Srijanatmakta ki Pahchan सृजनात्मकता की पहचान एवं मापन

Ad:

http://www.hindisarkariresult.com/srijanatmakta-ki-pahchan/
Srijanatmakta ki Pahchan

Srijanatmakta ki Pahchan / Identification and Measurement of Creativity/ (सृजनात्मकता की पहचान एवं मापन)

सृजनात्मकता का मापन एवं उसकी पहचान निम्नलिखित उपागमों से की जा सकती है:

  • विशेषताओं द्वारा पहचान एवं मापन (Identification and Measurement by Characteristics)
  • सृजनात्मक क्रिया द्वारा पहचान एवं मापन (Identification and Measurement by Creativity Activities.)
  • सृजनात्मक परीक्षणों द्वारा पहचान एवं मापन (Identification and Measurement by Tests of Creativity)

विशेषताओं द्वारा पहचान एवं मापन (Identification and Measurement by Characteristics)

सृजनशील बालकों में निम्नलिखित विशेषताएं पाई जाती हैं:

1. सृजनशील बालक में मौलिकता अनेक रूपों में पाई जाती है। एक सृजनशील बालक साधारण बालक की अपेक्षा अधिक संवेदनशीलता अनुभव करता है। वह प्रेरणात्मक होता है तथा तथ्यों से परे देखता है। वह सदैव विशेष बालक के रूप में जाना जाता है।

2. सृजनशील बालक में किसी समस्या पर स्वत: निर्णय लेने की क्षमता होती है। वह वस्तुओं को अपने ढंग से प्रस्तुत करता है। वह दूसरों के सुझावों को स्वीकार नहीं करता।

Srijanatmakta ki Pahchan

3. सृजनशील बालको में परिहास प्रियता पाई जाती है। वे खेल, आनंद एवं परिहास के रूप में सृजन करते रहते हैं।

4. सृजनशील बालक में उत्सुकता एवं जिज्ञासा पाई जाती हैं। वे जिज्ञासा के कारण एक कार्य को करने के अनेक ढंग सोचते रहते हैं। वे नवीन प्रणालियों द्वारा अपने विचारों की अभिव्यक्ति करते हैं।

5. सृजनशील बालक अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। वे प्रत्येक कार्य को अत्यधिक गंभीरता से लेते हैं।

इसे भी पढ़ें: सृजनात्मकता का अर्थ, परिभाषा और विशेषताएं

6. सृजनशील बालकों में अपनी प्रभुसत्ता के प्रति अधिक लगाव होता है। वे अपने कार्य को उत्तरदायित्वपूर्ण ढंग से करते हैं तथा कार्य को अपना समझ कर करते हैं। उनमें लक्ष्य पूर्ण होने तक बेचैनी बनी रहती है।

7. सृजनात्मक बालकों के विचारों में लचीलापन पाया जाता है। इन बालकों का बौद्धिक स्तर बहुत विस्तृत होता है। इनमें एक प्रकार की नियंत्रित कल्पना पाई जाती है जिससे किसी न किसी उपलब्धि को निर्देशन प्राप्त होता है। इन बालकों का अनुसंधान क्षेत्र भी उच्च स्तर का होता है।

Srijanatmakta ki Pahchan

8. सृजनात्मक बालक किसी परीक्षण में अपने समूह के अन्य लोगों से अधिक अंक प्राप्त करते हैं।

9. सृजनात्मक बालक अपनी बौद्धिक और सांस्कृतिक रुचियों को प्रत्यक्ष रूप से विकसित करते हैं। इन बालकों में विभिन्न क्षेत्रों में भाग लेने की क्षमता होती है और उन क्षेत्रों में अपने भावों को व्यक्त करते हैं।

10. सृजनशील बालकों में त्रुटियों को सहन करने की क्षमता होती है। सृजनशील बालक गलतियों से नहीं घबराते हैं। इनके द्वारा समाधान के लिए जो उपागम प्रयोग किया जाता है वह बहुत अधिक विस्तृत होता है, जिसके कारण इनको कभी-कभी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

