Durgapuja in Hindi (दुर्गा पूजा का इतिहास और दुर्गा पूजा के त्यौहार का महत्व)

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Durgapuja in Hindi

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दुर्गा पूजा (Durgapuja in Hindi) हिन्दुओं का एक पवित्र पर्व है, जिसमें हिन्दू देवी दुर्गा (Maa Durga) की पूजा करते हैं। दुर्गापूजा का त्यौहार पूरे 9 दिन का होता है जिसमे 6 दिनों को महालय, षष्ठी, महासप्तमी, महाअष्टमी, महानवमी और विजयदशमी (Vijayadashami) के रूप में मनाया जाता है।

दुर्गा पूजा के प्रमुख 6 दिनों की पूजा का विवरण

दिनपूजा और पर्व
21 अक्टूबर, दिन 1 –पंचमी, कार्तिक, बिल्व निमन्त्रन, कल्पम्बर, अकाल बोधन, अमंत्रन और आदिवास
22 अक्टूबर, दिन 2 –षष्ठी, कार्तिक, नवपत्रिका पूजा, कोलाबौ पूजा
23 अक्टूबर, दिन 3 –सप्तमी, कार्तिक
24 अक्टूबर, दिन 4 –अष्टमी, कार्तिक, दुर्गा अष्टमी, कुमारी पूजा, संधि पूजा, महा नवमी
25 अक्टूबर, दिन 5 –नबामी, कार्तिक, बंगाल महा नवमी, दुर्गा बालिदान, नवमी होमा, विजयदशमी
26 अक्टूबर, दिन 6 –दशमी, कार्तिक, दुर्गा विसर्जन, बंगाल विजयदशमी, सिंदूर उत्सव

दुर्गा पूजा (Durgas Puja) को दुर्गोत्सव या शरदोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। यह पूरे दक्षिण एशिया में मनाया जाने वाला सबसे बड़े वार्षिक हिन्दू पर्वों में से एक है।

दुर्गा पूजा बंगालियों (Durga Puja in Bengal) का सबसे बड़ा त्योहार होता है जिसे वे दुर्गोपुजो (Durgo Pujo) नाम से मनाते हैं। चार दिनों तक चलने वाले इस त्योहार की तैयारियां वे लोग महीने भर पहले से शुरू कर देते हैं। इन चार दिनों के कार्यक्रम में पंडाल से लेकर कल्चरल एक्टविटी, गायन, नृत्य, पेटिंग जैसी प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। इस अवसर के लिए लोग नए कपड़े भी खरीदते हैं। सदियों से बंगाल में दुर्गा पूजा का बहुत महत्व रहा है।

दुर्गा पूजा (Durgapuja in Hindi) को मनाये जाने की तिथियाँ पारम्परिक हिन्दू पंचांग के अनुसार आती हैं तथा इस पर्व से सम्बंधित पखवाड़े को देवी पक्ष,  या देवी पखवाड़ा के नाम से जाना जाता है।

इस साल यानि सन 2020 की दुर्गा पूजा का सम्पूर्ण कैलेंडर

तारीख और दिन/वार पूजा और पर्व
17 अक्टूबर 2020 (शनिवार) –प्रतिपदा, नवरात्रि दिन 1, मां शैलपुत्री पूजा, घटस्थापना
18 अक्टूबर 2020 (रविवार) –द्वितीया, नवरात्रि दिन 2, मां ब्रह्मचारिणी पूजा
19 अक्टूबर 2020 (सोमवार) –तृतीया, नवरात्रि दिन 3, मां चंद्रघंटा पूजा
20 अक्टूबर 2020 (मंगलवार) –चतुर्थी, नवरात्रि दिन 4, मां कुष्मांडा पूजा
21 अक्टूबर 2020 (बुधवार) –पंचमी, नवरात्रि दिन 5, मां स्कंदमाता पूजा
22 अक्टूबर 2020 (गुरुवार) –षष्ठी, नवरात्रि दिन 6, मां कात्यायनी पूजा
23 अक्टूबर 2020 (शुक्रवार) –सप्तमी, नवरात्रि दिन 7, मां कालरात्रि पूजा
24 अक्टूबर 2020 (शनिवार) –अष्टमी, नवरात्रि दिन 8, मां महागौरी, दुर्गा महा नवमी पूजा, दुर्गा महा अष्टमी पूजा
25 अक्टूबर 2020 (रविवार) –नवमी, नवरात्रि दिन 9, मां सिद्धिदात्री, नवरात्रि पारणा, विजय दशमी
26 अक्टूबर 2020 (सोमवार) –दशमी, नवरात्रि दिन 10, दुर्गा विसर्जन

