Venu lo gunje dhara (वेणु लो गूँजे धरा कविता)- माखनलाल चतुर्वेदी

Venu lo gunje dhara, वेणु लो गूँजे धरा, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है. वेणु लो, गूँजे धरा मेरे सलोने श्याम एशिया की गोपियों ने वेणि बाँधी है गूँजते हों गान,गिरते हों अमित अभिमान तारकों-सी नृत्य ने बारात साधी है। युग-धरा से दृग-धरा तक खींच मधुर लकीर उठ पड़े हैं चरण कितने लाड़ले … Read more

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