11. सृजनात्मक बालकों में बुद्धि की सृजनात्मक योग्यता पाई जाती है। साथ ही बौद्धिक योग्यता में लचीलापन एवं अस्पष्टता को सहन करने की योग्यता भी पाई जाती है परंतु यह स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता कि एक सृजनशील बालक बुद्धि परीक्षण पर भी उच्च अंक प्राप्त करेगा।

Srijanatmakta ki Pahchan

12. सृजनशील बालक अधिक सामाजिक नहीं होते हैं। ये ना तो अधिक सामाजिक होते हैं और ना ही समाज विरोधी। ये बालक सामाजिक परिवेश में बहुत अधिक संवेदनशील होते हैं। सृजनशील बालक वाह्य भावना की अपेक्षा आंतरिक भावनाओं से अधिक निर्देशित होते हैं।

13. सृजनात्मक बालकों का मस्तिष्क स्वस्थ होता है। इनकी चिंता का स्तर कम होता है।

14. सृजनात्मक बालकों की चिंता में व्यक्तिगत भिन्नता पाई जाती है। उच्च सृजनशील बालकों की चिंता अर्थ पूर्ण होती है अर्थात वह वास्तव में चिंता करने योग्य तथ्यों पर ही चिंता करते हैं।

15. सृजनशील व्यक्ति अपनी आयु से अधिक परिपक्व होते हैं। ऐसे व्यक्ति वातावरण में सदैव वास्तविकता एवं सत्यता की खोज करते रहते हैं। ये बालक अन्य बालकों की तुलना में अधिक उत्तरदायित्व की भावना वाले, ईमानदार तथा विश्वसनीय होते हैं। साथ ही साथ इनमें अन्य लोगों से बात करने के भी गुण होते हैं।

Srijanatmakta ki Pahchan

16. सृजनशील व्यक्तियों का शारीरिक स्वास्थ्य औसत श्रेणी का होता है। ये कल्पनाशील होते हैं तथा इनमें समस्या समाधान एवं सामाजिक संवेदनशीलता अधिक पाई जाती है।

सृजनात्मक क्रियाओं द्वारा पहचान एवं मापन

बालकों में सृजनात्मकता की पहचान उनके द्वारा की गई सृजनात्मक क्रियाओं के द्वारा भी की जा सकती है। जब कोई बालक अच्छी कविता या कहानी लिखता है, चित्र बनाता है, आविष्कार करता है तब इससे उसकी सृजनात्मकता की पहचान की जा सकती है।

बालकों द्वारा की जाने वाली प्रमुख सृजनात्मक क्रियाएं निम्नलिखित हैं:

1. विश्वास की भूमिका (Role of believe)

बालक का जीवन ऐसी घटनाओं से परिपूर्ण होता है कि मानसिक जीवन में उसे विश्वास की भूमिका अनिवार्य रूप से निभानी पड़ती है। वह यथार्थ से मुक्त होकर खेलता है। वह ऐसी परिस्थितियों का सृजन तथा पुनः सृजन करता रहता है। ऐसे बालक घर में अनेक प्रकार का अभिनय करते हैं। जैसे पापा की ऐनक लगाकर पापा बनते हैं, दादा की छड़ी लेकर दादा बनते हैं इत्यादि।

2. मनतरंग की भूमिका (Role of fantasy)

मनतरंग भी विश्वास की भूमिका की जैसी ही क्रिया है। नर्सरी की कक्षाओं में याद की गई कहानियां तथा गीत कालांतर में बालक की कल्पना की वस्तु बन जाते हैं। इनसे संवेगों का विकास होता है। पढ़े जाने वाले साहित्य का प्रभाव बच्चों के मन पर पड़ता है।

3. सृजनात्मक अभिव्यक्ति (Expression of creativity)

बालक की कल्पना तभी साकार होती है जब उसे सृजनात्मक रूप में अभिव्यक्त किया जाए। बालकों में व्येक्तिक भिन्नता पाई जाती है। उनमें सृजनात्मक अभिव्यक्ति की क्षमता भी अलग-अलग होती है। बालक निम्नलिखित क्रियाओं द्वारा अपनी सृजनात्मकता को व्यक्त करते हैं:

Srijanatmakta ki Pahchan

4. नाटकीय खेल (Dramatic play)

