Shak Vansh ka Itihas (शक वंश का इतिहास)

Ad:

https://www.hindisarkariresult.com/shak-vansh-ka-itihas
Shak Vansh ka Itihas

Shak Vansh ka Itihas Hindi me / शक वंश के बारे में विस्तृत जानकारी / History of Saka dynasty in Hindi

शक मूलतः मध्य एशिया की एक कबीलायी जाति थी जो बैक्ट्रियनों (भारतीय-यूनानियों) के बाद में भारत में आये. कुछ इतिहासकार शकों को आर्य मानते हैं हालाँकि इनकी सही नस्ल की पहचान करना कठिन है क्योंकि प्राचीन भारतीय, ईरानी, यूनानी और चीनी स्रोत इनका अलग-अलग विवरण देते हैं। फिर भी अधिकतर इतिहासकार मानते हैं कि ‘सभी शक स्किथी थे, लेकिन सभी स्किथी शक नहीं थे’, अर्थात  ‘शक’ स्किथी समुदाय के अन्दर के कुछ हिस्सों की जाति का नाम था। स्किथी होने के नाते शक एक प्राचीन ईरानी भाषा-परिवार की बोली बोलते थे और इनका अन्य स्किथी-सरमती लोगों से सम्बन्ध था।

शकों का भारत में आगमन

लगभग ई.पू. 165 में शकों को युएझ़ी नामक एक अन्य मध्य एशियाई कबीले ने खदेड़ दिया. इसके बाद शकों ने उनसे पूर्व भारत में आई बक्ट्रियन जाति (जो उस समय शाकल एवं तक्षशिला से उत्तरी-पश्चिमी क्षेत्रों में राज कर रही थी) पर आक्रमण करना शुरू कर दिए. बक्ट्रियन शक्ति धीरे-धीरे खत्म हो रही थी. शकों ने बक्ट्रियनों को पराजित किया और भारत में बक्ट्रियनों (यूनानियों) की अपेक्षा अधिक बड़े भाग पर नियंत्रण स्थापित किये. शक अपने राज्यों को क्षत्रप कहते थे.

शकों का भारत के इतिहास (Shak Vansh ka Itihas) पर गहरा असर रहा है. आधुनिक भारतीय राष्ट्रीय कैलंडर ‘शक संवत’ कहलाता है। बहुत से इतिहासकार इनके दक्षिण एशियाई साम्राज्य को ‘शकास्तान’ कहने लगे हैं, जिसमें पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, सिंध, ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा और अफ़्ग़ानिस्तान शामिल थे।

शकों का इतिहास

इतिहासकारों के अनुसार शक प्राचीन आर्यों के वैदिक कालीन सम्बन्धी रहे हैं जो शाकल द्वीप पर बसने के कारण शाक अथवा शक कहलाये. भारतीय पुराण के अनुसार शक शक्तिशाली राजा सगर (Sargon-I) द्वारा देश निकाले गए थे व लम्बे समय तक निराश्रय रहने के कारण अपना सही इतिहास सुरक्षित नहीं रख पाए। हूणों द्वारा शकों को शाकल द्वीप क्षेत्र से भी खदेड़ दिया गया था। जिसके परिणाम स्वरुप शकों का कई क्षेत्रों में बिखराव हुआ। वर्तमान में ये रोड़ जाति हैं जो करनाल के आसपास पाए जाते हैं. 

नोट: पुराणों में शक जाति की उत्पत्ति सूर्यवंशी राजा नरिष्यंत से कही गई है। राजा सगर ने राजा नरिष्यंत को वर्णाश्रम आदि के नियमों का पालन न करने के कारण तथा ब्राह्मणों से अलग रहने के कारण राज्यच्युत तथा देश से निर्वासित कर दिया था जिससे वे म्लेच्छ हो गए थे। उन्हीं के वंशज शक कहलाए।

आधुनिक विद्वानों का मत है कि मध्य एशिया पहले शकद्वीप के नाम से प्रसिद्ध था। यूनानी इस देश को ‘सीरिया’ कहते थे। उसी मध्य एशिया के रहनेवाला शक कहे जाते है। एक समय यह जाति बड़ी बलशाली हो गई थी। ईसा से दो सौ वर्ष पहले इसने मथुरा और महाराष्ट्र पर अपना अधिकार कर लिया था। ये लोग अपने को देवपुत्र कहते थे। इन्होंने 190 वर्ष तक भारत पर राज्य किया था। इनमें कनिष्क और हविष्क आदि बड़े बड़े प्रतापशाली राजा हुए हैं।

