Battle of Palkhed in Hindi पालखेड़ की लड़ाई या जंग

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Battle of Palkhed in Hindi / पालखेड़ की लड़ाई या पालखेड़ की जंग

पालखेड़ का युद्ध या पालखेड की लड़ाई (Battle of Palkhed) 28 फ़रवरी, 1728 ई. को मराठा साम्राज्य के पेशवा बाजीराव प्रथम तथा हैदराबाद के निजाम आसफ जाह प्रथम (जो मुग़ल वजीर था) के बीच हुआ। इस युद्ध में बाजीराव ने निजाम को पराजित किया। यह युद्ध सैन्य रणनीति के उत्कृष्ट क्रियान्यवन का एक शानदार उदाहरण है।

युद्ध की पृष्ठभूमि

18वीं सदी की शुरूआत तक औरंगज़ेब की मृत्यु हो चुकी थी। 1707 ई. में बहादुरशाह प्रथम जिसे शाह मुअज्जम भी कहा जाता था, दिल्ली की गद्दी पर बैठा। इसी बीच मुग़ल सल्तनत में सईद बंधुओं ने कब्जा करना शुरू कर दिया। वे देखते ही देखते राजा को अपनी उंगली पर नचाने लगें। कई राजनीतिक हत्याएं हुई। बहादुरशाह प्रथम, फिर उसके बाद जहांदार शाह, उसके बाद फर्रुखसियार और फिर मोहम्मदशाह बारी-बारी से राजा बनते रहे और एक एक करके इन सबको मरवा दिया गया। हुकूमत सईद बंधुओं ने अपने हाथ में ले ली। मुग़ल सल्तनत अब राजा का नहीं बल्कि राज चलाने वालों का गुलाम बन गया। उधर दक्षिण में मराठा सैनिक और पेशवा अपने आधिपत्य का परचम पूरे दक्षिण भारत में लहरा रहे थे और आधा हिंदुस्तान अपनी तलवार की धार पर जीत कर मुग़लों को दिल्ली की सीमाओं में बांध दिया था।

वस्तुतः पालखेड की लड़ाई (Battle of Palkhed in Hindi) के बीज वर्ष 1713 में ही बो दिए गए थे जब मराठा राजा शाहूजी ने बालाजी विश्वनाथ को अपना पेशवा या प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। एक दशक के भीतर, बालाजी ने खंडित मुग़ल साम्राज्य से महत्वपूर्ण मात्रा में क्षेत्र और धन जीत लिए। उस समय हालात ऐसे थे कि दक्कन में मुग़ल शासकों को चौथ और सरदेशमुखी कर के रूप में पेशवाओं को देना पड़ता था, यानि मुग़ल सल्तनत को आजादी का कर्ज पेशवाओं के आगे चुकाना पड़ता था। दिल्ली की मुग़ल सल्तनत ने दक्षिण में कदम बढ़ाना ही छोड़ दिया था।

सईद बंधुओं की हत्या

सईद बंधुओं की हत्या के बाद 1724 ई. में आशफ जांह प्रथम हैदराबाद का निजाम बना। उसने पेशवाओं को टैक्स देना बंद कर दिया। पेशवा ने निजाम को मासूम बच्चा समझकर इस बात की शिकायत उसके अभिभावक दिल्ली में बैठे हुकूमत से की। दिल्ली की हुकूमत ने पेशवा की शिकायत मिलते ही फौरन निजाम को हैदराबाद से हटा कर उसे अवध आने का निर्देश दिया, और कहा कि पेशवाओं से पंगा लेने की जरूरत नहीं है। लेकिन निजाम नहीं माना और उसने मुग़लों पर हमला कर दिया। उस समय मुग़ल सल्तनत इतनी कमजोर हो चुकी थी कि निजाम के हमले से ही धराशाई हो गयी।

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हैदराबाद पर मुगल नियंत्रण समाप्त हो गया, और हैदराबाद के पहले निजाम आसफ जाह प्रथम ने खुद को मुगल शासन से स्वतंत्र घोषित कर दिया, और अपना राज्य ‘हैदराबाद डेक्कन’ स्थापित किया गया। निज़ाम ने अपने प्रांत को मजबूत करने के लिए मराठों के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रण में लाने का सोचा। उसने कोल्हापुर के शाहू और संभाजी द्वितीय दोनों द्वारा राजा की उपाधि के दावे के कारण मराठा साम्राज्य में बढ़ते ध्रुवीकरण का फायदा उठाने का निर्णय लिया। निज़ाम ने संभाजी द्वितीय गुट का समर्थन करना शुरू कर दिया और दक्कन प्रांत के जमींदारों द्वारा मराठों को दिए गए चौथ को रोकने का फैसला किया जिस से शाहू, जिन्हें मराठों का राजा घोषित किया गया था, क्रोधित हो गए और ये तात्कालिक युद्ध का कारण बना.

