Physical Development of Child in Hindi (बालक का शारीरिक विकास)

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Physical Development of Child

Physical Development of Child in Hindi/ Balak ka Sharirik Vikas/ बालक का शारीरिक विकास

मनुष्यों में अन्य प्रजातियों की अपेक्षा शारीरिक परिपक्वता देर से आती है। उसके सम्पूर्ण जीवनकाल का लगभग 1/5 भाग उसके शारीरिक विकास के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। शिशु के शारीरिक विकास का प्रभाव प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उसके व्यवहार तथा अन्य प्रकार के विकास पर पड़ता है। बालक का शारीरिक विकास निरंतर न होकर चरणों में होता है। इसलिए इसे शारीरिक वृद्धि चक्र के नाम से भी जाना जाता है। शारीरिक वृद्धि चक्र एक निश्चित क्रम में घटित होता है लेकिन कभी-कभी अलग अलग बालकों के विकास में वैयक्तिक भिन्नतायें भी देखने को मिलती हैं। जॉन्सन एवं सहयोगियों के अनुसार प्रत्येक बच्चे के विकास की ‘समय घड़ी’, व्यक्तिगत होती है। यह घड़ी धीमी, तीव्र एवं सामान्य चलेगी यह इस बार पर निर्भर करता है कि कौन सा कारक इसे प्रभावित कर रहा है।

विकास दर को प्रभावित करने वाले कुछ प्रमुख कारक हैं: शारीरिक आकार एवं स्वरुप, स्वास्थ्य स्तर, पोषण, रोग अवरोधक क्षमता, पारिवारिक दशाएं, संवेग, मानसिक समस्याएँ, मौसम, एकल या जुड़वे बच्चे तथा बच्चे का लिंग। उपर्युक्त सभी कारकों द्वारा शरीरिक विकास का स्वरूप तथा भिन्नता का निर्धारण होता है। Physical Development of Child

शिशु वृद्धि के चार प्रमुख चरण होते हैं।  इनमें से पूर्ववर्ती दो चरण तीव्र विकास के तथा परवर्ती दो चरण मंद विकास के चरण कहे जाते हैं।

बालक केजन्मोपरांत 6 महीनों की अवधि तीव्रतम विकास की अवधि होती है। एक वर्ष की आयु के बाद से विकास की यह गति क्रमश: धीमी होती जाती है। यह स्थिति उसके व्यस्क होने तक विद्यमान रहती है। पुन: 15-16 वर्ष की आयु में विकास की गति अचानक से तीव्र हो जाती है इसे किशोरावस्था प्रवेग कहा जाता है। इसके बाद परिपक्वता आने पर बालकों में लम्बाई का विकास तो रूक जाता है, परंतु भार वृद्धि की संभावना बनी रहती है। Physical Development of Child

भ्रूण अवस्था में शारीरिक विकास (Physical Development in Embryo Stage)

बच्चे के जन्म से पहले जब वह अपनी माँ के गर्भ में होता है, तबसे ही उसके विकास की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। पिता के शुक्राणु तथा माँ के डिम्ब के संयोग से गर्भ स्थापित होता है। इस अवस्था में बालक का शारीरिक विकास तीन अवस्थाओं में विकसित होकर पूर्ण होता है:

  • डिंबावस्था
  • पूर्व भ्रूणीय अवस्था
  • भ्रूणावस्था

डिंबावस्था

इस अवस्था मे सबसे पहले एक अण्डे के आकार के डिम्ब का उत्पादन होता है। इसके बाद उत्पादन कोष में परिवर्तन होने लगते हैं। इस अवस्था में अनेक रासायनिक क्रियाएँ उत्पन्न होती हैं, जिससे कोषों में विभाजन होना प्रारम्भ होता है।

पूर्व भ्रूणीय अवस्था

इस अवस्था में डिम्ब का विकास प्राणी के रूप में होने लगता है। इस समय डिम्ब की थैली में पानी हो जाता है जिसे पानी की थैली की संज्ञा दी जाती है। यह पानी की थाली प्राणी को गर्भावस्था में विकसित होने में मदद करती है। जब 2 माह व्यतीत हो जाते हैं तो सिर का निर्माण, फिर नाक मुंह आदि का आदि का निर्माण होना प्रारंभ होने लगता है। इसके पश्चात शरीर का मध्य भाग एवं टांगे और घुटने विकसित होते हैं।

