Delhi RedFort in Hindi (दिल्ली का लाल किला)

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Delhi Redfort, लाल किला दिल्ली का एक ऐतिहासिक किला है। यह लगभग 200 सालों तक मुगल सल्तनत का मुख्य आवास रहा है। सन 1638 में जब शाहजहाँ ने आगरा से दिल्ली अपनी राजधानी स्थानांतरित की तब उसने शाहजहानाबाद नामक दिल्ली के सातवें शहर की स्थापना की। यह शहर चारो तरफ से पत्थर की चाहरदीवारी से घिरा हुआ था जिसमे 14 गेट थे। इसमें से कुछ गेट थे: मोरी गेट, लाहौरी गेट, अजमेरी गेट, तुर्कमान गेट, कश्मीरी गेट, दिल्ली गेट इत्यादि। इनमे से कुछ गेट अब ध्वस्त हो चुके हैं।

लाल किले का निर्माण

लाल किला (Delhi Redfort) शहर के उत्तर में यमुना नदी के किनारे और सलीमगढ़ के दक्षिण में स्थित है। इस किले को “लाल किला”, इसकी दीवारों के लाल-लाल रंग के कारण कहा जाता है। सलीमगढ़ किले की स्थापना इस्लाम शाह सूरी ने सन 1546 में कराई  थी। लाल किले को पांचवे मुगल बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया था।  इसका निर्माण कार्य 12 मई सन 1639 से शुरू हुआ जो 6 अप्रैल 1648 तक चला। इसे बनने में कुल 8 साल 10 महीने और 25 दिन लगे ।

लाल किले का इतिहास (History of Red fort in Hindi)

लाल किला (Delhi Redfort) भी ताजमहल और आगरे के क़िले की भांति ही यमुना नदी के किनारे पर स्थित है। हालांकि इतिहास की किताबों में यही बताया और पढाया जाता है कि लाल किले को पांचवे मुगल बादशाह शाहजहाँ ने बनवाया था। इसका निर्माण कार्य 12 मई सन 1639 से शुरू हुआ जो 6 अप्रैल 1648 तक चला। इसे बनने में कुल 8 साल 10 महीने और 25 दिन लगे।

लेकिन जन श्रुतियों के अनुसार लालकिला, लालकोट नामक एक किले पर पुन:निर्मित एक किला है। लालकोट राजपूत राजा पृथ्वीराज चौहान की बारहवीं सदी के अन्तिम दौर में राजधानी थी। यही वह किला था और इस किले के चारो तरफ खाई थी। यमुना नदी का जल इस किले को घेरकर बनायीं गयी खाई को भरता था। इसके पूर्वोत्तरी ओर की दीवार एक पुराने किले से लगी थी, जिसे सलीमगढ़ का किला भी कहते हैं। सलीमगढ़ का किला इस्लाम शाह सूरी ने 1546 में बनवाया था। जनश्रुतियों के अनुसार, लालकोट का एक पुरातन किला एवं नगरी थी, जिसे शाहजहाँ ने कब्जा़ करके यह लाल किला बनवाया था। लेकिन इस बात का कोई साक्ष्य प्राप्त नहीं हुआ है।

लाल किले का वास्तुशिल्प (Red fort architecture in Hindi)

लाल किले (Delhi Redfort) की रूप-रेखा उस समय के महान वास्तुकार उस्ताद अहमद लाहौरी ने तैयार की थी। शाहजहाँ ने इसे अपने महल के रूप में बनवाया था। पूरी तरह से लाल पत्थरों से बने होने के कारण इसका नाम लाल किला पड़ा। लाल किला मुगलकालीन रचनात्मकता का उत्कृष्ट उदाहरण है। मुस्लिम परंपराओं के अनुसार ही इस किले का निर्माण किया गया था। इसमें पारसी वास्तुकला का भी बेजोड़ संगम देखने को मिलता है। इसकी अद्भुत वास्तुकला का प्रभाव बाद में दिल्ली, राजस्थान, पंजाब, कश्मीर, ब्रज और रोहिलखंड में बनी इमारतों में भी दिखता है।

लाल किले के अन्दर बनी प्रमुख इमारतें (Buildings inside Red fort in Hindi)

लाल किले (Delhi Redfort) के अंदर मुमताज महल, रंग महल, खास महल, दीवान-ए-आम, दीवान-ए-खास, हमाम, शाह बुर्ज आदि प्रमुख आकर्षण के केंद्र हैं। मुगल सल्तनत का प्रसिद्द तख्ते-ताउस भी इसके आकर्षण का एक नमूना था यद्यपि उसमे जड़ा कोहिनूर अब भारत के पास नहीं है।

लालकिला (Delhi Redfort)  दिल्ली की एक महत्वपूर्ण इमारत समूह है। भारतीय इतिहास एवं उसकी कलाओं को अपने में समेटे होने के कारण इसका ऐतिहासिक महत्व है। इसका महत्व समय की सीमाओं से बढ़कर है। यह वास्तुकला सम्बंधी प्रतिभा एवं शक्ति का प्रतीक है। इसकी दीवारें कशानदार तरीके से तराशी गईं हैं। ये दीवारें दो मुख्य द्वारों पर खुली हैं ― दिल्ली दरवाज़ा एवं लाहौर दरवाज़ा। लाहौर दरवाज़े इसका मुख्य प्रवेशद्वार है। इसके अन्दर एक लम्बा बाजार है, चट्टा चौक, जिसकी दीवारें दुकानों से कतारित हैं। इसके बाद एक बडा़ खुला स्थान है, जहाँ यह लम्बी उत्तर-दक्षिण सड़क को काटती है। यही सड़क पहले किले को सैनिक एवं नागरिक महलों के भागों में बांटती थी। इस सड़क का दक्षिणी छोर दिल्ली गेट पर है।

