India Famous Movement Andolan in Hindi (भारत के प्रमुख राष्ट्रीय आन्दोलन)

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India Famous Movement Andolan

India Famous Movement Andolan, भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु भारत के क्रांतिकारियों द्वारा बहुत सारे राष्ट्रीय आंदोलन किए गए। इनमें से कई राष्ट्रीय आंदोलन, आधुनिक विश्व के सबसे बड़े एवं सफल आंदोलनों में से एक माने जाते हैं।

नील आंदोलन (Neel Movement in Hindi)

ब्रिटिश नील उत्पादकों के उत्पीड़न से परेशान बंगाल तथा बिहार की किसानों के द्वारा नील आंदोलन का आरंभ किया गया। इस आंदोलन की शुरुआत दिगंबर तथा विष्णु विश्वास के नेतृत्व में 1859 ईस्वी में बंगाल के नादिया जिले में हुई थी। दीनबंधु मित्र के नाटक नील दर्पण में नील आंदोलन की पृष्ठभूमि है।

हिंदू पेट्रियट के संपादक हरिश्चंद्र मुखर्जी ने अखबारों में अपने लेख तथा  जनसभाओं के माध्यम से विद्रोह के प्रति अपने समर्थन को व्यक्त किया। India Famous Movement Andolan

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 1885 ईसवी में ए ओ ह्यूम के द्वारा की गई थी जो कि एक सेवानिवृत्त अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी थे। इसका प्रथम अधिवेशन दिसंबर 1885 में मुंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में हुआ, जिसकी अध्यक्षता व्योमेश चंद्र बनर्जी ने की। इस अधिवेशन में कुल 72 सदस्यों ने भाग लिया।

1885 में कांग्रेस की स्थापना के बाद अगले 20 वर्षों तक इस पर ऐसे गुट का प्रभाव था जिसे उदारवादी गुट कहा जाता है। उदारवादियों के प्रमुख नेता थे दादा भाई नौरोजी, सुरेंद्रनाथ बनर्जी, फिरोजशाह मेहता, महादेव गोविंद रानाडे, गोपाल कृष्ण गोखले, मदन मोहन मालवीय आदि।

1905 से 1919 ईस्वी के चरण को नवराष्ट्रवाद अथवा गरमपंथियों के उदय का काल माना जाता है। कोंग्रेस की गरमपंथी नेताओं में प्रमुख थे बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, बिपिन चंद्र पाल, (इनको भारतीय इतिहास में बाल, लाल, पाल नाम से जाना जाता है), अरविंद घोष इत्यादि। कांग्रेस का पूर्ववर्ती नाम इंडियन नेशनल यूनियन था, बाद में दादा भाई नौरोजी ने इस संस्था का नाम बदलकर कांग्रेस कर दिया। India Famous Movement Andolan

बंगाल विभाजन

20 जुलाई 1905 को लॉर्ड कर्जन ने बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा की। 16 अक्टूबर 1905 को बंगाल विभाजन प्रभावी हुआ। इस दिन को संपूर्ण बंगाल में काला दिन के रूप में मनाया गया।

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स्वदेशी एवं स्वराज

बाल, लाल, पाल और अरविंद घोष के प्रयासों के कारण कांग्रेस ने स्वदेशी एवं स्वराज की मांग रखी। 1906 में कोलकाता अधिवेशन में दादा भाई नौरोजी की अध्यक्षता में कांग्रेस ने स्वराज्य की मांग रखी। स्वदेशी आंदोलन ने भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन को बृहद रूप से आगे बढ़ाया

मुस्लिम लीग की स्थापना

1906 में सलीम उल्ला खां एवं आगा खां के नेतृत्व में ढाका मुस्लिम लीग की स्थापना हुई। मुस्लिम लीग के प्रथम अध्यक्ष वकार उल मुल्क मुस्ताक हुसैन थे। नवाब सलीमुल्लाह मुस्लिम लीग के संस्थापक अध्यक्ष थे।

कांग्रेस का विभाजन

कांग्रेस का विभाजन कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में हुआ। स्वदेशी के मुद्दे पर 1907 ईस्वी में कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में कांग्रेसी स्पष्ट रूप से उदारवादी (नरमपंथी) एवं उग्रवादी (गरमपंथी) नामक दो दलों में विभाजित हो गये। इस अधिवेशन की अध्यक्षता रासबिहारी घोष ने की थी।

दिल्ली दरबार

इंग्लैंड के सम्राट जार्ज पंचम एवं महारानी मैरी के स्वागत में 1911 में दिल्ली में एक भव्य दरबार का आयोजन किया गया। इस दरबार में बंगाल विभाजन को रद्द करने तथा भारत की राजधानी कोलकाता से दिल्ली स्थानांतरित करने की घोषणा हुई। असम प्रांत भी इसी समय में स्थापित किया गया।