भ्रूणावस्था

गर्भावस्था के द्वितीय माह से लेकर जन्म लेने तक की अवस्था को भ्रूणावस्था कहते हैं। तीसरे माह के अंत तक भ्रूण 3।7 इंच लम्बा, एवं 3/4 ओंस भारी होता है। 5 माह के होने तक भ्रूण 10 इंच लंबा तथा भार में 7 से 10 ओंस का हो जाता है। आठवें माह तक भ्रूण की लंबाई 16 से 18 इंच तक तथा वजन 4 से 5 पौंड तक हो जाता है। जन्म के समय शिशु की लंबाई 20 इंच के लगभग तथा भार 7 सके 7.5 पाउंड तक होता है। विकास की इसी अवस्था में त्वचा, एवं वाह्य अंग आदि बनते हैं और बच्चे की धड़कन आसानी से सुनी जा सकती है। Physical Development of Child

शारीरिक वृद्धि चक्र (Cycle of Physical Development)

(i) जन्म से लेकर 4 माह की आयु तक

जन्म से 4 माह तक की अवधि में अत्यंत महत्त्वपूर्ण शारीरिक परिवर्तन होते हैं | शरीर का भार दो गुना अथार्त 6-8 पौंड के स्थान पर 12-15 पौंड का हो जाता है तथा लम्बाई में भी 4 इंच की वृद्धि हो जाती है। त्वचा का स्वरुप परिवर्तित हो जाता है। सिर पर नये बाल आ जाते हैं। जन्म के समय सिर की लम्बाई पूरे शरीर की लम्बाई की एक चौथाई होती है अतः इस अवस्था में सिर की तुलना में शरीर के अन्य अंग अधिक शीघ्रता से बढ़ते हैं। यह परिवर्तन बिल्कुल स्पष्ट दिखाई देता है। 12 वर्ष की आयु तक बच्चे का सिर पूरे शरीर का 1/8 भाग तक रह जाता है तथा वयस्क होने तक (25 वर्ष) सम्पूर्ण शरीर का 1/10 हिस्सा रह जाता है। शिशु के दांतों एवं हड्डियों में भी परिवर्तन होने लगता है। पहला दांत 4 या 5 माह में आ जाता है। कभी-कभी 6-7 माह लग सकते हैं। हड्डियाँ कड़ी होने लगती हैं, फिर भी अभी कार्टिलेज बना रहता है इसलिए मांसपेशिया ढीली होने के कारण आसानी से खिंच जाती हैं जिससे घाव भी हो सकता है। शिशु का हाथ या पैर यदि शीघ्रता से खिंचा जाये तो उसके खिंच जाने एवं मुड़ जाने का भय रहता है। Physical Development of Child

(ii) 4-8 माह की आयु तक

इन चार महीनों में शिशु का शरीरिक भार 4-5 पौंड बढ़ जाता है। लम्बाई 3 इंच अधिक हो जाती है। दो-तीन दांत भी आ जाते हैं। बाल लम्बे एवं घने हो जाते हैं तथा पैरों के तलवे अब एक दूसरे की ओर नहीं मुड़ते।

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(iii) 12 माह की आयु

1 वर्ष की आयु तक शिशु की लम्बाई में 9-10 इंच की वृद्धि हो जती है और भार तीन गुना हो जाता है। लडकों की तुलना में लड़कियों का वजन कम होता है।

(iv) 18 माह की आयु तक

18 माह की आयु तक शिशु चलना प्रारंभ कर देता है परंतु अभी पूर्ण शारीरिक संतुलन नहीं आ पाता। शिशु प्राय: अकेले चलना पसंद करते हैं। चलते समय कुछ वस्तुओं को खींचते या धक्का देते रहते हैं। वे हाथ में कुछ लिए रहते हैं। बच्चे अभी सीढ़ी पर नहीं चढ़ पाते। उन्हें पैर से गेंद मारने में कठिनाई होती है क्योंकि एक पैर जमीन से उठाकर गेंद मारने की क्षमता अभी विकसित नहीं हो पायी होती है। वे अभी तिपहिया साईकिल नहीं चला पाते। इनके अधिकांश क्रियाकलाप अनुकरण द्वारा ही संचालित होते हैं। अब वे दो शब्दों के अधूरे वाक्य बोलनें लगते हैं।

(v) 18 माह से दो वर्ष (24 माह) की आयु तक

18 माह के बाद दो वर्ष की आयु तक शिशु की लम्बाई और 2 इंच तथा भार में 2-3 पौंड की वृद्धि हो जाती है। वह आस पास घूमने लगता है एवं नयी-नयी क्रियाओं को करने में उसे मजा आता है यथा चलना, दौड़ना, सीढ़ी चढ़ना, फर्नीचर के नीचे, ऊपर, चारों पर चक्कर काटना आदि। अब वह चीजों को ढोने, पकड़ने, धक्का देने, खींचने जैसी क्रियायें करता है। डब्बे में चीजों को डालने और उसमें से निकालने जैसे क्रियाकलाप करता है। इस प्रकार खोजबीन (अन्वेषण) द्वारा वह वस्तूओं के बार में जानकारी प्राप्त करता है। Physical Development of Child