लाल किले के अन्दर बनी प्रमुख इमारतें निम्नलिखित हैं –

नक्करख़ाना (Nakkarkhana)

लाहौरी गेट से चट्टा चौक तक आने वाली सड़क से लगे खुले मैदान के पूर्वी ओर नक्कारखाना बना है। यह संगीतज्ञों हेतु बने महल का मुख्य द्वार है।

दीवान-ए-आम (Deewan-e-aam)

इस गेट के पार एक और खुला मैदान है, जो कि मूलतः दीवाने-ए-आम का प्रांगण हुआ करता था। यह जनसाधारण हेतु बना वृहत प्रांगण था। एक अलंकृत सिंहासन का छज्जा दीवान-ए-आमकी पूर्वी दीवार के बीचों बीच बादशाह के लिये बना था जो सुलेमान के राज सिंहासन की नकल था।

नहर-ए-बहिश्त (Naher-e-Bahisht)

राजगद्दी के पीछे की ओर शाही निजी कक्ष स्थापित हैं। इस क्षेत्र में, पूर्वी छोर पर ऊँचे चबूतरों पर बने गुम्बददार इमारतों की कतार है, जिनसे यमुना नदी का किनारा दिखाई पड़ता है। ये मण्डप एक छोटी नहर से जुडे़ हैं, जिसे नहर-ए-बहिश्त कहते हैं, जो सभी कक्षों के मध्य से जाती है। किले के पूर्वोत्तर छोर पर बने शाह बुर्ज पर यमुना से पानी चढा़या जाता है, जहाँ से इस नहर को जल आपूर्ति होती है। इस किले का परिरूप कुरान में वर्णित स्वर्ग या जन्नत के अनुसार बना है। यहाँ लिखी एक आयत कहती है,

“यदि पृथ्वी पर कहीं जन्नत है, तो वो यहीं है, यहीं है, यहीं है।”

महल की योजना मूलरूप से इस्लामी रूप में है, परंतु प्रत्येक मण्डप अपने वास्तु घटकों में हिन्दू वास्तुकला को प्रकट करता है। लालकिले का प्रासाद, शाहजहानी शैली का उत्कृष्ट नमूना प्रस्तुत करता है।

ज़नाना (Janana)

महल के दो दक्षिणवर्ती प्रासाद महिलाओं हेतु बने हैं, जिन्हें जनाना कहते हैं: मुमताज महल, जो अब संग्रहालय बना हुआ है, एवं रंग महल, जिसमें सुवर्ण मण्डित नक्काशीकृत छतें एवं संगमर्मर सरोवर बने हैं, जिसमें नहर-ए-बहिश्त से जल आता है।

खास महल (Khas Mahal)

दक्षिण से तीसरा मण्डप है खास महल। इसमें शाही कक्ष बने हैं। इनमें राजसी शयन-कक्ष, प्रार्थना-कक्ष, एक बरामदा और मुसम्मन बुर्ज बने हैं। इस बुर्ज से बादशाह जनता को दर्शन देते थे।

दीवान-ए-खास, राजसी निजी सभा कक्ष (Deewane-e-Khas)

अगला मण्डप है दीवान-ए-खास, जो राजा का मुक्तहस्त से सुसज्जित निजी सभा कक्ष था। यह सचिवीय एवं मंत्रीमण्डल तथा सभासदों से बैठकों के काम आता था। इस मण्डप में पीट्रा ड्यूरा से पुष्पीय आकृति से मण्डित स्तंभ बने हैं। इनमें सुवर्ण पर्त भी मढी है, तथा बहुमूल्य रत्न जडे़ हैं। इसकी मूल छत को रोगन की गई काष्ठ निर्मित छत से बदल दिया गया है। इसमें अब रजत पर सुवर्ण मण्डन किया गया है। अगला मण्डप है, हमाम, जो को राजसी स्नानागार था, एवं तुर्की शैली में बना है। इसमें संगमर्मर में मुगल अलंकरण एवं रंगीन पाषाण भी जडे़ हैं।

मोती मस्जिद (Moti Masjid)

हमाम के पश्चिम में मोती मस्जिद बनी है। यह सन् 1659 में, बाद में बनाई गई थी, जो औरंगजे़ब की निजी मस्जिद थी। यह एक छोटी तीन गुम्बद वाली, तराशे हुए श्वेत संगमर्मर से निर्मित है। इसका मुख्य फलक तीन मेहराबों से युक्त है, एवं आंगन में उतरता है।जहा फुलो का मेला है।

हयात बख़्श बाग (Hayat Bakhsh Bagh)

इसके उत्तर में एक वृहत औपचारिक उद्यान है जिसे हयात बख्श बाग कहते हैं। इसका अर्थ है जीवन दायी उद्यान। यह दो कुल्याओं द्वारा द्विभाजित है। एक-एक मण्डप उत्तर तथा दक्षिण कुल्या के दोनों छोरों पर स्थित हैं। एक तीसरा बाद में अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर द्वारा 1842 बनवाया गया था। यह दोनों कुल्याओं के मिलन स्थल के केन्द्र में बना है।

इसे भी पढ़ें: जानिए नादिर शाह की बर्बर लाल किले की लूट के बारे में

सन 1757 में नादिरशाह के आक्रमण के समय इस किले को इसकी बहुमूल्य कलाकृतियों और अनमोल खजानों की वजह से लूटा गया और बाद में अंग्रेजों ने भी इसे बहुत नुकसान पहुँचाया। सन 2007 में इसे यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स में भी स्थान दिया गया। भारत सरकार ने इसपे डाक टिकट भी जारी किया है।

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