भारत के पश्चिमोत्तर भाग कापीसा और गांधार में यवनों के कारण ये ठहर न सके और बोलन घाटी पार कर भारत में प्रविष्ट हुए। तत्पश्चात् उन्होंने पुष्कलावती एवं तक्षशिला पर अधिकार कर लिया और वहाँ से यवन हट गए। 72 ई. पू. शकों का प्रतापी नेता मोअस उत्तर पश्चिमांत के प्रदेशों का शासक था। उसने महाराजाधिराज महाराज की उपाधि धारण की जो उसकी मुद्राओं पर अंकित है। उसी ने अपने अधीन क्षत्रपों की नियुक्ति की जो तक्षशिला, मथुरा, महाराष्ट्र और उज्जैन में शासन करते थे। कालांतर में ये स्वतंत्र हो गए। शक विदेशी समझे जाते थे यद्यपि उन्होंने शैव मत को स्वीकार कर किया था। मालव जन ने विक्रमादित्य के नेतृत्व में मालवा से शकों का राज्य समाप्त कर दिया और इस विजय के स्मारक रूप में विक्रम संवत् का प्रचलन किया जो आज भी हिंदुओं के धार्मिक कार्यों में व्यवहृत है। शकों के अन्य राज्यों का शकारि विक्रमादित्य गुप्तवंश के चंद्रगुप्त द्वितीय ने समाप्त करके एकच्छत्र राज्य स्थापित किया। शकों को भी अन्य विदेशी जातियों की भाँति भारतीय समाज ने आत्मसात् कर लिया। शकों की प्रारंभिक विजयों का स्मारक शक संवत् आज तक प्रचलित है।

शक वंश एवं उसके प्रमुख शासक

भारत और अफगानिस्तान में शक शासकों (Shak Vansh ka Itihas) की पांच शाखाएं थीं. उनकी राजधानियां भारत और अफगानिस्तान के अलग-अलग भागों में थीं. तत्कालीन अफगानिस्तान का शक राज्य आज शकस्तान अथवा सीस्तान के नाम से जाना जाता है. भारत में शकों की चार क्षेत्रीय शाखाओं को दो भागों में विभाजित किया जाता है, जो उत्तरी क्षत्रप तथा पश्चिमी क्षत्रप के नाम से जाने जाते हैं. उत्तरी क्षत्रप के केन्द्र तक्षशिला और मथुरा थे जबकि पश्चिमी क्षत्रप के केन्द्र नासिक तथा उज्जैन थे.

तक्षशिला में शक शासक

उत्तरीक्षत्रप का प्रथम केन्द्र पंजाब था और इसकी राजधानी तक्षशिला थी. सम्भवतः इस केन्द्र का प्रथम शासक ल्याक कुशुलक था. उसका उत्तराधिकारी उसी का पुत्र पाटिक था. मथुरा के सिंहध्वज अभिलेख से पता चलता है कि पाटिक ने पहले स्वयं को क्षत्रप तथा बाद में महाक्षत्रप कहा. साक्ष्यों के अभाव में इस केन्द्र के शासकों के बारे में कोई विशेष जानकारी प्राप्त नहीं हो सकी है.

मथुरा में शक शासक

उत्तरीक्षत्रप का दूसरा केन्द्र मथुरा था. इस केन्द्र के दो शक शासकों (Shak Vansh ka Itihas) हगामश तथा हगान के बारे में उस समय के प्रचलित सिक्कों से जानकारी प्राप्त होती है. लेकिन इतिहासकार यह तय नहीं कर सके हैं कि यह मथुरा में एक साथ या अलग-अलग भागों में राज करते थे. इस केन्द्र के दो अन्य शक शासकों की जानकारी भी सिक्कों तथा अभिलेखों से प्राप्त होती है. इनमें पहला राजूल था तथा दूसरा शोडास. विद्वानों के अनुसार, राजूल ने क्षत्रप तथा महाक्षत्रप की उपाधियां ग्रहण कीं. इसी तरह शोडास ने भी अपने पिता राजूल की तरह स्वयं को क्षत्रप एवं महाक्षत्रप कहलवाया .

