Chandawar Battle Hindi (चंदावर (इटावा) का युद्ध)

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Chandawar Battle Hindi/ The Battle of Chandawar in Hindi चंदावर का युद्ध मुहम्मद ग़ोरी और कन्नौज के राजा जयचंद के बीच लड़ा गया जिसमें जयचंद की हार और और बाद में मोहम्मद गोरी ने उसे मार दिया। चंदावर या चंदवार, वर्तमान फ़िरोज़ाबाद का पूर्ववर्ती नगर था, फ़िरोज़ाबाद वर्तमान में उत्तर प्रदेश में फ़िरोज़ाबाद जिले का मुख्यालय है जो पहले इटावा ज़िले के अंतर्गत आता था।

जयचंद की मृत्यु के बाद मोहम्मद गोरी ने असनी के किले को लूटा जहां जयचंद ने अपने कोष संग्रहित कर रखे थे. जयचंद के सभी प्रमुख स्थानों पर अधिकार कर लिया गया और मोहम्मद गोरी की सेना ने आगे बढ़ कर बनारस को भी लूटा. बनारस में कई मंदिरों को नष्ट कर उनके स्थान पर मस्जिदें बनवाई. इस प्रकार ये माना जा सकता है कि मोहम्मद गोरी द्वारा तराईन और चंदावर की विजय ने भारत में तुर्क राज्य की बुनियाद रख दी थी.

जयचंद के पक्ष में तर्क

हालाँकि कुछ लोग जयचंद को देशद्रोही या गद्दार तक मानते हैं क्योंकि कुछ जनश्रुतियों के अनुसार जयचंद ने मोहम्मद गोरी को पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण करने के लिए निमंत्रण दिया था लेकिन इस बात का कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है. स्वयं पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि चन्दबरदाई द्वारा लिखित पुस्तक पृथ्वीराज रासो में जयचंद की वीरता का वर्णन है. इसके अनुसार जयचन्द कन्नौज साम्राज्य के राजा थे। वो गहरवार राजवंश से थे जिसे अब राठौड़ राजवंश के नाम से जाना जाता है। जयचन्द, महाराज विजयचन्द्र के पुत्र थे। ये कन्नौज के राजा थे। जयचन्द का राज्याभिषेक सन 1170 में जून महीने में हुआ था। राजा जयचन्द पराक्रमी शासक था। उसकी विशाल सैन्य वाहिनी सदैव विचरण करती रहती थी, इसलिए उसे दळ-पंगुळ भी कहा जाता था। Chandawar Battle Hindi

राजशेखर सूरी ने अपने प्रबन्ध-कोश में कहा है कि जयचन्द विजेता था और गंगा-यमुना दोआब तो उसका विशेष रूप से अधिकृत प्रदेश था। नयनचन्द्र ने रम्भामंजरी में जयचन्द को यवनों का नाश करने वाला कहा है। युद्धप्रिय होने के कारण उसने अपनी सैन्य शक्ति ऐसी बढ़ाई की वह अद्वितीय हो गई, जिससे जयचन्द को दळ पंगुळ की उपाधि से जाना जाने लगा।

जयचंद जब युवराज था तब ही उसने अपने पराक्रम से कालिंजर के चन्देल राजा मदन वर्मा को परास्त किया। राजा बनने के बाद उसने अनेक विजय प्राप्त की। पृथ्वीराज रासो के अनुसार जयचन्द ने सिन्धु नदी पर मुसलमानों से ऐसा घोर संग्राम किया कि रक्त के प्रवाह से नदी का नील जल एकदम ऐसा लाल हुआ मानों अमावस्या की रात्रि में ऊषा का अरुणोदय हो गया हो. उसने अहिलवाड़ा (गुजरात) के शासक सिद्धराज को हराया था। अपनी राज्य सीमा को उत्तर से लेकर दक्षिण में नर्मदा के तट तक बढ़ाया था। पूर्व में सीमा बंगाल के लक्ष्मणसेन के राज्य को छूती थी।
तराईन के द्वितीय युद्ध में गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को परास्त कर दिया था। इसके परिणाम स्वरूप दिल्ली और अजमेर पर मुसलमानों का आधिपत्य हो गया था। यहाँ का शासन प्रबन्ध गोरी ने अपने मुख्य सेनापति कुतुबद्दीन ऐबक को सौंप दिया और स्वयं अपने देश चला गया था। तराईन के इस युद्ध के बाद ही भारत में मुसलमानों का स्थायी राज्य बना। ऐबक गोरी का प्रतिनिधि बनकर यहाँ से शासन चलाने लगा। Chandawar Battle Hindi

