Saki Kavita (साक़ी कविता)- सुभद्रा कुमारी चौहान

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Saki Kavita, साक़ी सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra kumari chauhan) द्वारा लिखित कविता है.

अरे! ढाल दे, पी लेने दे! दिल भरकर प्यारे साक़ी।
साध न रह जाये कुछ इस छोटे से जीवन की बाक़ी॥
ऐसी गहरी पिला कि जिससे रंग नया ही छा जावे।
अपना और पराया भूलँ; तू ही एक नजऱ आवे॥
ढाल-ढालकर पिला कि जिससे मतवाला होवे संसार।
साको! इसी नशे में कर लेंगे भारत-माँ का उद्धार॥

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सुभद्राकुमारी चौहान की कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ

झांसी की रानी   आराधना इसका रोना  
उपेक्षा   उल्लास   कलह-कारण  
कोयल   कठिन प्रयत्नों से सामग्री   खिलौनेवाला  
गिरफ़्तार होने वाले हैं   चलते समय   चिंता  
जलियाँवाला बाग में बसंत   जीवन-फूल   अनोखा दान  
झाँसी की रानी की समाधि पर   झिलमिल तारे   ठुकरा दो या प्यार करो  
तुम   तुम मानिनि राधे   तुम मुझे पूछते हो  
नीम   परिचय   पानी और धूप  
पूछो   प्रथम दर्शन   प्रतीक्षा  
प्रभु तुम मेरे मन की जानो   प्रियतम से   फूल के प्रति  
बालिका का परिचय   बिदाई   भैया कृष्ण!  
भ्रम   मधुमय प्याली   मुरझाया फूल  
मातृ-मन्दिर में   मेरा गीत   मेरा जीवन  
मेरा नया बचपन   मेरी टेक   मेरी कविता  
मेरे पथिक   यह कदम्ब का पेड़   मेरे भोले सरल हृदय ने  
यह मुरझाया हुआ फूल है   राखी   राखी की चुनौती  
विजयी मयूर   विदा   वीरों का कैसा हो वसंत  
वेदना   व्याकुल चाह   सभा का खेल  
समर्पण   साध   साक़ी  
स्मृतियाँ   स्वदेश के प्रति   हे काले-काले बादल  

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