महा + अमात्य

Sandhi and Sandhi Vichchhed

(य )

यथेष्ट= यथा + इष्ट यद्यपि= यदि + अपि
यशोऽभिलाषी= यशः+अभिलाषी योजनावधि = योजन + अवधि
युगानुसार= युग+अनुसार यथोचित = यथा +उचित
यशइच्छा=यशः +इच्छा यशोदा =यशः+दा
युधिष्ठिर =युधि+स्थिर यशोधरा=यशः+धरा
यशोधन=यशः+धन यवनावनि= यवन + अवनि
यज्ञ= यज + न यशोलाभ= यशः + लाभ
योऽसि= यो + असि  

Sandhi and Sandhi Vichchhed

( र, ल )

रत्नाकर= रत्न+आकर राजर्षि= राज+ऋषि
रहस्योदघाटन = रहस्य + उद्घाटन राज्यगार= राज्य + आगार
राज्याभिषेक= राज्य + अभिषेख रमेश =रमा+ईश
रामायण=राम +अयन रवींद्र= रवि+इंद्र
रजकण= रजः + कण रसातल= रसा + अतल
रसास्वादन= रस + आस्वादन राजाज्ञा= राजा + आज्ञा
रामावतार= राम + अवतार रुद्रावतार= रूद्र + अवतार
रेखांश= रेखा + अंश रसायन= रस + अयन
रहस्याधिकारी= रहस्य + अधिकारी लक्ष्मीश= लक्ष्मी + ईश
लोकोक्ति = लोक + उक्ति लघूर्मि=लघु+ऊर्मि
लोकोत्तर= लोक + उत्तर लोकोपकार= लोक + उपकार
लम्बोदर= लम्ब + उदर  

Sandhi and Sandhi Vichchhed

( व )

वागीश= वाक्+ईश वीरांगणा= वीर+अंगना
वाग्जाल= वाक्+जाल विपज्जाल= विपद्+जाल
व्युत्पत्ति=वि+उत्पत्ति व्यर्थ=वि +अर्थ
विद्योत्रति=विद्या+उत्रति वयोवृद्ध=वयः+वृद्ध
व्याप्त=वि +आप्त बहिष्कार=बहिः+कार
विद्यालय = विद्या + आलय विद्याध्ययन= विद्या + अध्ययन
विद्दोत्मा = विद्या + उत्तमा वधूत्सव =वधू +उत्सव
व्ययामादी= व्यायाम + आदि व्यायाम=वि +आयाम
वसुधैव=वसुधा +एव व्याकुल=वि +आकुल
विद्यार्थी= विद्या+अर्थी विषम=वि+सम
विधूदय=विधु+उदय वनौषधि=वन+ओषधि
वधूत्सव=वधू+उत्सव वधूर्जा=वधू+ऊर्जा
वधूल्लेख=वधू+उल्लेख वध्वैश्र्वर्य=वधू + ऐश्र्वर्य
वधूर्मिका= वधू + उर्मिका वनस्पति= वनः + पति
व्यस्त= वि + अस्त व्यवहार= वि + अवहार
व्यभिचार= वि + अभिचार व्यापकता= वि + आपकता
व्यापी= वि + आपी व्यापक= वि + आपक
वार्तालाप= वार्ता + आलाप वातावरण= वात + आवरण
वाग्रोध= वाक् + रोध वारीश= वारि + ईश
वाग्दान= वाक् + दान विच्छेद= वि + छेद
विद्योपदेश= विद्या + उपदेश विन्यास= वि + नि + आस
विमलोदक= विमल + उदक विपल्लीन= विपद् + लीन
विश्वामित्र= विश्व + अमित्र वधूचित= वधू + उचित
विस्मरण= वि + स्मरण वृद्धावस्था= वृद्ध + अवस्था
वृक्षच्छाया= वृक्ष + छाया वृहदाकार= वृहत् + आकार
विशेषोन्मुख= विशेष + उन्मुख विरुदावली= विरुद + अवली

Sandhi and Sandhi Vichchhed

(श, ष, स )