लखनऊ समझौता

1916 ईस्वी में लखनऊ में मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना तथा कांग्रेस के मध्य एक समझौता हुआ जिसके अंतर्गत कांग्रेस एवं मुस्लिम लीग ने मिलकर एक संयुक्त समिति की स्थापना की। समझौते के तहत कांग्रेस ने मुस्लिम लीग की सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व की मांग स्वीकार कर ली।

1916 ईस्वी लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता अंबिका चरण मजूमदार ने की थी। लखनऊ अधिवेशन में कांग्रेस के दोनों दल पुनः एक हो गए। India Famous Movement Andolan

होमरूल लीग आंदोलन

भारत में सबसे पहले होमरूल लीग की स्थापना 28 अप्रैल 1916 ईस्वी में बाल गंगाधर तिलक ने बेलगांव पुणे में की थी। जोसेफ बेपटिस्टा इसके अध्यक्ष थे। सितंबर 1916 में एनी बेसेंट ने अखिल भारतीय होमरूल लीग का मद्रास में गठन किया। जॉर्ज अरुंडेल इस होमरूल लीग के सचिव थे। एनी बेसेंट के सहयोगियों में वी पी वाडिया तथा सी पी रामास्वामी अय्यर शामिल थे।

अगस्त घोषणा (मांटेग्यू घोषणा)

भारतीय सचिव मांटेग्यू द्वारा 20 अगस्त 1917 को ब्रिटेन की कामन सभा में एक प्रस्ताव पढ़ा गया जिसमें भारत में प्रशासन की हर शाखा में भारतीयों को अधिक प्रतिनिधित्व दिए जाने की बात कही गई थी। इसे मांटेग्यू घोषणा कहा जाता है।

चंपारण सत्याग्रह

1917 ईस्वी में चंपारण के किसान राजकुमार शुक्ल के निमंत्रण पर गांधीजी चंपारण आये। उस समय चंपारण में नील के किसानों की स्थिति बहुत खराब थी। उस समय एक पद्धति प्रचलित थी जिसे तिनकठिया पद्धति कहते थे जिसके अंतर्गत 3/20वें हिस्से पर नील की खेती करना अनिवार्य था।

गांधीजी ने नील किसानों के समर्थन में सत्याग्रह का पहली बार भारत में प्रयोग किया। इस आंदोलन से जुड़े अन्य नेता थे राजेंद्र प्रसाद, जेबी कृपलानी, और महादेव देसाई। India Famous Movement Andolan

चंपारण सत्याग्रह के दौरान गांधीजी के कुशल नेतृत्व से प्रभावित होकर रविंद्र नाथ टैगोर ने उन्हें महात्मा की उपाधि प्रदान की।

खेड़ा सत्याग्रह

गांधीजी ने किसानों की समस्याओं को लेकर 1918 में खेड़ा में किसान सत्याग्रह की शुरुआत की। यहां पर गांधी जी के अन्य सहयोगियों में सरदार वल्लभभाई पटेल, इंदूलाल याज्ञनिक थे।

अहमदाबाद सत्याग्रह

अहमदाबाद सत्याग्रह मिल मजदूरों और मिल मालिकों के बीच प्लेग बोनस को लेकर विवाद आरंभ हुआ था। इस आंदोलन में गांधीजी सर्वप्रथम भूख हड़ताल पर बैठे थे। यहां पर गांधी जी की सहायक अनसूया बेन पटेल थी।

रोलेट अधिनियम रौलट एक्ट

इस अधिनियम के द्वारा अंग्रेज सरकार जिसको चाहे जब तक बिना मुकदमा चलाये जेल में बंद रख सकती थी। यह अधिनियम जनता की सामान्य स्वतंत्रता पर प्रत्यक्ष कुठाराघात था। इस अधिनियम को बिना अपील, बिना वकील, बिना दलील का कानून भी कहा गया। इसे काला अधिनियम या अपराध अधिनियम के नाम से भी जाना जाता है। India Famous Movement Andolan

जलियांवाला बाग हत्याकांड

रौलट एक्ट के विरोध में सरकार ने पंजाब के लोकप्रिय नेता डॉक्टर सैफुद्दीन किचलू और डॉक्टर सत्यपाल को गिरफ्तार कर लिया। इसी गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में एक जनसभा आयोजित की गई, जिस पर जनरल डायर ने गोलियां चलवा दी। इससे यहां सैकड़ों लोग मारे गए। इस हत्याकांड में हंसराज नामक एक भारतीय ने डायर का सहयोग किया था।

13 मार्च 1940 को सरदार उधम सिंह ने कैक्सटन हॉल लंदन में एक मीटिंग को संबोधित कर रहे जनरल ओ डायर जो जलियांवाला बाग कांड के समय पंजाब का लेफ्टिनेंट गवर्नर था की गोली मारकर हत्या कर दी।

खिलाफत आंदोलन

प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन और उसके सहयोगियों द्वारा तुर्की पर किए गए अत्याचारों ने मुसलमानों को गहरा आघात पहुंचाया। इसके परिणाम स्वरूप 1919 ईस्वी में अखिल भारतीय खिलाफत कमेटी का गठन किया गया। इस आंदोलन में मोहम्मद अली और शौकत अली नाम के दो व्यक्तियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