दुर्गा पूजा का इतिहास (The History and Origin of the Durga Puja Festival)

भारत मे दुर्गा पूजा का (Durgapuja in Hindi) त्यौहार सदियों पुराना है। 17वीं और 18वीं सदी में जमीदार और अमीर लोग बहुत बड़े स्तर पर पूजा का आयोजन करते थे, जहां सब लोग एक छत के नीचे देवी दुर्गा का पूजन करने के लिए इकट्ठा हुआ करते थे। उदाहरण के लिए कोलकाता में आचला पूजा काफी प्रसिद्ध है, जिसकी शुरुआत 1610 में जमींदार लक्ष्मीकांत मजूमदार ने कोलकाता के शोभा बाजार छोटो राजबरी के 33 राजा नबकृष्णा रोड से की थी। जो मुख्य रूप से 1757 में शुरू हुआ। इसके बाद से ही बंगाल के बाहर भी पंडालों में देवी दुर्गा की प्रतिमा की स्थापना कर भव्य तरीके से उनकी पूजा का आयोजन किया जाने लगा।

दुर्गा पूजा का पौराणिक महत्व (Significance of Durga Puja in Hindi)

भारत में दुर्गा पूजा केवल एक सांस्कृतिक उत्सव ही नहीं है बल्कि इसका एक पौराणिक महत्व भी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, दुर्गा पूजा (Durga Puja) का त्यौहार देवी दुर्गा (Maa Durga) और राक्षस महिषासुर (Mahishasur) के बीच हुए युद्ध के पश्चात माँ दुर्गा के विजयस्वरुप मनाया जाता है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। राक्षस महिषासुर ने कई वर्षो तक तपस्या और प्रार्थना कर भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान प्राप्त किया था। महिषासुर की भक्ति से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे कई वरदान दिए लेकिन भगवान ब्रह्मा ने महिषासुर को अमर होने के वरदान की जगह यह वरदान दिया कि उसकी मृत्यु एक स्त्री के हाथों होगी। ब्रह्मा जी से यह वरदान पाकर महिषासुर काफी प्रसन्न हो गया और सोचने लगा कि किसी भी स्त्री में इतनी ताकत नहीं है जो उससे युद्ध कर सके और उसे मार सके।

इसी विश्वास के साथ महिषासुर ने अपनी असुर सेना के साथ देवों के विरूद्ध युद्ध छेड़ दिया जिसमें देवों की हार हो गई और सभी देवगण मदद के लिए त्रिदेव यानि भगवान शिव, ब्रह्मा और विष्णु के पास पहुंचें। तीनों देवताओं ने अपनी शक्ति से देवी दुर्गा को जन्म दिया जिसके बाद देवी दुर्गा ने राक्षस महिषासुर से युद्ध कर उसका वध कर दिया। ।

इस प्रकार राक्षस महिषासुर एक स्त्री के हाथों मारा गया तथा बुराई पर अच्छाई की जीत हुई। इसके अलावा इस त्यौहार को किसानों के नये फसल के आगमन से भी जोड़कर देखा जाता है।

