Social Development in Childhood (बाल्यावस्था में सामाजिक विकास)

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Social Development in Childhood

Social Development in Childhood / बाल्यावस्था में सामाजिक विकास

शिशु का संसार उसका परिवार होता है जबकि बालक का संसार परिवार के बाहर बालकों का झुंड और विद्यालय आदि होता है। अतः इसका क्षेत्र काफी बढ़ जाता है। बालक विभिन्न प्रकार के ज्ञान अर्जन द्वारा सामाजिकता का विकास करता है।

बाल्यावस्था में होने वाले समाजिक विकास के प्रमुख आयाम निम्नलिखित हैं:

  • सामाजिक भावना (Social feeling)
  • आत्मनिर्भरता (Self dependency)
  • समूह प्रवृत्ति (Group Tendency)
  • नागरिक गुणों का विकास (Development of Civilization features)
  • वैयक्तिकता का विकास (Development of individuality)
  • भावना ग्रंथि का विकास (Development of feeling complex)

सामाजिक भावना (Social feeling)

बाल्यावस्था मैं बालक एवं बालिकाओं में सामाजिक जागरूकता चेतना एवं समाज के प्रति रुझान विशेष मात्रा में पाया जाता है। उनका सामाजिक क्षेत्र व्यापक एवं विकसित होने लगता है। वह विद्यालय के पर्यावरण के अनुकूलन करना, नए मित्र बनाना और सामाजिक कार्यों में भाग लेना आदि सीखते हैं।

आत्मनिर्भरता (Self dependency)

बाल्यावस्था में बच्चे स्वयं को स्वतंत्र मानकर आत्म सम्मान प्राप्त करते हैं। मैं स्वयं को आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास करते हैं। चूँकि इस अवस्था में बालक परिवार को छोड़कर बच्चों के साथ ज्यादा समय बिताते हैं और निर्णय लेते हैं इसलिए उनमें आत्म निर्भरता की भावना प्रखर रूप से बढ़ती जाती है। वास्तविकता तो यह है कि बालक अपनी आंख भर के बच्चों के साथ ही प्रसन्न रहते हैं, ना छोटों के साथ खेलते हैं और न ही बड़ों के क्रियाकलापों में रुचि रखते हैं।

समूह प्रवृत्ति (Group Tendency)

इस अवस्था के बालक इतने क्रियाशील और सक्रिय होते हैं कि वे अपनी अवस्था के बालकों का समूह बना लेते हैं। बालक अलग-अलग तरह के खेल समूह सेवा समूह, या सांस्कृतिक समूह आदि बना लेते हैं और अपने नियमों, मान्यताओं आदि को पसंद करते हैं और अन्य समूह के समक्ष अपनी श्रेष्ठता को प्रदर्शित करते हैं। वे ऐसे कार्य करना पसंद करते हैं जिससे उनका समूह में विशिष्ट सदस्य का महत्व दे। Social Development in Childhood

नागरिक गुणों का विकास (Development of Civilization features)

बाल्यावस्था में बालकों में आदतों, चारित्रिक गुणों, एवं नागरिक गुणों आदि का विकास होता है। वे अपने माता-पिता, अध्यापक, या विशिष्ट प्रभाव के व्यक्तित्वों के प्रति आकर्षित होते हैं और उनकी विशेषताओं से सीखते हैं। मैं स्वयं को सुखी धनवान विद्वान नेता या सामाजिक प्रतिष्ठित व्यक्ति आदि के रूप में देखना चाहते हैं।

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अतः बाल्यावस्था ही नागरिक गुणों के विकास एवं स्थायित्व की सही अवस्था है।

वैयक्तिकता का विकास (Development of individuality)

बाल्यावस्था में पुरुषत्व एवं स्त्रीत्व के स्वभाव का अलग-अलग विकास होना प्रारंभ हो जाता है। बालक अधिकांश समय अन्य बालकों के साथ व्यतीत करते हैं और बालिकाएं अन्य बालिकाओं के समूह के साथ। इस अवस्था में दोनों में यौन भिन्नता के साथ वैयक्तिक अंतर स्थापित होने लगता है। उनकी आदतों, रुचियों, मनोवृति और रहन-सहन आदि में पर्याप्त भिन्नता स्पष्ट होने लगती है।

भावना ग्रंथि का विकास (Development of feeling complex)

इस अवस्था में लड़कों में आडिपस और लड़कियों में एलकटा भावना ग्रंथि का विकास होने लगता है।  आडिपस ग्रंथि के कारण पुत्र अपनी माता को अधिक प्यार करने लगता है और एलकटा ग्रंथि के कारण लड़की अपने पिता को अधिक चाहने लगती है।

यह प्रकृति का नियम है कि विषमलिंगी प्यार बाल्यावस्था से प्रारंभ होकर युवावस्था तक चलता है। यही कारण है कि लड़की एवं लड़कियां अपने कार्यों में अपनी अपनी भावना ग्रंथियों का प्रदर्शन करते हैं। इस प्रकार से उनको आत्मिक सुख एवं संतोष प्राप्त होता है और इसी आधार पर वे अपने भविष्य को निश्चित करते हैं। Social Development in Childhood

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