POTA Full Form (Prevention of Terrorism Act)

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POTA Full Form

POTA Full Form in Hindi, POTA: Prevention of Terrorism Act (आतंकवाद निरोधक अधिनियम)

POTA का फुल फॉर्म है “Prevention of Terrorism Act” यानि हिंदी में कहें तो “आतंकवाद निरोधक अधिनियम” POTA यानि आतंकवाद निरोधक अधिनियम देश में आतंकवाद पर अकुंश लगाने के उद्देश्य से 2 अप्रैल 2002 को TADA (टाडा) के स्थान पर लागू किया गया। संसद के दोनो सदनों के संयुक्त अधिवेशन में 26 मार्च 2002 पारित होने के बाद 2 अप्रैल 2002 को राष्ट्रपति के अनुमोदन के साथ ही यह विधेयक (POTO: Prevention of Terrorism Ordinance) एक अधिनियम POTA (पोटा) के रूप में आस्तित्व में आया।

POTA की विशेषताएँ

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 के खंड-3,4,5 तथा 6 में आतंकवाद निवारक निरोध तत्सम्बन्धी प्रावधानों (POTA Full Form) का उल्लेख है। इस निरोध कानून के अंतर्गत किसी व्यक्ति को अपराध के पूर्व ही गिरफ्तार किया जाता है। निवारक निरोध का उद्धेश्य व्यक्ति को अपराध के लिए दंड देना नही, वरन उसे अपराध करने से रोकना है। वस्तुतः यह निवारक निरोध राज्य की सुरक्षा, लोक व्यवस्था बनाये रखने या भारत की सुरक्षा संबंधी कारणों से हो सकता है। जब किसी व्यक्ति को निवारक निरोध के अधीन गिरफ्तार किया जाता है, तब सरकार द्वारा निम्नलिखित काम किये जाते हैं:

1) सरकार ऐसे व्यक्ति को केवल 3 महीने तक अभिरक्षा में निरुद्ध कर सकती है। यदि गिरफ्तार व्यक्ति को 3 माह से अधिक के लिए निरुद्ध करना होता है तो इसके लिए सलाहकार बोर्ड का प्रतिवेदन प्राप्त करना पड़ता है।

2) इस प्रकार निरुद्ध व्यक्ति को यथाशीघ्र निरोध के आधार पर सूचित किये जायेंगे,किन्तु जिन तथ्यो को निरस्त करना लोकहित के विरुद्ध समझा जाएगा उन्हें प्रकट करना आवश्यक नही है।

3) निरुद्ध व्यक्ति को निरोध आदेश के विरुद्ध अभ्यावेदन करने के लिए शीघ्रातिशीघ्र अवसर दिया जाना चाहिए।

POTA यानि निवारक निरोध से सम्बंधित अभी तक बनाई गई विधियाँ

1) निवारक निरोध अधिनियम, 1950: भारत की संसद ने 26 फरवरी1950 को पहला निवारक निरोध अधिनियम पारित किया था। इसका उद्देश्य राष्ट्र विरोधी तत्वों को भारत की प्रतिरक्षा के प्रतिकूल कार्य करने से रोकना था। इसे 1 अप्रैल, 1951 को समाप्त हो जाना था, किन्तु समय-समय पर इसका जीवनकाल बढ़ाया जाता रहा । अंततः यह 31 दिसंबर, 1971 को समाप्त हुआ।

2) आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम, 1971-(MISA): 44वे संवैधानिक संशोधन (1979) इसके प्रतिकूल था और इस कारण अप्रैल, 1979 ई में यह समाप्त हो गया।

3) आतंकवादी एवं विध्वंशकारी गतिविधियां निरोधक कानून (टाडा): निवारक निरोध व्यवस्था के अंतर्गत अबतक जो कानून बने उनमे यह सबसे प्रभावी और सर्वाधिक कठोर कानून था। 23 मई, 1995 को इसे समाप्त कर दिया गया

4) पोटो (Prevention of Terrorism Ordinance, 2001): इसे 25 अक्टूबर, 2001 को लागू किया गया था। ‘पोटो’ टाडा का ही एक रूप है। इसके अंतर्गत कुल 23 आतंकवादी गुटों को प्रतिबंधित किया गया है। आतंकवादी और आतंकवादियों से संबंधित सूचना को छिपाने वालो को भी दंडित करने का प्रवधान किया गया है।

POTA का दुरूपयोग

इस कानून (POTA Full Form) के तहद पुलिस शक के आधार पर किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है, किन्तु बिना आरोप-पत्र के तीन माह से अधिक हिरासत में नही रख सकती। POTA पोटा के अंतर्गत गिरफ्तार व्यक्ति हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है, लेकिन यह अपील भी गिरफ्तारी के तीन माह बाद ही हो सकती है। POTO (पोटो) 28 मार्च 2002 को अधिनियम बनने के बाद POTA (पोटा) हो गया। इसे 21 सितम्बर, 2004 को अधिनियम के द्वारा समाप्त कर दिया गया।

POTA को हटाने का कारण

इस कानून के तहद पुलिस शक के आधार पर किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है, यही कारण था कि राज्यसभा में सत्ता पक्ष इसे पास नही करवा सका था। उस समय राज्यसभा में कुल 211 सांसद उपस्थित थे जिनमे से पोटा के समर्थन में केवल 98 सासदों ने ही अपना मत दिया। 113 ने इसके विरोध में अपने मत डाले। इसके बाद सत्तारुढ़ दलों ने संयुक्त अधिवेशन बुलाकर इसे पास करवा लिया। इसके पास होते ही उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने दावा किया था कि इसका मुख्य उद्देश्य सीमा पार से आतंकवाद की चुनौती का मुकाबला करना है।

