GAGAN Full Form (GPS Aided GEO Augmented Navigation)

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GAGAN Full Form

GAGAN Full Form in Hindi, GAGAN: GPS Aided GEO Augmented Navigation (जीपीएस आधारित धरातलीय संवर्धित संवर्धित पथ प्रदर्शन प्रणाली)

GAGAN का फुल फॉर्म है: GPS Aided GEO Augmented Navigation जिसका हिंदी में अर्थ होता है “जीपीएस एडेड जियो संवर्धित नेविगेशन” या जीपीएस आधारित धरातलीय संवर्धित संवर्धित पथ प्रदर्शन प्रणाली.

GAGAN इसरो द्वारा विकसित एक नेविगेशन सिस्टम है जिसका उद्देश्य नागरिक विमानन प्रयोजन के लिए उपग्रह की सहायता से संचालित सटीक पथ प्रदर्शन सेवा प्रदान करना है जो कि एक सकुशल उड़ान हेतु अत्यावश्यक है. इसके अलावा इसका लक्ष्य भारतीय आकाश में बेहतर वायु यातायात प्रबंधन करना भी है ताकि होने वाली दुर्घटनाओं में कमी लाई जा सके. इस प्रणाली (GAGAN Full Form) को भारतीय उड्डयन प्राधिकरण के साथ मिलकर लागू किया है. यह पद्धिति धरातल पर स्थित केन्द्रों की एक प्रणाली का उपयोग जीपीएस मानक निर्धारण के लिए करती है ताकि संकेत अच्छी तरह से समझ आ सकें.

एक वृहद् अध्ययन और शोध के पश्चात धरातल पर अनेक केन्द्रों का एक जाल तैयार किया गया है जो जीपीएस उपग्रह के संकेतो को एकत्रित तथा आवर्धित कर सके. इस जानकारी के माध्यम से मुख्य नियंत्रण केंद्र किसी प्रकार की सांकेतिक गड़बड़ी को सुधारने हेतु सूचना जारी करता है. इस सूचना को विमान में समान जीपीएस आवृत्ति पर कार्यरत रिसीवर तक पहुचाया जाता है ताकि विमान चालाक तक अन्य विमानों, यातायात तथा दिशाओं की सहीं जानकारी पहुच सके.

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अब तक भारत में वायुयान भूस्थित रडार के सहारे ही उड़ान भरते थे जो सीधी रेखा में नहीं होते। GAGAN के सक्रिय होने के बाद वायुयान सीधी रेखा मार्ग में उड़ान भरेंगें। इससे ईंधन की भी बचत होगी। उन्हें मार्ग की अद्यतित सूचना तत्काल मिलती रहेगी। उतरते समय भी यह वायुयान को सटीक जगह उतरने का संकेत देगा। इससे उतरते समय वायुयान को स्वतः संकेत मिलेगा। यह कोहरे और बारिश में भी जहाजों को उतरने में मदद करेगा। जिन रनवे पर इंस्ट्रूमेंट लैंडिंग और कैट-1 सिस्टम लगे हैं, उनकी कोई खास जरूरत नहीं रह जाएगी।

भारत में GAGAN की शुरुवात

भारत में GAGAN की शुरुवात 10 अगस्त 2010 को हुयी. केंद्रीय नागरिक विमानन मंत्री पी. अशोक गजपति राजू ने विमानों की लैंडिंग और टेकआफ को सटीक और आसान बनाने वाली स्वदेशी ‘गगन’ प्रणाली (GAGAN Full Form) का औपचारिक उद्घाटन किया। इसरो तथा एयरपोर्ट अथॉरिटी द्वारा संयुक्त रूप से विकसित यह प्रणाली जमीनी उपकरणों की मदद के बिना विमान को हवाई पट्टी पर सकुशल उतारने में मदद करती है। भविष्य में ट्रेनों, बसों, और समुद्री जहाजों के सुरक्षित संचालन के अलावा कृषि, रक्षा व सुरक्षा तथा आपदा प्रबंधन के क्षेत्रों में भी घटनास्थल के सटीक आकलन में भी यह प्रणाली मददगार साबित होगी।