इस प्रकार के खेलों से बालक की उस संस्कृति की अभिव्यक्ति होती है जिसमें वह रहता है। इन खेलों के द्वारा बालक ज्यादातर अपने दैनिक जीवन की घटनाओं का नाटकीकरण करता है। जैसे डॉक्टर रोगी का खेल, गुड्डे गुड़ियों का खेल, मिट्टी के घर बनाने का खेल तथा चोर सिपाही का खेल इत्यादि।

इस प्रकार के खेल में उसकी सृजनात्मकता की अभिव्यक्ति होती है। जब वह इन खेलों में कोई सृजन करते हैं तो उनका संवेगात्मक तनाव निकल जाता है। इस प्रकार के खेलों से बालकों का व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन भी अच्छा हो जाता है।

5. रचनात्मक खेल (Constructive play)

5-6 वर्ष की अवस्था पार करने पर बालक की रुचि नाटकीय खेलों से हटकर रचनात्मक खेलों में केंद्रित होने लगती है। इन खेलों में सृजनात्मकता की अभिव्यक्ति होती है और उनके विकास को भी अधिक बल मिलता है। मिट्टी, बालू लकड़ी के गुटकों एवं पेपर आदि से बालक अनेक प्रकार के खेल जैसे घर बनाने के खेल तथा चित्र बनाने के खेल आदि अकेले या साथियों के साथ खेलते हैं। इन खेलों में कुछ सीमा तक लिंग भेद भी देखने को मिलता है। इन खेलों में बालक अपनी सृजनात्मकता की अभिव्यक्ति करता है। वह किसी की नकल नहीं करता।

6. काल्पनिक साथी (Imaginary Companions)

जब कल्पना में कोई बालक किसी अन्य बालक, वस्तु, या जानवर को अपना साथी बनाता है तो उसे काल्पनिक साथी कहते हैं। बालक अपने काल्पनिक साथियों के संबंध में बाते करना या किसी को बताना कम पसंद करते हैं।

बालक को अकेले खेलते समय यदि ध्यान से कुछ दिनों तक लगातार सुना जाए तो बालक निश्चित ही अपने काल्पनिक साथी से बातचीत करता हुआ सुनाई दे सकता है। काल्पनिक साथी बनाने में सृजनात्मकता की अभिव्यक्ति करने से एक तो बालक का संवेगात्मक तनाव निकल जाता है दूसरे समायोजन में भी सहायता मिलती है।

7. हास्य भाव (Humor)

बालक अनेक प्रकार के हास्य भावों द्वारा अपनी सृजनात्मकता की अभिव्यक्ति करते हैं। उदाहरण के लिए वे शब्दों का गलत उच्चारण करके या तोड़ मरोड़ कर ऐसे बोलते हैं कि सुनने वाले हँसने लगते हैं। इस प्रकार के हास्य के लिए यह आवश्यक नहीं है कि वे मौलिक हो तभी सृजनात्मक होंगे, बल्कि आवश्यक यह है कि जिस व्यक्ति को सुनाया या दिखाया जा रहा है उसके लिए यह मौलिक और नया होना चाहिए।

Srijanatmakta ki Pahchan

8. उपलब्धि के लिए आकांक्षा (Aspiration for achievement)

आकांक्षा का अर्थ सम्मान, शक्ति या उपलब्धि के लिए आकांक्षा। बालकों की आकांक्षाएं धनात्मक और ऋणात्मक दोनों प्रकार की हो सकती हैं। बालकों में उपलब्धि की आकांक्षाएं तुरंत, आज या कल के लिए भी होती हैं और कुछ ऐसी भी होती हैं जिनमें बालक सोचता है कि जब वह बड़ा हो जाएगा, तब वह ऐसा करेगा। उपलब्धि के लिए आकांक्षा पर वातावरण संबंधी कारकों का व्यक्तिगत कारणों की तुलना में अधिक प्रभाव पड़ता है। आकांक्षाएं यदि धनात्मक होती हैं तो बालक का व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन अच्छा रहता है परंतु यदि आकांक्षाएं ऋणात्मक होती हैं तो बालक का व्यक्तिगत और सामाजिक समायोजन बिगड़ जाता है।

Srijanatmakta ki Pahchan

Ad:

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*


This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.