कहाँ-कहाँ मनाया जाता है दुर्गा पूजा

दुर्गा पूजा भारतीय राज्यों असम, बिहार, झारखण्ड, मणिपुर, ओडिशा, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में व्यापक रूप से मनाया जाता है जहाँ इस दौरान पांच-दिन की वार्षिक छुट्टी रहती है। बंगाली और आसामी हिन्दुओं के बाहुल्य वाले क्षेत्रों पश्चिम बंगाल, असम, त्रिपुरा में यह वर्ष का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है। यह न केवल सबसे बड़ा हिन्दू उत्सव है बल्कि यह बंगाली हिन्दू समाज में सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से सबसे महत्त्वपूर्ण उत्सव भी है। पूर्वी भारत के अतिरिक्त दुर्गा पूजा का उत्सव पश्चिमी भारत में भी दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, कश्मीर, आन्ध्र प्रदेश, कर्नाटक और केरल में भी मनाया जाता है। दुर्गा पूजा का उत्सव 91% हिन्दू आबादी वाले नेपाल और 8% हिन्दू आबादी वाले बांग्लादेश में भी बड़े त्यौंहार के रूप में मनाया जाता है। वर्तमान में विभिन्न प्रवासी आसामी और बंगाली सांस्कृतिक संगठन, संयुक्त राज्य अमेरीका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, फ्रांस, नीदरलैण्ड, सिंगापुर और कुवैत सहित विभिन्न देशों में दुर्गा पूजा का आयोजन करते हैं। वर्ष 2006 में ब्रिटिश संग्रहालय में विश्वाल दुर्गापूजा का उत्सव आयोजित किया गया।

दुर्गा पूजा की शुरुवात

दुर्गा पूजा की ख्याति ब्रिटिश राज में बंगाल और भूतपूर्व असम में धीरे-धीरे बढ़ी। हिन्दू सुधारकों ने दुर्गा को भारत में पहचान दिलाई और इसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलनों का प्रतीक भी बनाया। बंगाल, असम, ओडिशा में दुर्गा पूजा को अकालबोधन (“दुर्गा का असामयिक जागरण”), शरदियो पुजो (“शरत्कालीन पूजा”), शरोदोत्सब (“पतझड़ का उत्सव”), महा पूजो (“महा पूजा”), मायेर पुजो (“माँ की पूजा”) या केवल पूजा अथवा पुजो भी कहा जाता है।

पूर्वी बंगाल (बांग्लादेश) में दुर्गा पूजा को भगवती पूजा के रूप में भी मनाया जाता है। इसे पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, ओडिशा, दिल्ली और मध्य प्रदेश में दुर्गा पूजा भी कहा जाता है। दिल्ली-एनसीआर में पिछले कुछ वर्षों में, 250 से अधिक अलग-अलग पंडालों में दुर्गा पूजो आयोजित की जाती है।

दुर्गा पूजा को गुजरात, उत्तर प्रदेश, पंजाब, केरल और महाराष्ट्र में नवरात्रि के रूप में कुल्लू घाटी, हिमाचल प्रदेश में कुल्लू दशहरा,  मैसूर, कर्नाटक में मैसूर दशहरा,  तमिलनाडु में बोमाई गोलू और आन्ध्र प्रदेश में बोमाला कोलुवू के रूप में मनाया जाता है।

पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा (Durga Puja in Bengal)

यूँ तो दुर्गा पूजा (Durgapuja in Hindi) का उत्सव भारत के विभिन्न भागों और प्रांतों में धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन बंगाल में की जाने वाली दुर्गा पूजा सबसे ज्यादा प्रसिद्द है। दुर्गा पूजा नेपाल और भूटान में भी स्थानीय परम्पराओं और विविधताओं के अनुसार मनाई जाती है। दुर्गा पूजा बंगाली पंचांग के छठें माह अश्विन में बढ़ते चन्द्रमा की छठीं तिथि से मनाया जाता है। तथापि कभी-कभी, सौर माह में चन्द्र चक्र के आपेक्षिक परिवर्तन के कारण इसे कार्तिक माह में भी मनाया जाता है। ग्रेगोरियन कैलेण्डर में इससे सम्बंधित तिथियाँ सितम्बर और अक्टूबर माह में आती हैं। साल 2018 मे देश की सबसे महंगी दुर्गा पूजा कोलकाता में हुई, जँहा पद्मावत की थीम पर बना 15 करोड़ का पंडाल लगाया गया था।

