Mahadevi Verma Hindi (महादेवी वर्मा का जीवन परिचय)

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Mahadevi Verma Hindi Jivani

Mahadevi Verma Hindi Jivani/ Biography of Mahadevi Verma in Hindi

महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma) हिन्दी साहित्य की एक महान कवियित्री और एक सुविख्यात लेखिका थी इनको हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से एक माना जाता है.

महादेवी वर्मा को हिन्दी साहित्य में छायावादी युग के प्रमुख स्तंभों जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला और सुमित्रानंदन पंत के साथ महत्वपूर्ण स्तंभ माना जाता है. ये एक महान कवियित्री होने के साथ-साथ हिंदी साहित्य जगत में एक बेहतरीन गद्य लेखिका के रुप में भी जानी जाती हैं.

महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” कहा था. इनको आधुनिक मीरा भी कहा गया है क्योंकि इनकी कविताओं में एक प्रेमी से दूर होने का कष्ट एवं इसके विरह और पीड़ा को बेहद भावनात्मक रुप से वर्णित किया गया है।

महादेवी वर्मा जी (Mahadevi Verma in Hindi) एक मशूहर कवियित्री और एक सुविख्यात लेखिका तो थी हीं, इसके साथ ही वे एक महान समाज सुधारक भी थीं। इन्होने महिलाओं के सशक्तिकरण पर विशेष जोर दिया और महिला शिक्षा को काफी बढ़ावा दिया था। महादेवी वर्मा जी ने महिलाओं को समाज में उनका अधिकार दिलवाने और उचित आदर-सम्मान दिलवाने के लिए कई महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी कदम उठाए थे। Mahadevi Verma Hindi

महादेवी वर्मा का जीवन परिचय (Mahadevi Verma ka Jivan Parichay)

प्रारंभिक जीवन और परिवार

महादेवी वर्मा का जन्म 26 मार्च, 1907 को होली के दिन फरुखाबाद (उत्तर प्रदेश) में एक बेहद ही संपन्न परिवार में हुआ था। इस परिवार में लगभग 200 वर्षों या सात पीढ़ियों के बाद महादेवी जी के रूप में पुत्री का जन्म हुआ था। अत: इनके बाबा गोविंद प्रसाद वर्मा की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और इनको घर की देवी मानकर इनका नाम महादेवी रखा गया। महादेवी वर्मा के माता-पिता का नाम हेमरानी देवी और बाबू गोविन्द प्रसाद वर्मा था। इनके पिता श्री गोविंद प्रसाद वर्मा जी एक विद्यालय में प्राध्यापक थे और इनकी माता हेमरानी देवी पूजा पाठ में तल्लीन रहने वाली महिला थीं जिनकी वेद पुराण और संगीत में रूचि थी.

महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma ki Jivani) की एक छोटी बहन श्यामा देवी (श्रीमती श्यामा देवी सक्सेना धर्मपत्नी- डॉ॰ बाबूराम सक्सेना, भूतपूर्व विभागाध्यक्ष एवं उपकुलपति इलाहाबाद विश्व विद्यालय) और दो छोटे भाई क्रमश: जगमोहन वर्मा एवं मनमोहन वर्मा थे।

जहाँ महादेवी वर्मा एवं जगमोहन वर्मा बहुत शान्त एवं गम्भीर स्वभाव के थे वहीँ श्यामादेवी और मनमोहन वर्मा बहुत चंचल, शरारती एवं हठी स्वभाव के थे।

शैशवावस्था से ही महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma Hindi) के हृदय में जीव मात्र के प्रति करुणा और दया की भावना थी। उन्हें ठण्डक में कूँ कूँ करते हुए पिल्लों का भी ध्यान रहता था। पशु-पक्षियों का लालन-पालन और उनके साथ खेलकूद में ही दिन बिताती थीं। यही कारण था कि पढाई पूरी करने के बाद ये सन 1929 में बौद्ध दीक्षा लेकर भिक्षुणी बनना चाहतीं थीं, लेकिन महात्मा गांधी के संपर्क में आने के बाद समाज-सेवा में लग गईं।

