HIV Full Form (Human Immunodeficiency Virus)

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HIV Full Form

HIV Full Form in Hindi, HIV: Human Immunodeficiency Virus (ह्यूमन इम्मुनोडेफिशियेंसी वायरस)

HIV का फुल फॉर्म है “Human Immunodeficiency Virus (ह्यूमन इम्मुनोडेफिशियेंसी वायरस). यह एक लेंटिवायरस (रेट्रोवायरस परिवार का एक सदस्य) है, जो अक्वायर्ड इम्युनोडेफिशिएंसी सिंड्रोम (acquired immunodeficiency syndrome) (एड्स) (AIDS) का कारण बनता है. AIDS, HIV संक्रमण (HIV Full Form) से मनुष्यों में होने वाली एक अवस्था है, जिसमें प्रतिरक्षा तंत्र विफल होने लगता है और इसके परिणामस्वरूप ऐसे अवसरवादी संक्रमण हो जाते हैं, जिनसे मृत्यु का खतरा होता है।

एचआईवी (HIV) का संक्रमण रक्त के अंतरण, वीर्य, योनिक-द्रव, स्खलन-पूर्व द्रव या मां के दूध से होता है। इन शारीरिक द्रवों में, एचआईवी (HIV)  दो रूप में रह सकता है. पहला मुक्त जीवाणु कणों के रूप में और दूसरा प्रतिरक्षा कोशिकाओं के भीतर उपस्थित जीवाणु के रूप में.

एचआईवी (HIV) संचरण के प्रमुख कारण

एचआईवी (HIV)  के संचरण के चार मुख्य मार्ग असुरक्षित यौन-संबंध, संक्रमित सुई, मां का दूध और किसी संक्रमित मां से उसके बच्चे को जन्म के समय होने वाला संचरण (ऊर्ध्व संचरण) हैं। एचआईवी (HIV) की उपस्थिति का पता लगाने के लिये रक्त-उत्पादों की जांच करने के कारण रक्ताधान अथवा संक्रमित रक्त-उत्पादों के माध्यम से होने वाला संचरण विकसित विश्व में बड़े पैमाने पर कम हो गया है।

एचआईवी (HIV) या मानवीय प्रतिरक्षी अपूर्णता विषाणु एक विषाणु है जो शरीर की रोग-प्रतिरक्षा प्रणाली पर प्रहार करता है और संक्रमणों के प्रति उसकी प्रतिरोध क्षमता को धीरे-धीरे कम करता जाता है। यह लाइलाज बीमारी एड्स का प्रमुख कारण है। मुख्य रूप से यौण संबंध तथा रक्त के जरिए फैलने वाला यह विषाणु शरीर की श्वेत रक्त कणिकाओं को खा जाता है। इसमें उच्च आनुवंशिक परिवर्तनशीलता का गुण पाया जाता है जिसके कारण इसका उपचार खोजना बहुत कठिन है, क्योंकि यह अपना रूप बदलता रहता है.

एचआईवी (HIV)  एक महामारी

मनुष्यों में होने वाले एचआईवी (HIV) संक्रमण को विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) (डब्ल्यूएचओ)(WHO) द्वारा महामारी घोषित किया जा चुका है. 1981 में इसकी खोज से लेकर अबतक एड्स (AIDS) 3 करोड़ से ज्यादा लोगों की जान ले चुका है।

प्राथमिक रूप से एचआईवी (HIV) मानवीय प्रतिरोधक प्रणाली की आवश्यक कोशिकाओं, जैसे सहायक टी-कोशिकाएं (helper T cells) (विशिष्ट रूप से, सीडी4+ टी कोशिकाएं), मैक्रोफेज और डेंड्राइटिक कोशिका को संक्रमित करता है. एचआईवी (HIV) संक्रमण के परिणामस्वरूप सीडी4+ टी (CD4+ T) के स्तरों में कमी आने की तीन प्रमुख कारण हैं:

  • सबसे पहले या तो यह  संक्रमित कोशिकाओं को प्रत्यक्ष रूप से खत्म कर देता है.
  • या तो संक्रमित कोशिका में एपोप्टॉसिस की मात्रा बढ़ा देता है.
  • या संक्रमित कोशिका की पहचान करने वाले सीडी8 (CD8) साइटोटॉक्सिक लिम्फोसाइट द्वारा संक्रमित सीडी4+ टी कोशिकाओं (CD4+ T cells) को समाप्त कर देता है.

जब सीडी4+ टी (CD4+ T) कोशिकाओं की संख्या एक आवश्यक स्तर से नीचे गिर जाती है, तो शरीर की प्रतिरोधक क्षमता पूरी तरह से समाप्त हो जाती है और शरीर के अवसरवादी संक्रमणों से ग्रस्त होने की संभावना बढ़ने लगती है।

अगर एचआईवी-1 (HIV-1) के द्वारा संक्रमित मनुष्य का उपचार ना किया जाए तो अंततः यह एड्स (AIDS) में विकसित हो जाता है। इनमें से अधिकांश लोगों की मौत मौसमी संक्रमणों से या प्रतिरोध तंत्र की बढ़ती विफलता से जुड़ी असाध्यताओं के कारण होती है।