नासिक में शक शासक

भारत में उत्तरी क्षत्रप की बजाय पश्चिमी क्षत्रप अधिक प्रसिद्ध हुआ.  इसका प्रथम केन्द्र नासिक था. इस केन्द्र के दो शासक प्रसिद्ध हुए भूमक और नहपान. भूमक के तांबे के सिक्‍के प्राप्त होते हैं जिसमें वह स्वयं को क्षत्रप कहता है. उसके सिक्के नासिक के अलावा महाराष्ट्र और काठियावाड़ में भी प्राप्त होते हैं. विद्वानों की राय है कि ये दोनों प्रदेश उसके राज्य में शामिल थे. नह्पान के बारे में पर्याप्त सामग्री मिलती है. इससे सम्बन्धित सात अभिलेख और हजारों सिक्‍के मिले हैं. उसके अभिलेखों में 41 से 46 तक (सम्भवतः शक सम्वत की) तिथियाँ हैं जो सम्भवतः 74 ई० में प्रारम्भ होने वाले शक सम्वत की सूचक है. इसलिए विद्वानों ने उसके राज्य काल को 119 ई० से 124 ई० तक निर्धारित किया है. नहपान ने अपने प्रारंभिक सिक्कों में स्वयं को क्षत्रप लिखा है लेकिन 46 (शक सम्वत के) के शिलालेख में वह स्वयं को महाक्षत्रप कहता है. नहपान के जमाता उषावदात का एक लेख नासिक की एक गुफा की दीवार पर खुदा है. इससे नहपान की राज्य सीमाओं की पर्याप्त जानकारी मिलती है. इसी के विवरण के आधार पर निश्चित रूप से कहा जाता है कि काठियावाड़, महाराष्ट्र और कोंकण अवश्य ही क्षत्रप नहपान के राज्य में शामिल थे. कुछ ऐतिहासिक उल्लेखों के आधार पर कहा जाता है, गुजरात तथा उज्जैन भी उसके राज्य में शामिल थे. उसने महाराष्ट्र के एक बड़े भूभाग फो सातवाहन राजाओं से छीना था. नहपान के समय भड़ौच एक प्रसिद्ध बन्दरगाह था. उज्जैन प्रतिष्ठान आदि से बहुत-सा सामान लाकर इकट्ठा किया जाता था. वहां से यह व्यापारिक सामान पश्चिमी देशों को निर्यात किया जाता था. नहपान के उत्तराधिकारियों के विषय में कुछ जानकारी नहीं मिलती है. सम्भवतः सातवाहन शासक गौतमीपुत्र शातकर्णी ने उनसे बहुत-सा प्रदेश छीन लिया था.

उज्जयिनी या उज्जैन में शक शासक

पश्चिम क्षत्रप का दूसरा केन्द्र उज्जैन था. यहां का पहला स्वतन्त्र शक शासक चष्टण था (कुछ इतिहासकार इस राजा के पिता चसमत्तिक को उज्जैन का प्रथम शासक मानते हैं.) चष्टण के राज्य में मालवा, गुजरात, कच्छ तथा उसके समीप के क्षेत्र शामिल थे. उज्जैन के क्षत्रपों में सबसे प्रसिद्ध रुद्रदामा (या रुद्रदामन) था. ऐसा प्रतीत होता है कि शकों की शक्ति उससे पूर्व क्षीण हो गयी (उसका पिता जयदामन था जिसके बारे में विशेष जानकारी नहीं मिलती) थी लेकिन उसी (रुद्रदामा) ने शकों का पुनरुद्धार किया. सम्भवतः उसी ने मालवा, सौराष्ट्र, कोंकण आदि प्रदेशों को सातवाहनों से जीता. रुद्रदामा ने अपने समकालीन शातकर्णी राजा को पराजित किया (सम्भवतः वह वाशिष्ठी पुत्र श्री शिव शातकर्णी था). बाद में दोनों में सन्धि हो गयी और रुद्रदामा ने अपनी पुत्री का विवाह शातकर्णी से कर दिया. रुद्रदामा की विजयों की विस्तृत जानकारी गिरनार के शिलालेख से प्राप्त होती है. उसके अनुसार, रुद्रदामा ने पूर्वी मालवा, पश्चिमी मालवा, विन्ध्य घाटी का प्रदेश, उत्तरी काठियावाड़, सौराष्ट्र, मारवाड़, कच्छ, सिन्धु, उत्तरी कोंकण आदि जीते थे. इसी शिलालेख से ज्ञात होता है कि उसने चन्द्रगुप्त मौर्य और अशोक द्वारा बनवाई सुदर्शन झील के टूटे बांध को निजी आय से मरम्मत करायी और प्रजा से इसके लिए कोई कर नहीं लिया. सुदर्शन झील बड़े लम्बे समय से सिंचाई के लिए प्रयोग की जाती रही थी और मौर्य काल जितनी पुरानी थी. वह जनता में बहुत लोकप्रिय शासक था. वह अपने राज कार्यों में मंत्रिपरिषद से परामर्श लेता था. वह स्वयं उच्च कोटि का विद्वान था. उसे राजनीति. संगीत, तर्कशास्त्र, व्याकरण, वित्त आदि के विषय में पर्याप्त ज्ञान प्राप्त था. कहा जाता है कि उसने प्रतिज्ञा ली कि वह युद्ध को छोड़कर किसी अन्य तरह से किसी की भी हत्या नहीं करेगा ओर जीवन भर उसने अपनी प्रतिज्ञा का पालन किया. इस केन्द्र का अन्तिम शासक रूद्रसिंह तृतीय था.