सिर्फ कुछ चुनिन्दा देशों के पास थी ये प्रणाली

GAGAN नामक यह प्रणाली पहले सिर्फ अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों के पास थी. यह प्रणाली विमानों को जमीन से ऊपर ले जाने या ऊपर से नीचे लाने में ऊंचाई का सटीक आकलन करने में पायलट के लिए बेहद मददगार है। GAGAN जीपीएस सेवा का विस्तार पूरे देश में और बंगाल की खाड़ी, दक्षिण-पूर्व एशिया और पश्चिम एशिया से लेकर अफ्रीका तक करेगा। इसके लॉन्च के साथ ही भारत उन देशों (अमेरिका, यूरोपीय संघ व जापान) के क्लब में शामिल हो गया है, जिनके पास इसी तरह की प्रणाली है।

GAGAN से विमान रूटों की दूरियां घटेंगी

केंद्रीय मंत्री राजू के मुताबिक नागरिक उड्डयन मंत्रालय राज्यों और अन्य मंत्रालयों को गगन प्रणाली का इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहित करेगा। इसका इस्तेमाल केवल सैन्य और असैन्य एविएशन तक सीमित नहीं है बल्कि रोड ट्रांसपोर्ट और कृषि समेत अन्य क्षेत्रों में भी होगा। गगन को भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) ने संयुक्त रूप से 774 करोड़ रुपए की लागत से विकसित किया है। यह एविएशन सेक्टर को बेरोकटोक नेविगेशन उपलब्ध कराएगा। सिविल एविएशन सेक्रेटरी आर एन चौबे ने कहा कि गगन आने के बाद देश के 50 चालू हवाईअड्डों को तत्काल लाभ होगा। वहीं सभी दक्षेस देश इस प्रणाली का इस्तेमाल कर सकते हैं।

एयर ट्रैफिक कंट्रोलरों पर कम होगा दबाव

GAGAN के आने के बाद विमानों से लगातार संपर्क बनाए रखने के लिए टावर सिस्टम के भरोसे नहीं रहना पड़ेगा। चूंकि विमान से संबंधित सारी जानकारी उपग्रह के जरिए उपलब्ध होगी, उससे न सिर्फ विमान पायलट बल्कि एयर ट्रैफिक कंट्रोलरों पर भी काम का दबाव कम होगा। साधारण भाषा में कहा जा सकता है कि पहले विमानों के साथ एयर ट्रैफिक कंट्रोल टावरों की मदद से संपर्क में रहते थे लेकिन अब इस नए सिस्टम से उपग्रह के जरिए विमानों के बारे में सटीक जानकारी मिलती रहेगी। यह भी पता चलेगा कि विमान की गति और देशांतर क्या है और वह कितनी ऊंचाई पर है।

वैश्विक स्तर पर 2013 में ही मिल गई थी मान्यता

विमान संचालन के लिए GAGAN को 30 सितंबर 2013 को ही वैश्विक रूप से मान्यता मिल गई थी। परंतु इसरो के जीसैट-8 तथा जीसैट-10 उपग्रहों से इसके सिग्नल 14 फरवरी, 2014 से मिलने प्रारंभ हुए थे। इन संकेतों को जब जीपीएस से प्राप्त संकेतों के साथ मिलाकर उपयोग में लाया जाता है तो विमान का संचालन ज्यादा आसान और सटीक हो जाता है। इसके उपयोग से अब उड़ानों के सीधे रूट चुनना संभव हो गया है। इससे दूरियां घटने के साथ ईंधन की कम खपत होने से प्रदूषण में भी कमी आने लगी है। इससे इससे हवाई सुरक्षा में भी सुधार हो रहा है।

रेल, सड़क व जल यातायात के लिए भी उपयोगी

विमानन मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक GAGAN का उपयोग (GAGAN Full Form) रेल, सड़क व जल यातायात में भी किया जा सकता है। इसके लिए ट्रेनों, बसों या जलपोतों में इसके रिसीवर लगाने होंगे। इसके बाद इन सभी प्रकार के वाहनों का सुरक्षित संचालन संभव होगा और टक्कर की संभावनाएं खत्म हो जाएंगी। ट्रेनों के मामले में यह प्रणाली एंटी कोलीजन डिवाइस (एसीडी) या ट्रेन प्रोटेक्शन एंड वार्निंग सिस्टम (टीपीडब्ल्यूएस) अथवा टीकैस (ट्रेन कोलीजन अवाइडेंस सिस्टम) में उपयोग में आ सकती है। अभी जीपीएस पर निर्भरता के कारण कई जगहों पर ये प्रणालियां सटीक ढंग से काम नहीं करती हैं। GAGAN के इस्तेमाल से इस तरह की सारी समस्याएं दूर हो जाएँगी.

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