शरीरिक विकास के चरण (Stages of Physical Development)

शारीरिक विकास के तीन प्रमुख चरण हैं:

  • शैशवावस्था में शारीरिक विकास (Physical Development in Infancy)
  • बाल्यावस्था में शारीरिक विकास (Physical Development in Childhood)
  • किशोरावस्था में शारीरिक विकास (Physical Development in Adolescence)

शैशवावस्था में शारीरिक विकास (Physical Development in Infancy)

बालक की शैशवावस्था जन्म से लेकर 6 वर्ष तक के समय को माना गया है। इस समय वह अपने माता पिता एवं संबंधियों पर पूर्ण रूप से निर्भर होता है। उसका संपूर्ण व्यवहार मूल प्रवृत्ति के हिसाब से होता है। उसके शारीरिक विकास का निर्धारण वंशानुगत एवं पर्यावरणीय तत्वों पर निर्भर करता है। शैशवावस्था में शारीरिक विकास निम्नलिखित प्रकार से होता है:

1. भार एवं लंबाई (Weight and Height)

विभिन्न तथ्यों से यह पता चल चुका है कि जन्म के समय लड़की का भार लड़कों से अधिक तथा लड़कों की लंबाई लड़कियों से अधिक होती है। जन्म के समय शिशु का भार 5 से 8 पौंड तक होता है जो 4 माह में 14 पौंड, आठ माह में 18 पौंड, 12 माह में 21 पौंड तथा शैशवावस्था की समाप्ति पर 40 पाउंड तक हो जाता है। जन्म के समय शिशु की लंबाई 20 इंच के करीब होती है। 1 वर्ष में 27 से 28 इंच तक तथा 2 वर्ष में 31 इंच तक और शैशवावस्था की समाप्ति तक लंबाई 40 से 42 इंच तक लंबाई विकसित हो जाती है। Physical Development of Child

2. हड्डियां (Bones)

जन्म के समय शिशु की हड्डियां मुलायम एवं लचीली होती हैं। इन छोटी-छोटी हड्डियों की कुल संख्या 270 होती हैं। जब शिशु को फास्फोरस, कैल्शियम, तथा खनिज पदार्थों से युक्त भोजन दिया जाता है तब ये हड्डियां मजबूत एवं सशक्त हो जाती हैं। धीरे धीरे शिशु का अंगों पर नियंत्रण बढ़ता जाता है। बालिकाओं की अपेक्षा बालकों की हड्डियों में तीव्र गति से विकास होता है।

3. सिर एवं मस्तिष्क (Head and Mind)

नवजात शिशु के सिर का अनुपात शरीर की लंबाई की अपेक्षा चौथाई होता है। जन्म के समय मस्तिष्क का भार 650 ग्राम होता है जो 6 वर्ष में 1260 ग्राम तक हो जाता है।

4. अन्य अंग (Other body parts)

शिशु के जन्म की 6वें या 7वें माह में (कभी-कभी देर से भी) नीचे की ओर अस्थाई दांत निकलते हैं। 1 वर्ष में लगभग 8 दांत एवं 4 वर्ष तक अस्थाई सभी दांत निकल जाते हैं। शिशु की मांसपेशियों का भार शरीर के भार का 23 परसेंट होता है। शिशु की हृदय की धड़कन 1 मिनट में 140 बार धड़कती है।
शैशवावस्था के अंत तक हृदय की धड़कन की संख्या 100 रह जाती है। शिशु की टांगो एवं भुजाओं का विकास बहुत ही तीव्र गति से होता है। इस अवस्था में यौन अंगों का विकास बहुत ही मंद गति से होता है।

बाल्यावस्था में शारीरिक विकास (Physical Development in Childhood)

बाल्यावस्था का समय 6 वर्ष से 12 वर्ष तक माना जाता है। कॉल एवं मोरगन के अनुसार- “विकास ही परिवर्तनों का आधार है, यदि बालक का शारीरिक विकास नहीं होता तो वह कभी भी प्रौढ़ नहीं हो सकता।“ क्रो एवं क्रो के अनुसार बाल्यावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तन निम्नलिखित हैं:

1. भार एवं लंबाई (Weight and Height)

