Unsung Heroes Yashovarman Chandrapeed (वीर यशोवर्मन और चंद्रापीड)

Ad:

http://www.hindisarkariresult.com/unsung-heroes-yashovarman-chandrapeed/
Unsung Heroes Yashovarman Chandrapeed

Unsung Heroes Yashovarman Chandrapeed / अद्वितीय वीर यशोवर्मन और चंद्रापीड जिनकी कीर्ति का गान ज्यादा नहीं हुआ

अरब प्रायद्वीप
7वीं शताब्दी ई.

अरब के एक व्यापारिक-धार्मिक केन्द्र मक्का में एक तूफान जन्म ले रहा था जिसको नजरअंदाज करने और उसे तुच्छ समझने की कीमत उस युग की सभी सभ्यतायें चुकाने वालीं थीं।

एक निरक्षर पर महत्वाकांक्षी व्यक्ति ने परिस्थितियों का आकलन किया, सेमेटिक संस्कृति के मूल तत्वों और अरबों के कबीलाई कानूनों को मिलाकर एक नयी राजनैतिक-सामाजिक-धार्मिक संहिता तैयार की और घोषण कर दी एक नये धर्म की। 

Unsung Heroes Yashovarman Chandrapeed

बर्बर इस्लाम का उदय 

अपने नामार्थ के ठीक विपरीत प्रारंभ से ही ‘युयुत्स’ प्रकृति के इस नवीन धर्म के हरे रंग और चांद तारे के निशान वाले झंडे के नीचे बर्बर प्रवृत्ति के अरब सहज ही एकत्रित हो गये।

गैरधर्म के ‘काफिर’ की हत्या से इस जहां में ‘माल-ए-गनीमत के रूप में पराई दौलत व औरत का इनाम और मरने के बाद ‘जन्नत-में-रिजर्वेशन’ के लालच ने इन्हें ‘मानवीय नैतिकता’ और ‘हत्या के अपराधबोध’ से भी मुक्त कर दिया जिसने न केवल धार्मिकता का लबादा ओढे इन गिरगिटखोर बर्बर अरबों को इतिहास में सभ्यता और संस्कृति का सबसे बडा विध्वंसक समूह बना दिया बल्कि इस संक्रामक बीमारी के संपर्क में आने वाला हर नृजातीय समूह भी इन्हीं की भांति रक्तपिपासु और सभ्यता व संस्कृति का विध्वंसक बन गया।

इस्लाम का पश्चिम में प्रभाव

देखते ही देखते उन्होंने जेरुसलम, आर्मेनिया, मिस्त्र, उत्तरी अफ्रीका,सायप्रस को रौंद डाला और ‘इस्लामी तलवार’ ने इस क्षेत्र के ‘काफिरों’ को देखते ही देखते ‘दीनदारों’ में बदल दिया ।

इस्लाम का पूर्व में प्रभाव

पलक झपकते ही उन्होंने ईरान को अंतिम रूप से नहाबंद के युद्ध ( 642 ई. ) में हराकर उसका इस्लामीकरण कर दिया और इसके साथ ही ईरान में प्राचीन आर्य धर्म – “जरथस्त्रु धर्म या पारसी धर्म” का भी विनाश हो गया और बचेखुचे पारसियों ने भारत में सौराष्ट्र में शिलाहार राजाओं के यहाँ शरण ली।

इसके बाद अरब मध्य एशिया की ओर मुडे और देखते ही देखते ट्रांसऑक्सियाना तक पहुँच गये जहाँ बौद्ध धर्म का पूर्ण विनाश कर पूरी की पूरी जनसंख्या को मुसलमान बनने के लिये विवश कर दिया गया।

इसे भी पढ़ें: अरबों ने भारत पर आक्रमण क्यों किया? तात्कालिक कारण और उसका परिणाम

पूर्व में इंडोनेशिया मलेशिया के शैलेन्द्र साम्राज्य के सामंतों को छल से जाल में फंसाकर इस्लाम कुबूलवाया गया और फिर शेष कार्य इन धर्मांतरित नवमुस्लिम शासकों ने कर दिया।

और अब वे मुडे “सोने की चिडिया”की ओर,’हिंद’ की ओर, हमारे भारत की ओर, जहाँ से उनके पैगंबर को तथाकथित रूप से ठंडी हवाओं के झोंके आते महसूस होते थे।

केरल में चेरूमान पेरुमल के जरिये इंडोनेशिया की कहानी दुहराने की कोशिश की गई परंतु असफल हुए हालांकि अरबों की स्थानीय रखैलों से पैदा हुए मोप्पिलाओं के रूप में एक विषबीज वे बो ही गये।

अब अरब पश्चिम में स्पेन और पूर्व में भारत के दरवाजे सिंध और पंजाब के सामने आ खडे हुए।

स्पेन ने तो घुटने टेक दिये और वो अब अगले ४०० वर्ष तक अरबों के अधीन गुलाम बना रहने वाला था परंतु भारत ?…भारत में इतिहास का एक नया ही अध्याय लिखा जाने वाला था।

वैसे एसा नहीं है कि अरबों ने 711ई. से पूर्व भारत को जीतने की कोशिश नहीं की थी —
१- खलीफा #उमर के आदेश पर तनह अर्थात थाना पर प्रथम समुद्री आक्रमण।
२-खलीफा उमर के आदेश पर बरवस अर्थात भडौंच पर द्वितीय समुद्री आक्रमण।
३- खलीफा उमर के आदेश पर देबल पर तृतीय समुद्री आक्रमण।
तीनों आक्रमण बुरी तरह असफल रहे।