इनको चित्र बनाने का शौक भी बचपन से ही था। इस शौक की पूर्ति वे पृथ्वी पर कोयले आदि से चित्र उकेर कर करती थीं। इनके व्यक्तित्व में जो पीड़ा, करुणा, वेदना, विद्रोह, दार्शनिकता एवं आध्यात्मिकता है तथा अपने काव्य में इन्होंने जिन तरल सूक्ष्म तथा कोमल अनुभूतियों की अभिव्यक्ति की है, इन सब का बीज इनकी इसी अवस्था में पड़ चुका था जिसका बाद में अंकुरण तथा पल्लवन लगातार होता रहा।

महादेवी वर्मा की शिक्षा

महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma ki Jivani) की शिक्षा 5 वर्ष की अवस्था में 1912 में इंदौर के मिशन स्कूल से प्रारम्भ हुई और साथ ही संस्कृत, अंग्रेजी, संगीत तथा चित्रकला की शिक्षा अध्यापकों द्वारा घर पर ही दी जाती रही. 1916 में विवाह के कारण कुछ दिन शिक्षा स्थगित रही। विवाहोपरान्त महादेवी जी ने 1919 में बाई का बाग स्थित क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में प्रवेश लिया और कॉलेज के छात्रावास में रहने लगीं। महादेवी जी की प्रतिभा का निखार यहीं से प्रारम्भ होता है।

1921 में महादेवी जी ने आठवीं कक्षा पास की और में प्रान्त भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया. इनकी कविता यात्रा के विकास की शुरुआत भी इसी समय और यहीं से हुई। ये सात वर्ष की अवस्था से ही कविता लिखने लगी थीं और 1925 तक जब उन्होंने अपनी मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की थी, वह एक सफल कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थीं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कविताओं का प्रकाशन होने लगा था।

विद्यालय में हिंदी अध्यापक से प्रभावित होकर इन्होने ब्रजभाषा में भी कुछ कवितायेँ लिखी. फिर तत्कालीन खड़ीबोली की कविता से प्रभावित होकर खड़ीबोली में रोला और हरिगीतिका छंदों में काव्य लिखना प्रारंभ किया। उसी समय माँ से सुनी एक करुण कथा को लेकर सौ छंदों में एक खंडकाव्य भी लिख डाला। कुछ दिनों बाद उनकी रचनाएँ तत्कालीन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने लगीं। विद्यार्थी जीवन में वे प्रायः राष्ट्रीय और सामाजिक जागृति संबंधी कविताएँ लिखती रहीं, उस समय की अपनी कविताओं के बारे में इन्होने खुद ही कहा है: “विद्यालय के वातावरण में ही खो जाने के लिए लिखी गईं थीं। उनकी समाप्ति के साथ ही मेरी कविता का शैशव भी समाप्त हो गया।” मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पूर्व ही उन्होंने ऐसी कविताएँ लिखना शुरू कर दिया था, जिसमें व्यष्टि में समष्टि और स्थूल में सूक्ष्म चेतना के आभास की अनुभूति अभिव्यक्त हुई है। उनके प्रथम काव्य-संग्रह ‘नीहार’ की अधिकांश कविताएँ उसी समय की है। Mahadevi Verma Hindi

महादेवी वर्मा का विवाह और वैवाहिक जीवन

जब महादेवी वर्मा सिर्फ 9 वर्ष की थी उसी समय सन 1916 में उनके बाबा श्री बाँके विहारी ने इनका विवाह बरेली के पास नबाव गंज कस्बे के निवासी श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कर दिया, जो उस समय दसवीं कक्षा के विद्यार्थी थे।

महादेवी जी का विवाह उस उम्र में हुआ जब वे विवाह का मतलब भी नहीं समझती थीं। खैर विवाह की तारीख तय हो गयी। जब बारात आयी तो ये बाहर भाग कर सबके बीच खड़े होकर बारात देखने लगीं. व्रत रखने को कहा गया तो मिठाई वाले कमरे में बैठ कर खूब मिठाई खाई। रात को सोते समय नाइन ने गोद में लेकर फेरे दिलवाये और सुबह जब आँख खुली तो कपड़े में गाँठ लगी देखी तो उसे खोल कर भाग आयीं. Mahadevi Verma Hindi