इस युद्ध के दो वर्ष बाद गौरी दुबारा विशाल सेना लेकर भारत को जीतने के लिए आया। इस बार उसका कन्नौज जीतने का इरादा था। कन्नौज उस समय सम्पन्न राज्य था। मोहम्मद गोरी ने उत्तर भारत में अपने विजित इलाके को सुरक्षित रखने के अभिप्राय से यह आक्रमण किया था। वह जानता था कि बिना शक्तिशाली कन्नौज राज्य को अधीन किए भारत में उसकी सत्ता कायम न रह सकेगी। तराईन के युद्ध के दो वर्ष बाद कुतुबुद्दीन ऐबक ने जयचन्द पर चढ़ाई की। मुस्लिम आक्रमण की सूचना मिलने पर जयचन्द भी अपनी सेना के साथ युद्धक्षेत्र में आ गया। दोनों के बीच इटावा के पास चन्दावर नामक स्थान पर मुकाबला हुआ। युद्ध में राजा जयचन्द हाथी पर बैठकर सेना का संचालन करने लगा। इस युद्ध में जयचन्द की पूरी सेना नहीं थी। उसकी सेनाएँ विभिन्न क्षेत्रों में थी, जयचन्द के पास उस समय थोड़ी सी सेना थी। दुर्भाग्य से जयचन्द को एक तीर लगा, जिससे उनका प्राणान्त हो गया, युद्ध में गोरी की विजय हुई। जयचन्द पर देशद्रोह का आरोप लगाया जाता है। कहा जाता है कि उसने पृथ्वीराज पर आक्रमण करने के लिए मोहम्मद गोरी को भारत बुलाया और उसे सैनिक संहायता भी दी। वस्तुत: ये आरोप निराधार हैं। ऐसे कोई प्रमाण नहीं हैं जिससे पता लगे कि जयचन्द ने मोहम्मद गोरी की सहायता की थी। मोहम्मद गोरी को बुलाने वाले देश द्रोही तो दूसरे ही थे, जिनके नाम पृथ्वीराज रासो में अंकित हैं। ये थे नित्यानन्द खत्री, प्रतापसिंह जैन, माधोभट्ट तथा धर्मायन कायस्थ. संयोगिता प्रकरण में पृथ्वीराज के मुख्य-मुख्य सामन्त मारे गए थे। ठीक उसी समय इन लोगों ने गुप्त रूप से गोरी को समाचार दिया कि पृथ्वीराज के प्रमुख सामन्त अब नहीं रहे, यही मौका है। तब भी गौरी को विश्वास नहीं हुआ, उसने अपने दूत फकीरों के भेष में दिल्ली भेजे। ये लोग इन्हीं लोगों के पास गुप्त रूप से रहे थे। इन्होंने जाकर गोरी को सूचना दी, तब जाकर मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज पर आक्रमण किया था। Chandawar Battle Hindi

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समकालीन इतिहास में कही भी जयचन्द के बारे में उल्लेख नहीं है कि उसने मोहम्मद गोरी की सहायता की हो। यह सब आधुनिक इतिहास में कपोल कल्पित बातें हैं। जयचन्द का पृथ्वीराज से कोई वैमनस्य नहीं था। संयोगिता प्रकरण से जरूर वह थोड़ा कुपित हुआ था। उस समय पृथ्वीराज, जयचन्द की कृपा से ही बचा था। संयोगिता हरण के समय जयचन्द ने अपनी सेना को आज्ञा दी थी कि इनको घेर लिया जाए। लगातार पाँच दिन तक पृथ्वीराज जयचंद की सेना से बाख के निकलने का प्रयास करते रहे। इसी बीच पृथ्वीराज के प्रमुख सामन्त युद्ध में मारे गए। पाँचवे दिन सेना ने घेरा और कड़ा कर दिया। जब जयचन्द आगे बढ़ा तब उसने देखा कि पृथ्वीराज के पीछे घोड़े पर संयोगिता बैठी है। उसने विचार किया कि संयोगिता ने पृथ्वीराज का वरण किया है। अगर मैं इसे मार देता हूँ तो बड़ा अनर्थ होगा, बेटी विधवा हो जाएगी। उसने सेना को घेरा तोड़ने का आदेश दिया, तब कहीं जाकर पृथ्वीराज दिल्ली पहुँचा। फिर जयचन्द ने अपने पुरोहित दिल्ली भेजे, जहाँ विधि-विधान से पृथ्वीराज और संयोगिता का विवाह सम्पन्न हुआ। पृथ्वीराज और मोहम्मद गोरी के तराईन के द्वितीय युद्ध में जयचन्द तटस्थ रहा था। इस युद्ध में पृथ्वीराज ने उससे सहायता भी नहीं माँगी थी। तराईन के पहले युद्ध में भी सहायता नहीं माँगी थी। अगर पृथ्वीराज सहायता माँगता तो जयचन्द सहायता जरूर कर सकता था। अगर जयचन्द और मोहम्मद गोरी में मित्रता होती तो बाद में मोहम्मद गोरी जयचन्द पर आक्रमण क्यों करता? अतः यह आरोप मिथ्या है। पृथ्वीराज रासो में यह बात कहीं नहीं कही गई कि जयचन्द ने गोरी को बुलाया था। इसी प्रकार समकालीन फारसी ग्रन्थों में भी इस बात का संकेत तक नहीं है कि जयचन्द ने गोरी को आमन्त्रित किया था। यह एक सुनी-सुनाई बात है जो एक रूढी बन गई है। सम्राट जयचंद के लिए इतिहास की पर्याप्त जानकारी के अभाव में अपशब्द कहे जाते हैं जबकि ख्यातिलब्ध इतिहासकारों की सम्राट जयचंद के प्रति राय के अनुसार इस कथन में कोई सत्यता नहीं है कि महाराज जयचंद ने पृथ्वीराज पर अक्रमण करने के लिए मोहम्मद गोरी को आमंत्रित किया हो। Chandawar Battle Hindi

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