Madhur badal aur badal (मधुर बादल और बादल कविता)- माखनलाल चतुर्वेदी

Madhur badal aur badal, मधुर बादल और बादल, और बादल, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है. मधुर ! बादल, और बादल, और बादल आ रहे हैं और संदेशा तुम्हारा बह उठा है, ला रहे हैं।। गरज में पुरुषार्थ उठता, बरस में करुणा उतरती उग उठी हरीतिमा क्षण-क्षण नया श्रृंगार करती बूँद-बूँद मचल उठी … Read more

Samay ke samarth ashwa (समय के समर्थ अश्व कविता)- माखनलाल चतुर्वेदी

Samay ke samarth ashwa, समय के समर्थ अश्व, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है. समय के समर्थ अश्व मान लो आज बन्धु! चार पाँव ही चलो। छोड़ दो पहाड़ियाँ, उजाड़ियाँ तुम उठो कि गाँव-गाँव ही चलो।। रूप फूल का कि रंग पत्र का बढ़ चले कि धूप-छाँव ही चलो।। समय के समर्थ उश्व … Read more

Jade ki sanjh Kavita (जाड़े की साँझ कविता)- माखनलाल चतुर्वेदी

Jade ki sanjh Kavita, जाड़े की साँझ, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है. किरनों की शाला बन्द हो गई चुप-चुप अपने घर को चल पड़ी सहस्त्रों हँस-हँस उद्दण्ड खेलतीं घुल-मिल होड़ा-होड़ी रोके रंगों वाली छबियाँ? किसका बस! ये नटखट फिर से सुबह-सुबह आवेंगी पंखनियाँ स्वागत-गीत कि जब गावेंगी। दूबों के आँसू टपक उठेंगे … Read more

Sandhya ke bas do bol suhane (संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं)

Sandhya ke bas do bol suhane, संध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है. सन्ध्या के बस दो बोल सुहाने लगते हैं सूरज की सौ-सौ बात नहीं भाती मुझको बोल-बोल में बोल उठी मन की चिड़िया नभ के ऊँचे पर उड़ जाना है भला-भला! पंखों की सर-सर … Read more

Funkaran kar re Kavita (फुंकरण कर रे समय के साँप कविता)- माखनलाल चतुर्वेदी

Funkaran kar re Kavita, फुंकरण कर रे समय के साँप, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है. फुंकरण कर, रे समय के साँप कुंडली मत मार, अपने-आप। सूर्य की किरणों झरी सी यह मेरी सी, यह सुनहली धूल; लोग कहते हैं फुलाती है धरा के फूल! इस सुनहली दृष्टि से हर बार कर चुका-मैं … Read more

Ye prakash ne failaye (ये प्रकाश ने फैलाये हैं कविता)- माखनलाल चतुर्वेदी

Ye prakash ne failaye, ये प्रकाश ने फैलाये हैं, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है. ये प्रकाश ने फैलाये हैं पैर, देख कर ख़ाली में अन्धकार का अमित कोष भर आया फैली व्याली में ख़ाली में उनका निवास है, हँसते हैं, मुसकाता हूँ मैं ख़ाली में कितने खुलते हो, आँखें भर-भर लाता हूँ … Read more

Nayi nayi kopalen Kavita (नयी-नयी कोपलें कविता)- माखनलाल चतुर्वेदी

Nayi nayi kopalen Kavita, नयी-नयी कोपलें, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है. नयी-नयी कोपलें, नयी कलियों से करती जोरा-जोरी चुप बोलना, खोलना पंखुड़ि, गंध बह उठा चोरी-चोरी। उस सुदूर झरने पर जाकर हरने के दल पानी पीते निशि की प्रेम-कहानी पीते, शशि की नव-अगवानी पीते। उस अलमस्त पवन के झोंके ठहर-ठहर कैसे लहाराते … Read more

Kaisi hai pahichan tumhari (कैसी है पहिचान तुम्हारी कविता)- माखनलाल चतुर्वेदी

Kaisi hai pahichan tumhari, कैसी है पहिचान तुम्हारी, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है. कैसी है पहिचान तुम्हारी राह भूलने पर मिलते हो ! पथरा चलीं पुतलियाँ, मैंने विविध धुनों में कितना गाया दायें-बायें, ऊपर-नीचे दूर-पास तुमको कब पाया धन्य-कुसुम ! पाषाणों पर ही तुम खिलते हो तो खिलते हो। कैसी है पहिचान … Read more

Anjali ke phool Kavita (अंजलि के फूल गिरे जाते हैं कविता)- माखनलाल चतुर्वेदी

Anjali ke phool Kavita, अंजलि के फूल गिरे जाते हैं, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है. अंजलि के फूल गिरे जाते हैं आये आवेश फिरे जाते हैं। चरण-ध्वनि पास-दूर कहीं नहीं साधें आराधनीय रही नहीं उठने,उठ पड़ने की बात रही साँसों से गीत बे-अनुपात रही बागों में पंखनियाँ झूल रहीं कुछ अपना, कुछ … Read more

Machal mat door door (मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी कविता)- माखनलाल चतुर्वेदी

Machal mat door door, मचल मत दूर-दूर ओ मानी, माखनलाल चतुर्वेदी (Makhanlal Chaturvedi) द्वारा लिखित कविता है. मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी ! उस सीमा-रेखा पर जिसके ओर न छोर निशानी; मचल मत, दूर-दूर, ओ मानी ! घास-पात से बनी वहीं मेरी कुटिया मस्तानी, कुटिया का राजा ही बन रहता कुटिया की रानी ! मचल … Read more

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