महादेवी वर्मा पति-पत्नी के सम्बंध को कभी स्वीकार न कर सकीं। कारण आज भी रहस्य बना हुआ है। आलोचकों और विद्वानों ने अपने-अपने ढँग से अनेक प्रकार की अटकलें लगायी हैं।

गंगा प्रसाद पाण्डेय के अनुसार- “ससुराल पहुँच कर महादेवी जी ने जो उत्पात मचाया, उसे ससुराल वाले ही जानते हैं।.. रोना बस रोना। नई बालिका बहू के स्वागत समारोह का उत्सव फीका पड़ गया और घर में एक आतंक छा गया। फलत: ससुर महोदय दूसरे ही दिन उन्हें वापस लौटा गए।”

पिता जी की मृत्यु के बाद श्री स्वरूप नारायण वर्मा कुछ समय तक अपने ससुर के पास ही रहे, पर पुत्री की मनोवृत्ति को देखकर उनके बाबू जी ने श्री वर्मा को इण्टर करवा कर लखनऊ मेडिकल कॉलेज में प्रवेश दिलाकर वहीं बोर्डिंग हाउस में रहने की व्यवस्था कर दी। जब महादेवी वर्मा इलाहाबाद में पढ़ने लगीं तब भी उनके पति श्री स्वरूप नारायण वर्मा उनसे मिलने वहाँ आते थे किन्तु महादेवी वर्मा उदासीन ही बनी रहीं। विवाहित जीवन के प्रति उनमें विरक्ति उत्पन्न हो गई थी। इस सबके बावजूद श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कोई वैमनस्य नहीं था। सामान्य स्त्री-पुरुष के रूप में उनके सम्बंध मधुर ही रहे। दोनों में कभी-कभी पत्राचार भी होता था। यदा-कदा श्री वर्मा इलाहाबाद में उनसे मिलने भी आते थे। एक विचारणीय तथ्य यह भी है कि श्री वर्मा ने महादेवी जी के कहने पर भी दूसरा विवाह नहीं किया। महादेवी जी का जीवन तो एक संन्यासिनी का जीवन था ही। उन्होंने जीवन भर श्वेत वस्त्र पहना, तख्त पर सोया और कभी शीशा नहीं देखा। 1966 में अपने पति की मृत्यु के बाद महादेवी वर्मा स्थायी रूप इलाहबाद में ही रहने लगीं.

कार्यक्षेत्र

महादेवी वर्मा (Mahadevi Verma Hindi) ने अध्यापन से अपने कार्यजीवन की शुरूआत की. 1932 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम.ए करने के पश्चात इन्होने नारी शिक्षा प्रसार के मंतव्य से प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना की और  उसकी प्रधानाचार्य के रुप में कार्य करना प्रारंभ किया. ये अंतिम समय तक  प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या बनी रहीं। उसी समय इन्होने मासिक पत्रिका चांद का अवैतनिक संपादन किया। इनका बाल-विवाह हुआ था परंतु इन्होने पूरा जीवन अविवाहित की भांति जिया। 11 सितंबर, 1987 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में इनका निधन हो गया।

प्रतिभावान कवियित्री और गद्य लेखिका महादेवी वर्मा साहित्य और संगीत में निपुण होने के साथ-साथ कुशल चित्रकार और सृजनात्मक अनुवादक भी थीं। इनको हिन्दी साहित्य के सभी महत्त्वपूर्ण पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव प्राप्त है। गत शताब्दी की सर्वाधिक लोकप्रिय महिला साहित्यकार के रूप में इन्होने बहुत ख्याति अर्जित की. ये भारत की 50 सबसे यशस्वी महिलाओं में भी शामिल हैं। कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान इनकी बचपन की मित्र थी. Mahadevi Verma Hindi

महादेवी वर्मा (Biography of Mahadevi Verma in Hindi) ने यूँ तो कहानियां नहीं लिखीं लेकिन इन्होने कुछ शानदार संस्मरण, रेखाचित्र, और निबंध लिखे हैं. एक महिला समाज सुधारक के रूप में भी महादेवी वर्मा ने कई कार्य किये. इन्होंने ही सबसे पहले महिला कवि सम्मेलन की शुरुआत की. भारत का पहला महिला कवि सम्मेलन सुभद्रा कुमारी चौहान की अध्यक्षता में प्रयाग महिला विद्यापीठ में महादेवी जी के संयोजन से सम्पूर्ण हुआ.

