Matru mandir me Kavita (मातृ-मन्दिर में कविता)- सुभद्रा कुमारी चौहान

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Matru mandir me Kavita, ‘मातृ-मन्दिर में’ सुभद्रा कुमारी चौहान (subhadra kumari chauhan) द्वारा लिखित कविता है.

वीणा बज-सी उठी, खुल गए नेत्र
और कुछ आया ध्यान।
मुड़ने की थी देर, दिख पड़ा
उत्सव का प्यारा सामान ।।

जिनको तुतला-तुतला करके
शुरू किया था पहली बार।
जिस प्यारी भाषा में हमको
प्राप्त हुआ है माँ का प्यार ।।

Matru mandir me Kavita

उस हिन्दू जन की गरीबिनी
हिन्दी प्यारी हिन्दी का।
प्यारे भारतवर्ष -कृष्ण की
उस प्यारी कालिन्दी का ।।

है उसका ही समारोह यह
उसका ही उत्सव प्यारा।
मैं आश्चर्य-भरी आँखों से
देख रही हूँ यह सारा ।।

जिस प्रकार कंगाल-बालिका
अपनी माँ धनहीना को।
टुकड़ों की मोहताज़ आजतक
दुखिनी को उस दीना को ।।

सुन्दर वस्त्राभूषण-सज्जित,
देख चकित हो जाती है।
सच है या केवल सपना है,
कहती है, रुक जाती है ।।

Matru mandir me Kavita

पर सुन्दर लगती है, इच्छा
यह होती है कर ले प्यार ।
प्यारे चरणों पर बलि जाए
कर ले मन भर के मनुहार ।।

इच्छा प्रबल हुई, माता के
पास दौड़ कर जाती है ।
वस्त्रों को सँवारती उसको
आभूषण पहनाती है ।

उसी भाँति आश्चर्य मोदमय,
आज मुझे झिझकाता है ।
मन में उमड़ा हुआ भाव बस,
मुँह तक आ रुक जाता है ।।

प्रेमोन्मत्ता होकर तेरे पास
दौड़ आती हूँ मैं ।
तुझे सजाने या सँवारने
में ही सुख पाती हूँ मैं ।।

तेरी इस महानता में,
क्या होगा मूल्य सजाने का ?
तेरी भव्य मूर्ति को नकली
आभूषण पहनाने का ?

किन्तु हुआ क्या माता ! मैं भी
तो हूँ तेरी ही सन्तान ।
इसमें ही सन्तोष मुझे है
इसमें ही आनन्द महान ।।

मुझ-सी एक-एक की बन तू
तीस कोटि की आज हुई ।
हुई महान, सभी भाषाओं
की तू ही सरताज हुई ।।

Matru mandir me Kavita

मेरे लिए बड़े गौरव की
और गर्व की है यह बात ।
तेरे ही द्वारा होवेगा,
भारत में स्वातन्त्रय-प्रभात ।।

असहयोग पर मर-मिट जाना
यह जीवन तेरा होगा ।
हम होंगे स्वाधीन, विश्व का
वैभव धन तेरा होगा ।।

जगती के वीरों-द्वारा
शुभ पदवन्दन तेरा होगा !
देवी के पुष्पों द्वारा
अब अभिनन्दन तेरा होगा ।।

तू होगी आधार, देश की
पार्लमेण्ट बन जाने में ।
तू होगी सुख-सार, देश के
उजड़े क्षेत्र बसाने में ।।

तू होगी व्यवहार, देश के
बिछड़े हृदय मिलाने में ।
तू होगी अधिकार, देशभर
को स्वातन्त्रय दिलाने में ।।

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