समुद्र की ओर से निराश होकर अरबों ने स्थल मार्ग से अफगानिस्तान और सिंध पर हमले प्रांरंभ किये।
अफगानिस्तान में ” काबुल ” और ” जाबुल ” के सशक्त हिंदू राज्यों ने सन 650 ई. से 714 ई. तक अरबों के सात आक्रमणों का सफलता पूर्वक सामना किया और उन्हें अफ्गानिस्तान में घुसने नहीं दिया . अतः यहाँ भी अरब असफल ही रहे।
सन 643 ई. में खलीफा उमर के आदेश पर देबल पर हुए असफल अरब आक्रमण के बाद , खलीफा #अली के आदेश पर सन 660 ई. में भयानक आक्रमण किया गया पर कीकान के वीर जाटों ने पूरी सेना का सफाया कर दिया। इसके बाद अरबों ने सिंध के इन अग्रिम वीर रक्षकों पर लगातार 6 हमले किये और हर बार इन वीर जाटों ने उनका पूरा सफाया किया।

सन 711 ई.

अरबों ने इस बार बहुत भीषण तैयारी की। सुदूर सीरिया से सर्वश्रेष्ठ इस्लामी योद्धा बुलाये गये।

इस विशाल अरबी सेना का सेनापति था – हरी आँखों वाला एक शैतान मुहम्मद बिन कासिम

..इधर भारत के दुर्भाग्य से सिंध में चच के नेतृत्व में हुए सत्तापरिवर्तन और उसके बेटे दाहिर की अलोकप्रियता ने अरबों की सफलता की भूमिका बना दी . बौद्धों ने तो देशद्रोह किया ही, साथ ही दाहिर से नाराज भारत की सीमा के अग्रिम रक्षक सीस्तान के वीर जाट भी मुहम्मद बिन कासिम से मिल गये। इसके बावजूद “राओर के युद्ध ” में अरबों की पराजय निश्चित थी अगर उन्होंने छलपूर्वक दाहिर को युद्धभूमि से अलग नहीं कर दिया होता।

राओर के युद्ध में विजय और पंजाब पर अधिकार के बाद मुहम्मद बिन कासिम और अरबों के सपनों को पर लग गये और वे भारत विजय की योजना बनाने लगे।

सन 712 – 13 ई. में सेना के दो भाग किये गये .

10000 सैनिकों की एक सेना भारत के सत्ता केन्द्र कन्नौज की ओर रवाना की गयी और दूसरी सेना के साथ बिन कासिम कश्मीर की ओर बढा।

Unsung Heroes Yashovarman Chandrapeed

कन्नौज की ओर गयी सेना का सामना हुआ वीरता के आकाश के एक नक्षत्र से जो संभवतः इन अरबों को भारतीय खड्ग का स्वाद चखाने के लिये ही इतिहास में क्षण भर को उदित हुआ था। इस वीर का नाम था यशोवर्मन

शक्तिशाली यशोवर्मन ने अरबों की इस सेना को बुरी तरह से हराया ही नहीं पूरी तरह कुचल दिया।

उधर बिन कासिम की मुख्य सेना को कांगडा में सामना करना पड़ा कर्कोटा वंशी कायस्थ कुलभूषण कश्मीर नरेश वज्रादित्य चंद्रापीड का जिन्होंने मुहम्मद बिन कासिम को करारी मात दी।

इस हार को छुपाने के लिये अरब इतिहासकार बहाना बनाते हैं कि मुहम्मद बिन कासिम काँगड़े के पास भारत विजय की योजना बनाने के लिए रुक गया था।

कितना मासूम बहाना है? जिस कासिम ने सिर्फ एक वर्ष में 712 ई. तक सिंध और पंजाब जीत लिए वह महीनों तक 715 ई. तक काँगड़े में योजना बनाने में व्यस्त हो गया?

अल बलाधुरी के अनुसार राजधानी में नये खलीफा से पारिवारिक दुश्मनी के चलते हुई और उसका अभियान अधूरा रह गया।

चचनामा के अनुसार मुहम्मद बिन कासिम की मौत दाहिर की वीर बेटियों सूर्य और परमाल के प्रतिशोध का परिणाम थी।

Unsung Heroes Yashovarman Chandrapeed

पर सच तो यह है कि —

यशोवर्मन ने मुहम्मद बिन कासिम की मौत का रास्ता तैयार किया,
चंद्रापीड ने उसकी कब्र खोदी और
सूर्य-परिमाल ने उसके ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी।

असफल और हताश बिन कासिम को परंपरानुसार अन्य पराजित मुस्लिम जनरलों की तरह मार दिया गया ( 715 ई. )। उसे जीवित अवस्था में ही बैल की खाल में सिलकर दमिश्क रवाना कर दिया गया।

इस तरह मुहम्मद बिन कासिम की तथाकथित दयनीय मृत्यु की ओट में अरबों की भीषण पराजय को छुपाने की कोशिश की गयी है और इसमें भारत के वामिये और मुस्लिम इतिहासकारों ने भी उनका बखूबी साथ दिया है और साथ ही नाम और श्रेय छुपाया गया उन #दो #महान #राजाओं का जिन्होंने विश्वविजेता अरबों के विजयरथ को रोक दिया और इसीलिये कट्टर मुल्ला मौलाना अल्ताफ हाली बडे अफसोस के साथ छाती पीटता हुआ लिखता है —

.”वो बहरे हिजाजी का बेबाक बेडा,
न असवद में झिझका न कुलजम में अटका
किये पय सपर जिसने सातों समंदर ,
वो डूबा दिहाने में गंगा के आकर।”

– देवेन्द्र सिकरवार

Ad:

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*


This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.