इसे भी पढ़ें: नवरात्रि की 9 देवियाँ, उनकी पूजा विधि और उनके प्रिय रंग

पौराणिक कथा के अनुसार, रामायण में राम ने रावण से युद्ध के दौरान देवी दुर्गा का आह्वान किया था। यद्यपि उन्हें पारम्परिक रूप से वसन्त के समय पूजा जाता था। युद्ध की आकस्मिकता के कारण, राम ने देवी दुर्गा का शीतकाल में अकाल आह्वान किया।

नवदुर्गा, नवरात्रि और दुर्गापूजा (Durgapuja in Hindi) नाम चाहे जो पुकारें लेकिन इन 9 दिनों में जो चहल-पहल और रौनक देश भर में दिखाई देती है वह माहौल और मन को भक्तिमय बना देती है। इन सबमें सबसे ज्यादा आकर्षक और खूबसूरत परंपरा जहां नजर आती है वह है पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा। आंखों के सामने नजर आने लगते हैं भव्य पंडाल, पूजा की पवित्रता, रंगों की छटा, तेजस्वी चेहरों वाली देवियां, सिंदूर खेला, धुनुची नृत्य और भी बहुत कुछ ऐसा दिव्य और अलौकिक जो शब्दों में न बांधा जा सके।

पंडालों की भव्य और विशेष छटा कोलकाता और समूचे पश्चिम बंगाल को नवरात्रि के दौरान खास बनाते हैं। इस त्योहार के दौरान यहां का पूरा माहौल शक्ति की देवी दुर्गा के रंग में रंग जाता है। बंगाली हिंदुओं के लिए दुर्गा पूजा से बड़ा कोई उत्सव नहीं है।

दुर्गा पंडाल की विशेषता (Durga Pandal ki Visheshta)

देवी की प्रतिमा

कोलकाता में नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के महिषासुर मर्दिनी स्वरुप को पूजा जाता है। दुर्गा पूजा पंडालों में माँ दुर्गा की प्रतिमा महिसासुर का वध करते हुए बनाई जाती है। दुर्गा के साथ अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमाएं भी बनाई जाती हैं। इस पूरी प्रस्तुति को चाला कहा जाता है। देवी त्रिशूल को पकड़े हुए होती हैं और उनके चरणों में महिषासुर नाम का असुर होता है।

देवी के पीछे उनका वाहन शेर भी होता है। इसके साथ ही उनके दाईं ओर सरस्वती और कार्तिका होती हैं तथा बाईं ओर लक्ष्मी और गणेश होते हैं। इसके साथ ही छाल पर शिव की प्रतिमा या तस्वीर भी होती है।

चोखूदान

कोलकाता में दुर्गा पूजा (Durgapuja in Hindi) के लिए चली आ रही परंपराओं में चोखूदान सबसे पुरानी परंपरा है। ‘चोखूदान’ के दौरान दुर्गा की आंखों को चढ़ावा दिया जाता है। ‘चाला’ बनाने में 3 से 4 महीने का समय लगता है। इसमें दुर्गा की आंखों को अंत में बनाया जाता है।

अष्टमी का महत्व

कोलकाता में अष्टमी के दिन अष्टमी पुष्पांजलि का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग दुर्गा को फूल अर्पित करते हैं। इसे मां दुर्गा को पुष्पांजलि अर्पित करना कहा जाता है। बंगाली चाहे किसी भी कोने में रहे, पर अष्टमी के दिन सुबह-सुबह उठ कर माँ दुर्गा को फूल जरूर अर्पित करते हैं।