शंकर =शम् +कर शिरोमणि=शिरः +मणि
शशांक= शश+अंक शस्त्रास्त्र=शस्त्र+अस्त्र
शताब्दी= शत + अब्दी शरच्चंद्र= शरत् + चन्द्र
शिलारोपण= शिला + आरोपण शुद्धोदन= शुद्ध + ओदन
शेषांश= शेष + अंश शीघ्रातिशीघ्र= शीघ्र + अतिशीघ्र
श्वासोच्छवास= श्वास + उत् षोडशोपचार= षोडस + उपचार
सदहस्ती= सत् + हस्ती संतुष्ट= सम् + तुष्ट
संदेह= सम् + देश संघर्ष= सम् + घर्ष
समाचार= सम् + आचार संकट= सम् + कल्प
समालोचना= सम् + आलोचना सर्वोच्च= सर्व + उच्च
सम्मुख= सम् +मुख सत्कार= सत् + कार
सद्गुरु= सत् +गुरु सज्जन=सत् +जन
संसार=सम् +सार सदाचार= सत् +आचार
संयम= सम+यम स्वाधीन= स्व+अधीन
साश्र्चर्य= स+आश्र्चर्य सावधान= स+अवधान
सच्चरित्र= सत+चरित्र सदभाव=सत+भाव
सन्धि=सम+धि स्वर्ग= स्वः+ग
शुद्धोदन= शुद्ध+ओदन स्वार्थ= स्व+अर्थ
सदभावना= सत+भावना सच्छास्त्र=सत्+शास्त्र
संचय=सम+चय संवाद=सम् +वाद
सीमान्त=सीमा+अंत सप्तर्षि= सप्त+ऋषि
समन्वय= सम् +अनु +अय सत्याग्रह= सत्य+आग्रह
संगठन= सम+गठन सद्विचार=सत्+विचार
समुच्चय= सम+उत्+चय सर्वोदय= सर्व+उदय
संकोच= सम् + कोच श्रेयस्कर=श्रेयः +कर
सुरेन्द्र= सुर+इन्द्र सदानन्द= सत्+आनन्द
सद्धर्म= सत्+धर्म संकल्प= सम् +कल्प
संयोग= सम् +योग संयम =सम् +यम
संवत्= सम+वत् साष्टाग= स+अष्ट+अंग
सर्वोत्तम= सर्व+उत्तम सत्रिहित= सत्+निहित
समुदाय= सम+उत्+आय सूर्योदय= सूर्य+उदय
सदवाणी= सत्+वाणी स्वयम्भूदय= स्वयम्भू+उदय
संतप्त= सम् + तप्त षड्दर्शन= षट्+दर्शन
स्वाध्याय= स्व + अध्याय सर्वाधिक = सर्व + अधिक
सर्वोच्च= सर्व + उच्च सत्याग्रही = सत्य + आग्रही
स्वाभिमानी = स्व + अभिमानी सर्वोत्तम= सर्व + उत्तम
स्वालंबन = स्व + अवलंबन स्वर्णाक्षरों = स्वर्ण + अक्षरों
स्वाध्याय = स्व + अध्याय स्वाधीनता= स्व + आधीनता
सत्याग्रह = सत्य + आग्रह शरीरांत= शरीर + अंत
सदुत्तर= सत् + उत्तर स्वागत =सु+आगत
सन्तोष=सम् +तोष सरोज =सरः +ज
सद्वंश= सत् + वंश सरोवर =सरः +वर
सतीश =सती +ईश सदैव =सदा +एव
षडानन= षट्+आनन षण्मास= षट्+मास
संकल्प= सम् +कल्प संपूर्ण= सम्+पूर्ण
संबंध= सम् +बंध संरक्षण= सम्+रक्षण
संवाद= सम्+वाद संविधान= सम्+विधान