नवंबर 1919 में दिल्ली में अखिल भारतीय खिलाफत आंदोलन में गांधीजी को सम्मेलन का अध्यक्ष चुना गया।

असहयोग आंदोलन

1920 ईस्वी में लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में हुई कोलकाता अधिवेशन में गांधी जी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन का प्रस्ताव पारित हुआ। इस आंदोलन के दौरान विद्यार्थियों द्वारा शिक्षण संस्थाओं का बहिष्कार और वकीलों द्वारा न्यायालयों का बहिष्कार किया गया।

17 नवंबर 1921 को प्रिंस आफ वेल्स के भारत आगमन पर संपूर्ण भारत में सार्वजनिक हड़ताल का आयोजन किया गया। 1922 में गांधी जी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ करने की योजना बनाई।

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आंदोलन के पूर्व ही उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले में स्थित चौरी चौरा नामक स्थान पर 5 फरवरी 1922 को आंदोलनकारियों की भीड़ ने पुलिस के 22 जवानों को थाने के अंदर जिंदा जला दिया। इस घटना से गाँधीजी बहुत आहत हुए और उन्होंने 12 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन वापस ले लिया।

स्वराज पार्टी

असहयोग आंदोलन की समाप्ति के पश्चात 1923 ईस्वी में मोतीलाल नेहरू, चितरंजन दास एवं एन सी केलकर ने  इलाहाबाद में स्वराज पार्टी की स्थापना की। गांधीजी ने भी स्व्राजियों के काउन्सिल में प्रवेश का समर्थन किया था। 1925 ईस्वी में चितरंजन दास की मृत्यु हो जाने से स्वराज पार्टी शिथिल पड़ गई।

साइमन कमीशन

ब्रिटिश सरकार ने सर जॉन साइमन के नेतृत्व में 7 सदस्यों वाले आयोग की स्थापना की जिसमें सभी सदस्य ब्रिटेन के थे। 8 नवंबर 1927 को इस आयोग की स्थापना की घोषणा हुई। इस आयोग में किसी भी भारतीय को शामिल नहीं किया गया जिसके कारण भारत में इस कमीशन का तीव्र विरोध हुआ। साइमन कमीशन के विरोध के कारण लखनऊ में जवाहरलाल नेहरू, गोविंद बल्लभ पंत आदि ने लाठियां खाई। लाहौर में लाठी की चोट के कारण लाला लाजपत राय की अक्टूबर 1928 में मृत्यु हो गई। साइमन कमीशन ने 27 मई 1930 को अपनी रिपोर्ट प्रकाशित की।

नेहरू रिपोर्ट

साइमन कमीशन का बहिष्कार करने पर लार्ड वर्कन हैड ने भारतीयों को संविधान बनाने की चुनौती दी। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए 1928 ईस्वी में पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक 7 सदस्यीय समिति का गठन किया गया। इस समिति ने 28 अगस्त 1928 को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जिसे नेहरू रिपोर्ट के नाम से जाना जाता है। मुस्लिम लीग के अध्यक्ष मोहम्मद अली जिन्ना ने नेहरू रिपोर्ट को मानने से इंकार कर दिया।

जिन्ना फार्मूला

मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना ने नेहरू रिपोर्ट में मुसलमानों के लिए पृथक निर्वाचक मंडल की सुविधा ना दिए जाने के कारण मुसलमानों की 14 मांगों का प्रपत्र जारी किया, जिसे जिन्ना का 14 सूत्रीय फार्मूला कहा जाता है।

बारदोली सत्याग्रह

गुजरात में स्थित बारदोली के किसानों ने सरकार द्वारा बढ़ाये गए 30% कर के विरोध में बल्लभ भाई पटेल के नेतृत्व में सत्याग्रह किया। बाद में बल्लभ भाई पटेल के आगे झुकते हुए सरकार ने कर में 30% की वृद्धि को वापस ले लिए और इस वृद्धि को 6।3% ही रहने दिया। इस सत्याग्रह की सफलता से उत्साहित होकर वहाँ की महिलाओं ने बल्लभ भाई पटेल को सरदार की उपाधि प्रदान की। इसके बाद से वे सरदार बल्लभ भाई पटेल के नाम से जाने गए। India Famous Movement Andolan

कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन

सन 1929 में हुए कांग्रेस की लाहौर अधिवेशन की अध्यक्षयता पंडित जवाहर लाल नेहरु ने की थी। इस अधिवेशन में पूर्ण स्वराज को अंतिम लक्ष्य माना गया। इसी अधिवेशन में 26 जनवरी  1930 को स्वतंत्रता दिवस मनाने का प्रस्ताव पारित किया गया। 31 दिसंबर 1929 को रावी नदी के तट पर तिरंगा झंडा फहराया गया।

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