दो पूजा

कोलकाता में दुर्गा का त्योहार केवल पंडालों तक ही सीमित नहीं है। यहां लोग दो तरह की दुर्गा पूजा करते हैं। दो अलग-अलग दुर्गा पूजा से अर्थ है एक जो बहुत बड़े स्तर पर दुर्गा पूजा (Durgapuja in Hindi) मनाई जाती है, जिसे पारा कहा जाता है और दूसरा बारिर जो घर में मनाई जाती है। पारा का आयोजन पंडालों और बड़े-बड़े सामुदायिक केंद्रों में किया जाता है। वहीं दूसरा बारिर का आयोजन कोलकाता के उत्तर और दक्षिण के क्षेत्रों में किया जाता है।

कुमारी पूजा

कोलकाता में संपूर्ण पूजा के दौरान देवी दुर्गा की पूजा विभिन्न रूपों में की जाती है इन रूपों में सबसे प्रसिद्ध रूप है- कुमारी। इस दौरान देवी के सामने कुमारी की पूजा की जाती है। यह देवी की पूजा का सबसे शुद्ध और पवित्र रूप माना जाता है। देवी के इस रूप की पूजा के लिए 1 से 16 वर्ष की लड़कियों का चयन किया जाता है और उनकी पूजा आरती की जाती है।

संध्या आरती

संध्या आरती का इस दौरान खास महत्व है। कोलकाता में संध्या आरती की रौनक इतनी चमकदार और खूबसूरत होती है कि लोग इसे देखने दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं। बंगाली पारंपरिक परिधानों में सजे-धजे लोग इस पूजा की भव्यता और सुंदरता और बढ़ा देते हैं। चारों ओर उत्सव का माहौल समां बांध देता है।

संध्या आरती नौ दिनों तक चलने वाले त्योहार के दौरान रोज शाम को की जाती है। संगीत, शंख, ढोल, नगाड़ों, घंटियों और नाच-गाने के बीच संध्या आरती की रस्म पूरी की जाती है।

सिंदूर खेला

दशमी के दिन पूजा के आखिरी दिन महिलाएं सिंदूर खेला खेलती हैं। इसमें वह सिंदूर से एक दूसरे को रंग लगाती हैं। और इसी के साथ इस पूरे उत्सव का अंत हो जाता हैं।

धुनुची नृत्य

धुनुची नृत्य असल में शक्ति नृत्य है। बंगाल पूजा परंपरा में यह नृत्य मां भवानी की शक्ति और ऊर्जा बढ़ाने के लिए किया जाता है। धुनुची में नारियल की जटा व रेशे (कोकोनट कॉयर) और हवन सामग्री (धुनी) रखी जाता है। उसी से मां की आरती की जाती है। धुनुची नृत्य सप्तमी से शुरू होता है और अष्टमी और नवमी तक चलता है।

विजय दशमी

नवरात्रि त्यौहार का आखिरी दिन दशमी होता है। इस दिन बंगाल की सड़कों में हर तरफ केवल भीड़ ही भीड़ दिखती है इस दिन यहां दुर्गा की मूर्ति का विसर्जन किया जाता है, और इस तरह दुर्गा अपने परिवार के पास वापस लौट जाती हैं। इस दिन पूजा करने वाले सभी लोग एक दूसरे के घर जाते हैं। शुभकामनाएं और मिठाई देते हैं।

बंगाल का सच्चा और पवित्र सौंदर्य देखना है तो इन 9 दिनों में कोलकाता अवश्य जाना चाहिए। जैसे गुजरात में गरबा की चमक-दमक होती है वैसे ही पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा की चहल-पहल देखते ही बनती है। Durgapuja in Hindi

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