संसार= सम्+सार सज्जन= सत्+जन
सम्मान= सम्+मान सम्मति= सम्+मति
स्वच्छंद= स्व +छंद स्वागत= सु+आगत
सन्नद= सत् +नद संहारैषण= संहार + एषण
समीक्षा= सम् + ईक्षा समुचित= सम् + उचित
संस्कृति= सम् + कृति संगीत= सम् + गीत
संगठन= सम् + गठन संदेह= सम् + देह
सन्तान= सम् +तान सदुप्रयोग= सत् +उपयोग
संसर्ग= सम् + सर्ग सत्यासक्त= सत्य + आसक्त
सर्वोदय= सर्व + उदय समाधान= सम् + आधान
सदिच्छा= सत् + इच्छा समालोचक= सम् + आलोचक
सतीच्छा= सती + इच्छा सदवतार= सत् + अवतार
सत्कार= सत् + कार सम्राज = सम् + राज
संकीर्ण= सम् + कीर्ण संयोग= सम् + योग
संभव= सम् + भव संयुक्त= सम् + युक्त
संग्राम= सम् + ग्राम सहायतार्थ= सहायता + अर्थ
सज्जन= सत् + जन सत्साहित्य= सत् + साहित्य
संलग्न= सम् + लग्न संघाराम= संघ + आराम
सर्वोपरि= सर्व + उपरि सर्वागीण= सर्व + अंगीन
सारांश= सार + अंश साश्चर्य= स + आश्चर्य
साग्रह= स + आग्रह सावधान= स + अवधान
साधूहा= साधु + उहा सिद्धांत= सिद्ध + अन्त
सिहांसन= सिंह + आसन सुधेच्छा= सुधा + इच्छा
सुन्दरौदन= सुन्दर + ओदन सुरानुकूल= सुर + अनुकूल
सेवार्थ= सेवा + अर्थ सोत्साह= स + उत्साह
सोऽहम= सः + अहम् स्वार्थ= स्व + अर्थ
स्वेच्छा= स्व + इच्छा सहोदर= सह + उदर
सम्मति= सम् + मति स्वैर= स्व + ईर
स्वाधीन= स्व + अधीन सज्जाति= सत् + जाति
समुदाय= सम् + उदाय समुद्रोर्मि= समुद्र + उर्मि
समृद्धि= सम् + ऋद्धि सख्युचित= सखी + उचित
सच्छात्र= सत् + शास्त्र संभव= सम् + भव
संपूर्ण= सम् + पूर्ण संक्रान्ति= सम् + क्रान्ति
संहार= सम् + हार संवत्= सम् + वत्
संसार= सम् + सार संपर्क= सम् + पर्क
सन्धि= सम् + धि संगम= सम् + गम
संकोच= सम् + कोच संचय= सम् + चय
स्थानान्तर= स्थान + अंतर स्वच्छन्द= स्व + छन्द
स्वात्मबल= स्व + आत्मबल सुखोपभोग= सुख + उपभोग
साभिलाष= स + अभिलाष सावकाश= स + अवकाश
सम्मानास्पद= सम् + मान + आस्पद संग्रहालय= सम् + ग्रह + आलय
सदसद्विवेकिनी= सत् + असत् + विवेकिनी सच्चिदानन्द= सत् + चित् + आनन्द
सर्वतोभावेन= सर्वतः + भावेन स्वर्गारोहण= स्वर्ग + आरोहण
स्वेच्छाचारी= स्वेच्छा + आचारी  

