Khanwa Battle Hindi (खानवा का युद्ध: कारण और परिणाम)

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Khanwa Battle Hindi

Khanwa Battle Hindi / खानवा का युद्ध: कारण और परिणाम / The Battle of Khanwa in Hindi

खानवा का युद्ध मुगल शासक बाबर और राजपूत राजा राणा सांगा अथवा राणा संग्राम सिंह के बीच सन 1527 में हुआ था. यह लड़ाई  खानवा में हुई थी जो भरतपुर राजस्थान में है

बाबर को भारत में आमंत्रित करने वालों में से एक राणा सांगा भी थे,   उस समय दिल्ली का शासक इब्राहिम लोदी था जो अपने घर में ही दुश्मनों से घिरा हुआ था. उसके दरबार के बहुत सारे लोग चाहते थे कि इब्राहिम लोदी  मारा जाए. दौलत खान लोदी भी उनमें से एक था. दौलत खान लोदी और राणा सांगा इन दोनों ने बाबर को भारत में आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया. बाबर को आमंत्रित करने के पीछे दोनों का स्वार्थ छिपा था

राणा सांगा एक सिसोदिया राजपूत थे जो मेवाड़ के राजा थे बाबर को भारत आमंत्रित करने के पीछे उनकी रणनीति थी दिल्ली से लोदी वंश का खात्मा करना.  राणा सांगा की सोच थी कि बाबर भी अन्य मुस्लिम आक्रांताओं की तरह ही भारत में लूटपाट मचा कर वापस लौट जाएगा और दिल्ली की गद्दी उन्हें मिल जाएगी लेकिन अंततः ऐसा हुआ नहीं और बाद में बाबर और राणा सांगा के बीच में युद्ध हुआ जिसमें राणा सांगा की हार हुई. राणा युद्ध के मैदान से अपनी जान बचा कर भाग गए और एक साल बाद उनकी मृत्यु हो गई

खानवा के युद्ध का मुख्य कारण (Reason behind the Battle of Khanwa in Hindi)

राणा सांगा ने बाबर से ये वादा किया था कि जिस समय बाबर दिल्ली पर आक्रमण करेगा ठीक उसी समय राणा सांगा आगरा पर आक्रमण कर देगा. लेकिन जब  बाबर ने दिल्ली पर आक्रमण किया और पानीपत की लड़ाई इब्राहिम लोदी के साथ कर रहा था तो उस समय राणा सांगा हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा. इससे बाबर क्रोधित हो गया और पानीपत की लड़ाई के ठीक 1 साल बाद ही उसने राणा सांगा से बदला लेने के लिए उसके खिलाफ युद्ध का ऐलान कर दिया

कुछ इतिहासकारों का कहना है कि राणा सांगा और बाबर के बीच में जो डील हुई थी उसके हिसाब से राणा सांगा को यह लगता था कि युद्ध के बाद बाबर भारत में ना रुक कर वापस समरकंद लौट जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं और इसी बात ने राणा सांगा और दौलत खान लोदी दोनों की मुसीबतें बढ़ा दी

जब राणा सांगा को ये आभास हो गया कि अब युद्ध अवश्यंभावी है तो उसने अफगानों से मदद मांगी,  उसके साथ बाकी राजपूत राजा थे ही. इस तरह उसने काफी बड़ी सेना इकट्ठी कर ली. 10 से ज्यादा राजपूत रियासतें राणा सांगा के साथ थी, अफगान भी अपनी 10000 की सेना के साथ राणा सांगा के साथ थे. इस तरह से बाबर का सामना करने के लिए राणा सांगा ने काफी मजबूत सेना बना ली.

बाबर और राणा संगा की सेना की तुलना (Babar’s Army vs Rana Sanga’s Army) 

बाबर की सेना बहुत छोटी थी लेकिन चूँकि 1 साल पहले ही पानीपत के प्रथम युद्ध में बाबर ने इब्राहिम लोदी को धूल चटाई थी इसलिए उसका आत्मविश्वास काफी बढ़ा हुआ था, दूसरी तरफ राणा सांगा खिलाफ उसके मन में गुस्सा भी बहुत था.

बाबर की सेना में मुख्य   सिपहसालार,  बाबर खुद,  हुमायूं ( हालांकि हुमायूं काफी छोटा था, इस इस लड़ाई में उसकी उम्र सिर्फ 18- 19 साल थी),  उस्ताद अली कुली,  मुस्तफा रूमी,  चिन तिमूर खान आदि थे

वही राणा सांगा की सेना में राणा सांगा,  महमूद लोदी,  हसन खान मेवाती,  उदय सिंह, मालदेव राठौर, मेदनी राय इत्यादि थे.

मेदनी राय चंदेरी के राजा थे. यहां मेदनी राय का जिक्र करना इसलिए आवश्यक हो जाता है कि खानवा की लड़ाई के बाद बाबर ने अगली लड़ाई इन्हीं मेदनी राय के खिलाफ लड़ी. मेदनी राय ने राणा सांगा का साथ दिया था इसलिए मेदिनी राय को भी समाप्त करना बाबर के हिटलिस्ट में था.

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बाबर की सेना में 80000 सैनिक और  50 तोपें थी  लेकिन उसकी मुख्य ताकत उसकी तोपें ही थीं

राणा सांगा की सेना में 110000 सैनिक और 500 हाथी थे. लेकिन जैसा की पानीपत के युद्ध में भी हुआ था हाथियों ने ज्यादा कुछ योगदान नहीं दिया बल्कि उल्टा तोपों से निकलने वाली आग और आवाज से खौफजदा होकर अपनी ही सेना को नुकसान करने लगे.

राणा सांगा की 110000 सैनिकों की संख्या में, 57000 राजपूत सैनिक, 12000 मुस्लिम राजपूत सैनिक, और 10000 अफगानी शामिल थे.

हालांकि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि राणा सांगा की सेना में 200000 से भी ज्यादा सैनिक थे  क्योंकि इनमें से कुछ युद्ध के पहले दिन के बाद शामिल हुए थे.

युद्ध की शुरुवात Beginning of the Battle

16 मार्च 1527 को युद्ध की शुरुआत हुई. और बाबर ने जैसा पहले पानीपत के युद्ध में किया था ठीक उसी प्रकार सेना की सजावट की. इसमें उसने सबसे आगे रथों को जोड़कर उनके बीच में तोपें  लगाई. इसमें से अश्वारोही सैनिकों के निकलने के लिए स्थान बनाया गया था. इस प्रकार की युद्ध तकनीकी भारत के लिए बिलकुल नई थी. इस तकनीक को “युद्ध की तुगलामा तकनीक” भी कहते हैं

बाबर ने राणा सांगा की सेना को हरा दिया और उसने मृतक सैनिकों के सिर को जोड़कर एक मीनार बनवाई जैसा कि इसके पहले भी इस्लामी हमलावर करते थे.

इसका उपयोग बाकी लोगों में खौफ पैदा करने के लिए किया जाता था. हालांकि युद्ध में बुरी तरह घायल होने के बाद राणा सांगा भाग निकले लेकिन एक साल बाद ही उनकी मृत्यु हो गई.

खानवा के युद्ध का परिणाम (Impact of the Khanwa Battle) 

इस युद्ध के बाद भारत में मुगलों की स्थिति सुदृढ़ हो गई और इस प्रकार बाबर ने भारत में मुगल वंश की नींव डाली. 

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