एचआईवी (HIV) का एड्स (AIDS) में विकसित होने की दर भिन्न-भिन्न होती है और इस पर जीवाण्विक, मेज़बान और वातावरणीय कारकों का प्रभाव पड़ता है; अधिकांश लोगों में एचआईवी (HIV) संक्रमण के 10 वर्षों के भीतर एड्स (AIDS) विकसित हो जाता है, कुछ लोगों में यह बहुत ही शीघ्र होता है और कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो बहुत अधिक लंबा समय लेता हैं. एंटी-रेट्रोवायरल के द्वारा उपचार किये जाने पर एचआईवी (HIV) संक्रमित लोगों के जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है। 2005 तक की जानकारी के अनुसार, निदान किये जा सकने योग्य एड्स (AIDS) के रूप में एचआईवी (HIV) का विकास हो जाने के बाद भी एंटीरेट्रोवायरल उपचार के बाद व्यक्ति का बीमारी के बाद का औसत जीवन 5 वर्ष बढाया जा सकता है। एंटीरेट्रोवायरल उपचार के बिना, एड्स (AIDS) से ग्रस्त किसी व्यक्ति की मृत्यु विशिष्ट रूप से एक वर्ष की भीतर ही हो जाती है।

एचआईवी (HIV) के प्रमुख प्रकार

एचआईवी (HIV)  के दो प्रमुख प्रकार हैं- एचआईवी -1 और एचआईवी 2।

एचआईवी -1 चिम्पांजी और पश्चिमी अफ्रीका में रहने वाले गोरिल्ला में पाए जानेवाले विषाणु हैं, जबकि एचआईवी -2 साँवले मंगबेयों में पाए जाने वाले विषाणु हैं. एचआईवी -1 को और समूहों में विभाजित किया जा सकता है। एचआईवी -1 एम ग्रुप विषाणु प्रबल होता है और एड्स के लिए जिम्मेदार होता है। आनुवंशिक अनुक्रम ब्यौरे के हिसाब से ग्रुप एम को कई रूपों में विभाजित किया जा सकता है। उपप्रकारों में से कुछ अधिक उग्र होते हैं या अलग दवाओं से प्रतिरोधी रहे हैं।

एचआईवी – 2 वायरस कम उग्र और एचआईवी -1 कम संक्रामक माना गया है, हालांकि एचआईवी 2 भी एड्स का कारण माना गया है।

एच.आई.वी. संक्रमण (HIV Full Form) को एड्स की स्थिति तक पहुंचने में 8 से 10 वर्ष या इससे भी अधिक समय लग सकता है। एच.आई.वी से ग्रस्त व्यक्ति अनेक वर्षों तक बिना किसी विशेष लक्षणों के रह सकते हैं।

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एड्स वर्तमान युग की सबसे बड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में से एक है यानी कि यह एक महामारी है। एड्स के संक्रमण के तीन मुख्य कारण हैं – असुरक्षित यौन संबंध, रक्त का आदान-प्रदान तथा माँ से शिशु में संक्रमण द्वारा। राष्ट्रीय उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण नियंत्रण कार्यक्रम और संयुक्त राष्ट्रसंघ उपार्जित प्रतिरक्षी अपूर्णता सहलक्षण दोनों ही यह मानते हैं कि भारत में 80 से 85 प्रतिशत संक्रमण असुरक्षित विषमलिंगी/विषमलैंगिक यौन संबंधों से फैल रहा है। माना जाता है कि सबसे पहले इस रोग का विषाणु: एच.आई.वी, अफ्रीका के खास प्राजाति की बंदर में पाया गया और वहीं से ये पूरी दुनिया में फैला। अभी तक इसे लाइलाज माना जाता है लेकिन दुनिया भर में इसका इलाज पर शोधकार्य चल रहे हैं। 1981 में एड्स की खोज से अब तक इससे लगभग 30 करोड़ लोग जान गंवा बैठे हैं।

एच.आई.वी और एड्स में अंतर (Difference between HIV and AIDS in Hindi)

एच.आई.वी (HIV Full Form) एक अतिसूक्षम रोग विषाणु हैं जिसकी वजह से एड्स हो सकता है। एड्स स्वयं में कोई रोग नहीं है बल्कि एक संलक्षण है। यह मनुष्य की अन्य रोगों से लड़ने की नैसर्गिक प्रतिरोधक क्षमता को घटा देता हैं। प्रतिरोधक क्षमता के क्रमशः क्षय होने से कोई भी अवसरवादी संक्रमण, यानि आम सर्दी जुकाम से ले कर फुफ्फुस प्रदाह, टीबी, क्षय रोग, कर्क रोग जैसे रोग तक सहजता से हो जाते हैं और उनका इलाज करना कठिन हो जाता हैं और मरीज़ की मृत्यु भी हो सकती है। यही कारण है की एड्स परीक्षण महत्वपूर्ण है। सिर्फ एड्स परीक्षण से ही निश्चित रूप से संक्रमण का पता लगाया जा सकता है। एड्स एक तरह का संक्रामक यानी की एक से दुसरे को और दुसरे से तीसरे को होने वाली एक गंभीर बीमारी है. एड्स का पूरा नाम ‘एक्वायर्ड इम्यूलनो डेफिसिएंशी सिंड्रोम’ (acquired immune deficiency syndrome) है और यह एक तरह के विषाणु जिसका नाम HIV (Human immunodeficiency virus) है, से फैलती है. अगर किसीको HIV है तो ये जरुरी नहीं की उसको एड्स भी है. HIV वायरस की वजह से एड्स होता है अगर समय रहते वायरस का इलाज़ कर दिया गया तो एड्स होने का खतरा कम हो जाता है.

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