(ह, ज्ञ )

हिमांचल = हिम + अंचल हिमालय= हिम + आलय
हरिश्चन्द्र= हरिः + चन्द्र ह्रदयानन्द= ह्रदय + आनन्द
हताश= हत + आश हितोपदेश= हित + उपदेश
हरीच्छा= हरि + इच्छा ह्रदयहारिणी= ह्रदय + हारिणी
हिमाच्छादित= हिम + आच्छादित हरेक= हर + एक
ज्ञानोपदेश= ज्ञान+उपदेश हृद्येश= हृद् + देश

कुछ अन्य संधि- विच्छेद

संधिसंधि-विच्छेद 
1रामाधार राम +आधार
2कामारि काम +अरि
3गिरीश गिरि +ईश
4भानूदय भानु +उदय
5पितृणम्पितृ +ऋणम्
6सर्वोदय सर्व+ उदय
7महर्षि महा +ऋषि
8सदैव सदा +एव
9महौषध महा +औषध
10यद्द्पि यदि +अपि
11स्वागतम सु +आगतम
12अभ्युक्ति अभि +उक्ति
13सच्चरित्र सत् +चरित्र
14दुष्कर्म दु: +कर्म
15दुराक्रमण दु: +आक्रमण
16दिगंत दिक् +अंत
17उद्धत उद् +हत
18जयद्रथ जयत् +रथ
19उच्छ्रिन्खल उत् +श्रृंखल
20निष्फल निः +फल
21दुराक्रमण दु: +आक्रमण
22अन्तःपुर अंत:+ पुर
23दुर्लभ दु: +लभ
24निरादर निः +आदर
25निरोग निः +रोग
26नीरुजता नीर+रुजता
27उल्लास उत् +लास
28दिगन्त दिक्+अंत
29जगद् बंधु जगत् +बंधु
30उच्छिन्न उत्+छिन्न

Sandhi and Sandhi Vichchhed

संधि- विच्छेद प्रश्नोत्तरी (Sandhi-Viched Important Questions)

प्रश्न: संधि किसे कहते है?
उत्तर: दो वर्णों के मेल से जो विकार उत्पन्न होता है उसे संधि कहते हैं. संधि के लिए दो वर्णों का निकट होना बहुत आवश्यक होता है. वर्णों की इस निकट स्थिति को संहिता भी कहा जाता है

प्रश्न: संधि कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर: संधि 3 प्रकार की होती है:

  1. स्वर संधि
  2. व्यंजन संधि
  3. विसर्ग संधि

प्रश्न: स्वर संधि कितने प्रकार की होती है?
उत्तर: स्वर संधि 6 प्रकार की होती है:

  1. दीर्घ संधि (Deergh Sandhi)
  2. यण संधि (Yan Sandhi)
  3. अयादि संधि (Ayadi Sandhi)
  4. वृद्धि संधि (Vriddhi Sandhi)
  5. गुण संधि (Gun Sandhi))
  6. पूर्व रूप संधि (Purv rup Sandhi)

प्रश्न: दीर्घ संधि की व्याख्या करें.
उत्तर: जब लघु या दीर्घ अ, इ, उ, ऋ इत्यादि के उपरान्त लघु  दीर्घ समान स्वर आयें तो दोनों के स्थान पर दीर्घ हो जाता है. जैसे: अ+अ=आ, इ+इ=ई, ई+ई=ई, उ+ऊ=ऊ, ऋ+ऋ=ऋ  इत्यादि

Sandhi and Sandhi Vichchhed

प्रश्न : यण संधि की व्याख्या करें.
उत्तर: जब लघु या दीर्घ इ, उ , ऋ इत्यादि के उपरान्त कोई असमान्य स्वर आये तो इ, उ, ऋ इत्यादि के स्थान पर क्रमश: य, व, र, ल, हो जाता है जैसे:  इ+अ=य, अ+ऊ=व, ऋ+अ= र

प्रश्न: अयादि संधि की व्याख्या करें.
उत्तर: जब ए, ऐ ओ, औ  के बाद कोई स्वर आये तो ए, ऐ, ओ, औ के स्थान पर क्रमश: अय्, आय्, अव्, आव् हो जाता है
जैसे: ए+अ= अय्, ओ+अ= अव, आँ+अ= आव

प्रश्न: वृद्धि संधि की व्याख्या करें.
उत्तर: जब लघु या दीर्घ ‘अ’ के उपरान्त ‘ए’, ‘ऐ’, ‘ओ’, ‘औ’ आये तो ए और ऐ के स्थान पर ‘ऐ’ तथा ‘ओ’ और ‘औ’ की जगह “औ’ हो जाता है
जैसे: अ+ए= ऐ

अ+ओ= औ

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5 Comments

    • पढने के लिए धन्यवाद. पढ़ते रहिये पढ़ाते रहिये

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