महादेवी वर्मा ने अपनी कविताओं में वेदना और अनुभूतियों को चित्रित किया है. उनके प्रसिद्ध कविता संग्रह नीहार, रश्मि, नीरजा, और सांध्यगीत हैं. महादेवी वर्मा ने गद्य साहित्य में भी अपना योगदान दिया है. अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएं, शृंखला की कड़ियाँ, पथ के साथी और मेरा परिवार उनके प्रमुख गद्य साहित्य हैं.

महादेवी वर्मा बौद्धधर्म से बहुत प्रभावित थीं. इन्होंने आजादी के पहले का भी समय देखा था और आजादी के बाद का भी. महादेवी जी ने स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लेकर अपना योगदान दिया था.

सामाजिक जीवन

महादेवी वर्मा बहुत प्रतिभाशाली थी और प्रसिद्ध भी, इसलिए इनकी पहचान तत्कालीन सभी साहित्यकारों और राजनीतिज्ञों से थी। ये महात्मा गांधी से भी प्रभावित रहीं। सुभद्रा कुमारी चौहान से इनकी मित्रता कॉलेज में हुयी थी. सुभद्रा कुमारी चौहान महादेवी जी का हाथ पकड़ कर सखियों के बीच में ले जाती और कहतीं- “सुनो, ये कविता भी लिखती हैं।”

महादेवी वर्मा की कृतियाँ (रचनाएं) –

महादेवी जी गंभीर प्रकृति की महिला थीं लेकिन उनसे मिलने वालों की संख्या बहुत बड़ी थी। रक्षाबंधन, होली और उनके जन्मदिन पर उनके घर जमावड़ा सा लगा रहता था। सूर्यकांत त्रिपाठी निराला से उनका भाई बहन का रिश्ता जगत प्रसिद्ध है। उनसे राखी बंधाने वालों में सुप्रसिद्ध साहित्यकार गोपीकृष्ण गोपेश भी थे। ये सुमित्रानंदन पंत को भी राखी बांधती थीं और सुमित्रानंदन पंत भी उन्हें राखी बांधते। इस प्रकार स्त्री-पुरुष की बराबरी की एक नई प्रथा उन्होंने शुरू की थी। वे राखी को रक्षा का नहीं स्नेह का प्रतीक मानती थीं। वे जिन परिवारों से अभिभावक की भांति जुड़ी रहीं उसमें गंगा प्रसाद पांडेय का नाम प्रमुख है, जिनकी पोती का इन्होंने स्वयं कन्यादान किया था। गंगा प्रसाद पांडेय के पुत्र रामजी पांडेय ने महादेवी वर्मा के अंतिम समय में उनकी बड़ी सेवा की। इसके अतिरिक्त इलाहाबाद के लगभग सभी साहित्यकारों और परिचितों से उनके आत्मीय संबंध थे। Mahadevi Verma Hindi

कविता संग्रह:

महादेवी वर्मा ने निम्नलिखित कविता संग्रह लिखे:

  1. नीहार (1930)
  2. रश्मि (1931)
  3. नीरजा (1934)
  4. सांध्यगीत (1936)
  5. दीपशिखा (1942)
  6. सप्तपर्णा (अनूदित-1959)
  7. प्रथम आयाम (1974)
  8. अग्निरेखा (1990)

गद्य साहित्य – गद्य साहित्य में महादेवी वर्मा द्वारा रचित कृतियाँ निम्नलिखित हैं:

रेखाचित्र अतीत के चलचित्र (1941) तथा स्मृति की रेखाएं (1943)

संस्मरण पथ के साथी (1956) और मेरा परिवार (1972 और संस्मरण (1983))

चुने हुए भाषणों का संकलन संभाषण (1974)