युद्ध का वर्णन (Battle of Palkhed in Hindi)

आसफ जाह प्रथम ने निजाम उल मुल्क की उपाधि ग्रहण की और इसके साथ ही खुद को शेर समझने लगा, लेकिन वह भूल गया कि जिस युद्ध क्षेत्र में उसने लड़ना सीखा है, उसे बनाने वाले पेशवा थे। पेशवा ने अपनी सारी फौज को संगठित कर निजाम पर हमला कर दिया और उसके आसपास के इलाकों को जीतने लगे और निजाम के खजाने को भी लूटा। इधर निजाम ने भी पेशवा के छोटे-छोटे राज्य को जीतना शुरू किया और जीतते-जीतते पुणे तक पहुंच गया। निजाम की सेना का सामना महाराष्ट्र के औरंगाबाद के पास पालखेड नामक जगह पर पेशवा की सेना से हुआ। निजाम को यह उम्मीद थी कि पेशवा का दुश्मन रह चुका संभाजी उसका साथ देगा, लेकिन संभाजी ने पेशवा की तलवार के सामने नतमस्तक होकर माफी मांग ली थी. संभाजी ने निजाम की मदद करने से इंकार कर दिया क्योंकि वह बाजीराव पेशवा से दुश्मनी मोल नहीं लेना चाहता था।

बाजीराव की चाल

मराठों के पेशवा बाजीराव ने मराठा राजा शाहू से निज़ाम आसफ़ जाह प्रथम के साथ वार्ता को तोड़ने के लिए कहा और एक सेना को संगठित करना शुरू कर दिया। मानसून खत्म होने पर बाजीराव ने अपनी सारी फौज कर्नाटक से बुला ली और इस अभियान के लिए औरंगाबाद की ओर बढ़ गए। बाजीराव ने अपने दिमाग से चाल चलते हुए और रणनीति के तहत निजाम की सेनाओं को वापस हैदराबाद जाने से पहले ही पालखेड के निकट पकड़ लिया और उन्हें एक दलदल नदी के किनारे ला खड़ा किया जिससे उनकी सेनाओं को आत्मसमर्पण करने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा।

मराठों की विजय

पालखेड (Battle of Palkhed in Hindi) के मैदान में निजाम उल मुल्क आसिफ जहां प्रथम की सेना को पेशवा की सेना ने चारों तरफ से घेर लिया और उन्हें काट कर वहीं जमींदोज कर दिया गया। निजाम के साथ एक संधि पर हस्ताक्षर करवाया गया, जिस पर पेशवा ने अपनी सारी शर्तें निजाम से घुटनों के ऊपर गिरवाकर उससे कुबूल करवाई और निजाम ने उसे स्वीकार किया। संधि के तहत शाहू को मराठा साम्राज्य का छत्रपति घोषित कर दिया। दक्कन में सरदेशमुखी और चौथ वसूल करने की भी अनुमति निजाम ने बाजीराव को दे दी। उसके बाद किसी मुग़लिया शासक ने पेशवा के ऊपर आक्रमण की हिम्मत नहीं की।

युद्ध का परिणाम

बाजीराव की यह जीत बहुत बड़ी जीत थी और इससे उन्होंने संपूर्ण मराठा साम्राज्य को एक बार फिर से बढ़ाना शुरू कर दिया और उनका प्रभाव संपूर्ण दक्षिण भारत में फैल गया। बाजीराव ने अपने दिमाग की चाल और रणनीति का इस्तेमाल करके युद्ध में अपने सैनिकों की बिना क्षति पहुंचाए ही निजाम को पराजित कर दिया यह बाजीराव के तीक्ष्ण मस्तिष्क और एक महान सेनापति होने को दर्शाता है। बाजीराव प्रथम को अमर बना देने में पालखेड़ की लड़ाई का अपना विशेष महत्व है। जो पेशवा मराठा साम्राज्य को इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज करता है।

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