Mental Development of Child in Hindi (बालक का मानसिक विकास)

Ad:

http://www.hindisarkariresult.com/mental-development-of-child/
Mental Development of Child

Mental Development of Child in Hindi/ Balak ka Mansik Vikas/ बालक का मानसिक विकास

जन्म के समय शिशु असहाय अवस्था में होता है और वह मानसिक क्षमता में भी पूर्ण अविकसित होता है। आयु की वृद्धि एवं विकास के साथ-साथ बालकों की मानसिक योग्यता में भी वृद्धि होती है। इस पर वंशानुक्रम एवं पर्यावरण दोनों का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है।

जे. एस. रॉस के अनुसार- “हमारे मस्तिष्क का विकास वंशानुगत प्रभाव के हस्तांतरण एवं अर्जित प्रभाव के मिश्रण के परिणाम स्वरूप संपूर्ण रूप से संगठित होता है।”

“Our mind grow as a result of innate dispositions, acquired dispositions, are formed and these in turn and welded into an organized whole.”

शैशवावस्था में मानसिक विकास (Mental Development in Infancy)

शैशवावस्था में बालको में होने वाले परिवर्तनों को विकास एवं अभिवृद्धि पर निर्भर होना पड़ता है। परिवर्तन बहुत ही तीव्र एवं अचानक होते हैं जिसकी वजह से बालकों में वैयक्तिक भिन्नता का आभास होता है।

सोरेन्स के अनुसार- “जैसे-जैसे शिशु प्रतिदिन, प्रतिमास, प्रतिवर्ष, बढ़ता जाता है वैसे वैसे उसकी मानसिक शक्तियों में परिवर्तन होता जाता है।”

जन्म के साथ शिशु कुछ क्रियाओं का प्रदर्शन स्वत: ही करता है जैसे छींकना, हिचकी लेना, अंगूठा चूसना, हाथ पैर हिलाना, रोना, चौंकना इत्यादि। इसके साथ उसका मानसिक विकास ज्ञानेंद्रियों पर निर्भर करता है। बालक अपने मानसिक विकास को वस्तु का आधार मानकर विकसित करता है, इसलिए बालकों को विभिन्न प्रकार के प्रतिरूप दिए जाते हैं। इनको देखकर वे मस्तिष्क में वस्तु के अनुरूप प्रतिमा बना लेते हैं। मानसिक विकास के द्वारा ही वे शरीर के अंगो का सही प्रयोग करना प्रारंभ करते हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, प्रथम वर्ष में शिशु ध्यान लगाना, संवेगों को प्रकट करना, शारीरिक अंगों में परिवर्तन लाना, विभिन्न प्रकार की ध्वनियाँ उत्पन्न करना, वस्तुओं को पकड़ना, अपनी पसंद और नापसंद प्रकट करना, आदि क्रियाओं का प्रयोग करना प्रारंभ कर देता है। प्रथम वर्ष की समाप्ति पर एवं द्वितीय वर्ष के प्रारंभ में शिशु दो चार शब्द बोलना प्रारंभ कर देते हैं। द्वितीय वर्ष के अंत तक उसको 100 से लेकर 200 शब्द तक बोलने आने लगते हैं। Mental Development of Child

तृतीय एवं चतुर्थ वर्ष में शिशु बोलना एवं लिखना सीखता है। इस समय अपने हाथों पर नियंत्रण करना प्रारंभ कर देता है। शैशवावस्था के अंतिम दिनों में नाम बोलना, लिखना, गिनती का प्रयोग करना, एवं जटिल वाक्यों को दोहराना आदि का विकास होता है।

अतः हम कह सकते हैं इस अवस्था में बालक स्थूल से सूक्ष्म की ओर, अस्पष्टता से स्पष्टता की ओर, तथा अनिश्चितता से निश्चितता की ओर बढ़ता है।

इसे भी पढ़ें: बालक का शारीरिक विकास

क्रो एंड क्रो के अनुसार- “इस अवस्था में बालकों के लिए समय अपने रूप में कुछ भी महत्व नहीं रखता है। बच्चे को आज, कल, एवं सप्ताह में कोई भी अंतर स्पष्ट नहीं दिखाई देता। समय की अवधि के सूचक सभी शब्द उसे मात्र शब्द ही प्रतीत होते हैं।“

बाल्यावस्था में मानसिक विकास (Mental Development in Childhood)

बाल्यावस्था में मानसिक विकास की गति बहुत तीव्र होती है। इस समय बालक की सहज प्रवृत्तियां एवं मूलवृतियाँ उसके सीखने में सहयोग प्रदान करती हैं जिससे उसकी जिज्ञासा शांत होती है। उसमें रुचि, चिंतन, स्मरण, निर्णय, एवं समस्या समाधान आदि गुणों का स्वत: ही विकास होता है। Mental Development of Child