निबंध शृंखला की कड़ियाँ (1942), विवेचनात्मक गद्य (1942), साहित्यकार की आस्था तथा अन्य निबंध (1962), संकल्पिता (1969)

ललित निबंध क्षणदा (1956)

कहानियाँ गिल्लू

संस्मरण, रेखाचित्र और निबंधों का संग्रह हिमालय (1963)

बाल साहित्य:

महादेवी वर्मा के लिखे बाल साहित्य निम्नलिखित हैं:

1. ठाकुरजी भोले हैं

2. आज खरीदेंगे हम ज्वाला

इसके अतिरिक्त महादेवी वर्मा जी ने महिलाओं की विशेष पत्रिका “चाँद” का संपादन कार्य भी संभाला|

सम्मान और पुरुस्कार

1. महादेवी वर्मा आजादी के बाद 1942 में उत्तरप्रदेश विधानसभा परिषद की सदस्य बनीं. उन्हें 1956 में साहित्य सेवा के लिये पदम भूषण की उपाधि से अलंकृत किया गया.

2. महादेवी वर्मा जी को उनके यामा काव्य संकलन के लिये “ज्ञानपीठ पुरुस्कार” से सुशोभित किया गया.

3. 1988 उनके मरणोपरांत भारत सरकार ने उन्हें पदम विभूषण की उपाधि से सम्मानित किया.

4. 1991 में सरकार ने उनके सम्मान में, कवि जयशंकर प्रसाद के साथ उनका एक 2 रुपये का युगल टिकट भी जारी किया था.

प्रसिद्धि

1932 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. करने के बाद से महादेवी वर्मा की प्रसिद्धि का एक नया युग प्रारंभ हुआ। भगवान बुद्ध के प्रति गहन भक्तिमय अनुराग होने और अपने बाल-विवाह के अवसाद को झेलने के कारण महादेवी (Mahadevi Verma Hindi) बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहती थीं लेकिन कुछ समय बाद महात्मा गांधी के सम्पर्क और प्रेरणा से उनका मन सामाजिक कार्यों की ओर उन्मुख हो गया। इसके बाद इन्होने प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रधानाचार्या का पद संभाला और चाँद का निःशुल्क संपादन किया। प्रयाग में ही उनकी भेंट रवीन्द्रनाथ ठाकुर से हुई और यहीं पर ‘मीरा जयंती’ का शुभारम्भ किया। कलकत्ता में जापानी कवि योन नागूची के स्वागत समारोह में भी भाग लिया और शान्ति निकेतन में गुरुदेव के दर्शन किये। यायावरी की इच्छा से बद्रीनाथ की पैदल यात्रा की और रामगढ़, नैनीताल में ‘मीरा मंदिर’ नाम की कुटीर का निर्माण किया। एक अवसर ऐसा भी आया कि विश्ववाणी के बुद्ध अंक का संपादन किया और ‘साहित्यकार संसद’ की स्थापना की। भारतीय रचनाकारों को आपस में जोड़ने के लिये ‘अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन’ का आयोजन किया और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद से ‘वाणी मंदिर’ का शिलान्यास कराया।

स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात इलाचंद्र जोशी और दिनकर जी के साथ दक्षिण की साहित्यिक यात्रा की। निराला की काव्य-कृतियों से कविताएँ लेकर ‘साहित्यकार संसद’ द्वारा अपरा शीर्षक से काव्य-संग्रह प्रकाशित किया। ‘साहित्यकार संसद’ के मुख-पत्र साहित्यकार का प्रकाशन और संपादन इलाचंद्र जोशी के साथ किया। प्रयाग में नाट्य संस्थान ‘रंगवाणी’ की स्थापना की और उद्घाटन मराठी के प्रसिद्ध नाटककार मामा वरेरकर ने किया। इस अवसर पर भारतेंदु के जीवन पर आधारित नाटक का मंचन किया गया। 1954 में ये दिल्ली में स्थापित साहित्य अकादमी की सदस्या चुनी गईं तथा 1981 में  इनको इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया. इस प्रकार महादेवी का संपूर्ण कार्यकाल राष्ट्र और राष्ट्रभाषा की सेवा में समर्पित रहा।

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