जो भी हो शकों को प्रारम्भ में भारतीय शासकों और जनगणों के किसी प्रभावकारी प्रतिरोध का सामना नहीं करना पड़ा. हम सुनते हैं कि लगभग 50 ई.पू. में उज्जैन के एक शासक ने शकों के विरुद्ध प्रभावशाकारी रूप से युद्ध किया और उन्हें अपने ही समय में बाहर खदेड़ दिया. यह राजा स्वयं को विक्रमादित्य कहता था. विक्रम संवत्‌ नाम का एक नया युग 58 ई.पू. में शकों पर उसकी विजय से आरम्भ हुआ. इस समय के बाद “विक्रमादित्य” एक अत्यन्त इच्छित उपाधि बन गयी. जिसने भी कोई महान कार्य किया उसने इस उपाधि को उसी तरह ग्रहण कर लिया जिस तरह प्राचीन रोम के सम्राटों ने अपनी वीरता, पराक्रम तथा शक्ति पर जोर देने के लिए ‘सीजर’ की उपाधि धारण कर ली थी. इस रिवाज के फलस्वरूप हम भारतीय इतिहास में चौदह विक्रमादित्य पाते हैं. यह उपाधि भारतीय राजाओं में बारहवीं शताब्दी ई. तक प्रिय रही, विशेषकर पश्चिमी भारत और पश्चिमी दक्कन में.

शकों का भारत को योगदान

कुछ विद्वानों के अनुसार, शक शासकों (Shak Vansh ka Itihas) ने अवन्ति पर अधिकार कर (78 ई. में) शक सम्वत चलाया जिसका प्रयोग आज भी किया जाता है. मथुरा में मिले अभिलेखों से मालूम होता है कि उन्होंने भारतीय संस्कृति और धर्म को अपना लिया. उनमें से कुछ बौद्ध, कुछ जैन तथा अधिकांश शैवमत के अनुयायी हो गये. इन्होंने नये प्रकार के सिक्के जारी किए. उनके अनेक सिक्कों पर वाण, चक्र, वज्र, सिंहध्वज तथा धर्मचक्र के चिन्ह प्राप्त होते हैं. नासिक के शकों ने वैदिक धर्म को अपनाया. उदाहरणार्थ राजा नहपान की लड़की दक्षमित्रा तथा उसका दामाद उषवदात दोनों ही वैदिक धर्म अनुयायी थे. रुद्रदामा ने निजी सम्पत्ति से सुदर्शन झील की मरम्मत कराकर भावी शासकों को प्रजा हितैषी कार्यों के लिए त्याग एवं तत्परता का निर्देश दिया. उसके द्वारा संस्कृत के प्रति प्रदर्शित प्रेम से लोगों को इस भाषा को अपनाने की प्रेरणा मिली क्योंकि वह विदेशी होते हुए भी भारतीय भाषाओं से प्रेम करता था. शकों ने भारतीय लोगों से वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित कर लोगों को जातीयता तथा साम्प्रदायिकता की संकीर्ण भावनाओं से ऊपर उठने का उदाहरण प्रस्तुत किया. वे धीरे-धीरे भारतीय शासन और समाज के अभिन्‍न अंग बन गये.

Ad:

Be the first to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published.


*


This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.