क्रो एंड क्रो के अनुसार- “जब बालक लगभग 6 वर्ष का हो जाता है, तब उसकी मानसिक शक्तियों और योग्यताओं का लगभग पूर्ण विकास हो जाता है।“

बाल्यावस्था के प्रारंभिक वर्षों में बालक मातृभाषा के स्वर एवं व्यंजन तथा गिनती सीखता है। इसी अवस्था में वह शरीर के अंगों को बताना एवं वस्तुओं में अंतर स्थापित करना प्रारंभ कर देता है। बाल्यावस्था के मध्य के वर्षों में बालकों में रटने एवं ग्रहण करने की शक्ति तेजी से बढ़ती है। वह छोटी छोटी पंक्तियों को दोहराना, कहानी सुनाना आदि सीख जाता है। वह दैनिक व्यवहार करना सीख जाता है एवं दिन तारीख वर्ष एवं सिक्कों का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने लगता है। वह देखी हुई घटना का स्पष्ट वर्णन करना आरंभ कर देता है।

बाल्यावस्था के अंतिम वर्षों में बालक छोटी-छोटी कहानियों को सुना सकता है। उसके बोलने की गति 3 मिनट में 60-70 शब्दों तक होती है। वह सामाजिकता के प्रति जागरुक होने लगता है। इस समय बालक स्वनिरीक्षण एवं परीक्षण में विश्वास करता है। वह जिज्ञासा, निरीक्षण, तर्क आदि शक्तियों का प्रयोग करके मानसिक चेतना को प्रकट करता है। इसी अवस्था में बच्चों को सांसारिक ज्ञान भी होना शुरू होता है। वह देखी हुई फिल्म की कहानी को 3/4 भाग तक सुनाने में सफल हो जाता है।

किशोरावस्था में मानसिक विकास (Mental Development in Adolescence)

किशोरावस्था में मानसिक विकास की स्थिति निम्न प्रकार से विकसित होती है-

  • बुद्धि में स्थिरता (Stability in intelligence)
  • मानसिक शक्तियां (Mental powers)
  • चिंतन में स्वाभाविकता (Reality in thinking)
  • कल्पना शक्ति में तीव्रता (Sharpness in imagination power)
  • रुचि में विविधता (Differences in interest)

1. बुद्धि में स्थिरता (Stability in intelligence)

किशोरावस्था में बुद्धि का पूर्ण विकास हो जाता है। इसलिए इस अवस्था को बुद्धि में स्थिरता लाने वाली अवस्था भी कहा जाता है। टर्मन जोंस, कोनाई और स्पीयर्समैन के अनुसार- “बुद्धि का पूर्ण विकास 14 से 16 वर्ष के बीच माना जाता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बुद्धि में प्रखरता का विकास ही संभव है क्योंकि बुद्धि जन्मजात होती है।“

2. मानसिक शक्तियां (Mental powers)

इस अवस्था में बालक एवं बालिकाओं की संवेदना, प्रत्यक्षीकरण, अवधान, स्मृति, विस्मृति, कल्पना, चिंतन, तर्क और समस्या समाधान आदि मानसिक शक्तियों का पूर्ण विकास हो जाता है। वह इनका प्रयोग विभिन्न परिस्थितियों में आसानी से कर सकते हैं।

3. चिंतन में स्वाभाविकता (Reality in thinking)

इस आयु में चिंतन में नवीनता एवं स्वाभाविकता आना प्रारंभ हो जाता है। किशोर सामाजिक रूढ़ियों, परंपराओं और रीति-रिवाजों एवं अंधविश्वास आदि का विरोध करता है और नए मापदंडों का प्रयोग करता है। अतः उसके चिंतन को एक नई दिशा मिलती है। Mental Development of Child

4. कल्पना शक्ति में तीव्रता (Sharpness in imagination power)

किशोरावस्था में कल्पना शक्ति का बाहुल्य रहता है। किशोर अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए दिवास्वप्न देखते हैं। उनकी इस कल्पना शक्ति को सही मार्गदर्शन देकर कला संगीत खेल साहित्य एवं अन्य रचनात्मक कार्य में मौलिकता का प्रदर्शन किया जा सकता है। अध्ययनों से यह स्पष्ट होता है कि बालिकाओं में बालकों की अपेक्षा कल्पना शक्ति की अधिकता होती है।

5. रुचि में विविधता (Differences in interest)

किशोरावस्था में रुचिओं का विकास तीव्रता से होता है। किशोर एवं किशोरी अपनी अपनी रुचियों का चुनाव अलग अलग तरीकों से करते हैं। किशोरियों में स्त्रियोचित रुचियों का विकास होता है जबकि किशोरों में पुरुषोचित रुचियों का विकास होता है। अतः रुचियों में विविधता होना स्वाभाविक है।

मानसिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक (Affecting factors of Mental Development)

मानसिक विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं:

  • आनुवांशिकता (Heredity)
  • शारीरिक स्वास्थ्य (Physical health)
  • परिवार (Family)
  • माता-पिता की सामाजिक स्थिति (Social status of parents)
  • माता-पिता की आर्थिक स्थिति (Economic status of parents)
  • विद्यालय का वातावरण (Environment of school)
  • रोचक शिक्षण विधियां (Interesting teaching methods)
  • शिक्षक का मानसिक स्वास्थ्य (Mental health of teacher)
  • समाज (Society)

1. आनुवंशिकता (Heredity)

मनोवैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि बालक के कुछ मानसिक गुण तथा योग्यताएं अनुवांशिकता से ही प्राप्त होती है। पर्यावरण इसको प्रभावित नहीं करता है। बालक के विकास के क्रम में उसके कुछ मानसिक गुण वंशानुगत ही आते हैं।

2. शारीरिक स्वास्थ्य (Physical health)

बालक का शारीरिक स्वास्थ्य उसके मानसिक विकास को प्रभावित करता है। एक स्वस्थ बालक का मानसिक विकास एक अस्वस्थ बालक की अपेक्षा शीघ्र होता है।

इसे भी पढ़ें: बाल विकास की अवस्थाएं

3. परिवार (Family)

परिवार का प्रेमपूर्ण एवं सौहार्दपूर्ण व्यवहार बालक के मानसिक विकास में सहायक होता है। परिवार में पति पत्नी के संबंध यदि मधुर हैं तो वह अपने बालक की ओर अधिक ध्यान दे सकते हैं इसके फलस्वरूप बालकों के मानसिक स्वास्थ्य का विकास ठीक प्रकार से होता है।

4. माता-पिता की सामाजिक स्थिति (Social status of parents)

माता पिता की सामाजिक स्थिति भी बालकों के मानसिक विकास को प्रभावित करती है। जिन बालकों के माता-पिता की सामाजिक स्थिति उच्च तथा अच्छी होती हैं उनका मानसिक विकास अधिक तेजी से होता है। ऐसे बालकों को अच्छे मानसिक विकास के लिए अनेक साधन आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।

5. माता-पिता की आर्थिक स्थिति (Economic status of parents)

बालकों के मानसिक विकास में माता-पिता की आर्थिक स्थिति भी मायने रखती है। गरीब परिवार के बालकों का मानसिक विकास उचित ढंग से नहीं हो पाता है जबकि धनी परिवार के बालक अपनी सभी आवश्यकताओं को पूरा कर लेते हैं। निर्धन परिवार के बालकों को भोजन वस्त्र तथा पुस्तकों का अभाव रहता है जिसके कारण उनका मानसिक विकास धीमा पड़ जाता है। Mental Development of Child

6. विद्यालय का वातावरण (Environment of school)

विद्यालय का वातावरण भी बालकों के मानसिक विकास को प्रभावित करता है। यदि विद्यालय का वातावरण अनुशासित है तो बालकों का मानसिक विकास अच्छी तरह से होता है। एक अच्छा विद्यालय अपने छात्रों की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करता है और इस प्रकार से उसके मानसिक विकास में सहायक होता है।

7. रोचक शिक्षण विधियां (Interesting teaching methods)

प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तू ने कहा था कि- “शिक्षा मनुष्य की शक्ति का विशेष रूप से उसकी मानसिक शक्ति का विकास करती है।” अतः बालक के मानसिक विकास में रोचक शिक्षण विधियों का विशेष महत्व है।“

8. शिक्षक का मानसिक स्वास्थ्य (Mental health of teacher)

यदि शिक्षक का मानसिक स्वास्थ्य अच्छा है तो वह अपने छात्रों को मानसिक विकास में विशेष योगदान दे सकता है। बालक के मानसिक विकास में शिक्षक का महत्वपूर्ण स्थान होता है।
यदि बालकों को अपने शिक्षक से पर्याप्त प्रेरणा और सहानुभूति मिलती है तो बालक का मानसिक विकास तीव्र गति से होता है।

9. समाज (Society)

किसी देश का समाज बालकों को जैसी सुविधाएं प्रदान करता है, उसी प्रकार से उनका मानसिक विकास होता है। समाज ही मानसिक विकास की गति और सीमा को निर्धारित करता है। उपर्युक्त कारकों के अतिरिक्त कुछ अन्य कारक जैसे पुस्तकालय, वाचनालय, मनोरंजन के साधन, शिक्षा के ऑनलाइन साधन आदि भी बालक के मानसिक विकास को प्रभावित करते हैं। Mental Development of Child

Ad:

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*


This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.