बाल्यावस्था में बालिकाओं एवं बालकों के भार में उतार-चढ़ाव होता रहता है। 9 या 10 वर्ष की आयु तक बालक भार में अधिक रहते हैं जबकि इसके पश्चात बालिकाएं शारीरिक भार में अधिक होती हैं। बाल्यावस्था के अंत तक इनका भार 80 से 95 पाउंड तक हो जाता है। इस अवस्था में लंबाई 2 से 3 इंच तक ही बढ़ती है।

2. हड्डियां और दांत (Bones and Teeth)

इस अवस्था में हड्डियों में मजबूती एवं दृढ़ता आती है। इनकी संख्या 350 तक बढ़ जाती है। दाँतों में स्थायित्व आना प्रारंभ हो जाता है। दाँतों की संख्या 32 होती है लेकिन कभी-कभी इस अवस्था में सारे दांत नहीं आते। बालकों की अपेक्षा बालिकाओं के दांतों का स्थायीकरण शीघ्र होता है। Physical Development of Child

3. सिर एवं मस्तिष्क (Head and Mind)

बाल्यावस्था में सिर एवं मस्तिष्क में परिवर्तन होता रहता है।

4. अन्य अंग (Other Body parts)

बालक की मांसपेशियों का विकास बहुत धीरे-धीरे होता है। धीरे-धीरे हृदय की धड़कन में कमी होती जाती है। चिकित्सकों के अनुसार इस अवस्था में बालक का हृदय 1 मिनट में 85 बार धड़कता है। बालक एवं बालिकाओं की शारीरिक बनावट में अंतर स्पष्ट होना प्रारंभ हो जाता है। आयु के 11वें एवं 12वें वर्ष में यौन अंगों का तीव्रता के साथ विकास होता है।

किशोरावस्था में शारीरिक विकास (Physical Development in Adolescence)

किशोरावस्था को मनोवैज्ञानिकों एवं शरीर शास्त्रियों ने सबसे जटिल अवस्था माना है। हॉलिंगवर्थ ने कहा है कि – “व्यापक दंतकथा यह है कि प्रत्येक बालक बदल रहा है। जैसे ही परिपक्वता आती है लोक वार्ताओं में वर्णित व्यक्तित्व उभरता है।“

किशोरावस्था में शारीरिक विकास निम्न प्रकार से होता है:

1. भार एवं लंबाई (Weight and Height)

किशोरावस्था में बालक एवं बालिकाओं के भार एवं लंबाई में तीव्रता के साथ वृद्धि होती है। 18 वर्ष के अंत तक लड़कों का भार लड़कियों के भार से लगभग 25 पाउंड तक अधिक हो जाता है। शरीरशास्त्रियों के अनुसार लड़कियों की लंबाई 16 वर्ष तक परिपक्व हो जाती है। जबकि लड़कों की लंबाई 18 वर्ष तक परिपक्व हो पाती है।

2. हड्डियाँ एवं दांत (Bones and Teeth)

किशोरावस्था में संपूर्ण शरीर में हड्डियों का ढांचा पूर्ण हो जाता है। हड्डियों में मजबूती आ जाती है और छोटी-छोटी हड्डियां भी एक दूसरे से जुड़ जाती हैं। इस अवस्था में दांतो का स्थायीकरण हो जाता है। लड़के और लड़कियों में अक्ल के दांत निकलने प्रारंभ हो जाते हैं। यह दाँत इस अवस्था के अंतिम दिनों में निकलते हैं। Physical Development of Child

3. सिर एवं मस्तिष्क (Head and Mind)

किशोरावस्था में सिर एवं मस्तिष्क का विकास निरंतर जारी रहता है। सिर का पूर्ण विकास मध्य किशोरावस्था में ही हो जाता है। विद्वानों के अनुसार इसकी आयु लगभग 15 से 17 वर्ष के बीच में मानी है। इस अवस्था में मस्तिष्क का भार 1200 ग्राम से लेकर 1400 ग्राम के बीच में होता है।

4. अन्य अंग (Other Body parts)

इस अवस्था में मांसपेशियों में सुडौलता एवं सुदृढ़ता आनी प्रारंभ हो जाती है। 12 वर्ष की आयु में मांसपेशियों का भार शरीर के कुल भार का लगभग 33% तथा 16 वर्ष की आयु में लगभग 44% होता है।
इस अवस्था में हृदय की धड़कन में पूर्ण कमी आनी प्रारंभ हो जाती है और यह 1 मिनट में 72 बार हो जाती है। लड़कों में पुरुषत्व एवं लड़कियों में स्त्रियों की पूर्ण विशेषताएं प्रकट होने लगती हैं। Physical Development of Child

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