  • यह अधिनियम इतिहास के पन्नों में दर्ज रहेगा क्योंकि इसे कानून बनाने की जगह लेने के लिए लाया गया विधेयक राज्य सभा के गिरने के बाद संसद के संयुक्त अधिवेशन में 26 मार्च 2002 को पेश किया गया जो पास हो गया। भारतीय संसद के इतिहास में यह तीसरा मौका था जब लोक सभा और राज्य सभा की संयुक्त बैठक बुलाई गयी। संसद के केन्द्रीय कक्ष में 26 मार्च को एक नया इतिहास कायम हुआ। करीब दस घंटे तक चले अट्‌ठाइस सांसदों के भाषणो के बाद संसद के दोनो सांसदो के साझा अधिवेशन में आतंकवादी निरोधी विवादस्पद विधेयक पोटा को कानूनी मान्यता मिला।
  • पोटा के तहत ऐसी कोई भी कार्रवाई जिसमें हथियारों या विस्फोटकों का इस्तेमाल हुआ हो या फिर जिसमें किसी की मौत हो या फिर घायल हो जाय तो वह आतंकवादी कार्रवाई मानी जायेगी। पोटा के तहत गिरपतारी महज शक के आधार पर भी की जा सकती है।
  • इसके तहत पुलिस को यह भी अधिकार है कि वह बिना वारन्ट के किसी की भी तलाशी ले सकती है। टेलीफोन तथा अन्य संचार सुविधाओं पर भी नजर रख सकती है। इसके अतिरिक्त अभियुक्तों के खिलाफ गवाही देने वालों की पहचान छिपायी जा सकती है।
  • आतंकवादियों से संबंध होने के संदेह में अभियुक्त का पासपोर्ट और यात्रा संबंधी कागजात राद्ध किये जा सकते हैं। आरोपी को तीन महीने तक अदालत में आरोप पत्र दाखिल किये बिना ही हिरासत में रखा जा सकता है और उसकी संपत्ति भी जब्त की जा सकती है।
  • इसके अलावा पत्रकारों से संबंधित प्रावधानों में ढील दी गयी है और आतंकवादियों से संबंध होने के संदेह में अभियुक्त की संपत्ति जब्त करने के लिए विशेष अदलत से अनुमति लेना आवश्यक कर दिया गया है। इस कानून के तहत जुर्म साबित होने पर कम से पाच साल और अधिक से अधिक मौत की सजा दी जा सकती है।

इसे भी पढ़ें: PASA का फुल फॉर्म क्या है?

  • आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पोटा) के कथित दुरापयोग (POTA Full Form) के आरोपों को देखते हुए केन्द्र सरकार ने 13 मार्च 2003 को एक उच्चस्तरीय समीक्षा समिति के गठन की घोषणा की। इसके अध्यक्ष पंजाब के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरुण सहरयार को बनाया गया है ।
  • इस समिति के औपचारिक गठन की घोषणा प्रधानमंत्री व गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने की। समिति का गठन पोटा के उपबंधों के आधार पर किया गया है। इस अवसर पर श्री आडवाणी ने बताया कि पोटा का कानून विशेष तौर से आतंकवादी गतिविधि रो निपटने के लिए बनाया गया है। इसकी धारा (3) की उपधारा (1) में आतंकवादी कार्रवाई और आतंकवादी को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया गया है।
  • समय-समय पर इस कानून का इस्तेमाल ऐसे लोगों के खिलाफ किये जाने के मामले उठाये गये हैं जो इस कानून की परिधि में नहीं आते। समीक्षा समिति विभिन्न राज्यों द्वारा किये गये इस कानून के इस्तेमाल की व्यापक समीक्षा करेगी और इस कानून को लागू करने में आने वाली खामियों को दूर करने के उपाय सुझायेगी ताकि उसका दुरुपयोग सामान्य अपराधियों के खिलाफ न हो सके।
  • इस कानून के तहत कोई भी अदालत केन्द्र सरकार या राज्य सरकार की पूर्व अनुमति के बिना ऐसे उपराध को संज्ञान में नहीं लेगी जिसमें पुलिस उपाधीक्षक से नीचे के पद के अधिकारी को जांच-पड़ताल का अधिकार नहीं होगा।
  • साथ ही पोटा में यह भी प्रावधान है कि इस कानून के तहत गिरफ्तार व्यक्ति के इकबालिया बयान को सबूत तभी माना जायेगा जब वह पुलिस अधीक्षक से नीचे के रैंक के अधिकारी द्वारा दर्ज नहीं किया गया हो और उसे 48 घंटे के समय में मजिस्ट्रेट के सामने पेश न किया जाए।
  • तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वन्द्वी बाड़को को लिट्‌टे के समर्थन में भाषण देने के आरोप में पोटा के तहत गिरफ्तार करवाया है। जब यह मामला अदालत में पहुंचा तो पहले केन्द्र सरकार के वकीलों ने उनकी (वाईको की) पोटा के तहत गिरफ्तारी का समर्थन किया।
  • बाद में उन्होने रंग बदलते हुए सरकारी कर्मचारियों के सिर दोष मढ़ दिया। उग्रवाद से सबसे ज्यादा प्रभावित जम्मू कश्मीर में सत्तारूढ़ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के महासचिव एवं मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने तो अपने यहां पोटा का इस्तेमाल करने से ही मना कर दिया। POTA Full Form

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